ट्रम्प टैरिफ और भारत
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने भारत चीन के खिलाफ 2 अप्रैल से जवाबी शुल्क…
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने भारत चीन के खिलाफ 2 अप्रैल से जवाबी शुल्क लगाने की तोप तान दी है। ट्रम्प की यह धमकी सिर्फ एक आर्थिक मुद्दा नहीं है बल्कि भारत और अमेरिका के बीच रिश्तों की एक नई अग्नि परीक्षा है। ट्रम्प के ऐलान के बाद भारत भी सक्रिय हो गया है। केन्द्रीय वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल व्यापार वार्ताओं के लिए अमेरिका की यात्रा पर हैं। दोनों ही पक्ष वार्ताओं में जुटे हुए हैं। ताकि एक-दूसरे की चिंताओं को दूर किया जा सके, जिसमें शुल्क और गैर शुल्क बाधाएं शामिल हैं। पीयूष गोयल द्विपक्षीय व्यापार समझौते को लेकर सहमति बनाने का प्रयास कर रहे हैं। अगर सहमति बन जाती है तो भारत ट्रम्प के टैरिफ से बच सकता है। ट्रम्प के टैरिफ से भारत के निर्यात क्षेत्र पर असर पड़ेगा, जिससे सालाना 7 अरब डॉलर तक का नुक्सान हो सकता है। आर्थिक विशेषज्ञों का मानना है कि भारत और अमेरिका के बीच टैरिफ का अंतर इतना ज्यादा है कि भारत को इसकी सबसे ज्यादा मार झेलनी पड़ सकती है। भारत के निर्यात वाले क्षेत्रों जैसे ऑटो मोबाइल, कृषि, कैमिकल, धातु उत्पाद और सोने-चांदी के आभूषणों पर टैरिफ से नुक्सान हो सकता है।
अगर अमेरिका ने कृषि उत्पादों पर भी टैरिफ बढ़ाया तो भारत के किसानों को भारी नुक्सान हो सकता है। ट्रम्प ट्रेड वॉर की ठाने बैठे हैं। उन्होंने मेक्सिको, कनाडा, चीन से आयात पर टैरिफ लगा दिया है। हालांकि ट्रम्प के इस फैसले को आर्थिक विशेषज्ञों का एक वर्ग मूर्खतापूर्ण करार दे रहा है। उनका मानना है कि ट्रेड वॉर से वैश्विक अर्थव्यवस्था को नुक्सान होगा और अमेरिका खुद महंगाई की आग में झुलस सकता है। कुछ भी अप्रत्याशित कर देना ट्रम्प की सनक का परिणाम है। इसलिए भारत को सतर्कता से काम लेना होगा। टैरिफ युद्ध से महंगाई बढ़ने का असर भारत पर भी होगा। लोग सुरक्षित निवेश के रूप में सोने की खरीदारी करेंगे। इससे सोने की कीमतों में उछाल जारी रहने के संकेत हैं। शेयर बाजार में गिरावट का दौर जारी रहने की आशंकाएं बढ़ गई हैं। टैरिफ का असर भारत के सकल घरेलू उत्पाद पर पड़ सकता है लेकिन भारत की अर्थव्यवस्था पर अधिक असर होने की सम्भावना नहीं है।
भारत का आईटी सेक्टर अमेरिका पर अत्यधिक निर्भर है। भारत की प्रमुख आईटी कंपनियां अमेरिका से बड़े पैमाने पर बिजनेस प्राप्त करती हैं। ट्रम्प की संभावित टैरिफ नीति और वीजा नियमों में बदलाव से आईटी कंपनियों को नए प्रोजेक्ट्स मिलने में दिक्कत हो सकती है। एच-1बी वीजा की शर्तें सख्त होने पर भारतीय पेशेवरों को अमेरिका में काम करने में कठिनाई होगी, जिससे बिजनेस ग्रोथ पर असर पड़ेगा।
भारत, अमेरिका को जेनेरिक दवाओं का सबसे बड़ा सप्लायर है। भारत की फार्मा कंपनियां अमेरिकी बाजार से अरबों डॉलर की कमाई करती हैं। अगर ट्रम्प प्रशासन भारतीय दवाओं पर ज्यादा टैरिफ लगाता है, तो इनकी कीमतें बढ़ सकती हैं, जिससे निर्यात पर सीधा असर होगा। इसके अलावा एफडीए (अमेरिकी खाद्य एवं औषधि प्रशासन) नियमों को कड़ा किया गया तो भारतीय दवा कंपनियों की निर्यात क्षमता प्रभावित हो सकती है। अमेरिका टाटा मोटर्स, महिंद्रा और मारुति सुजुकी जैसी कंपनियों के लिए एक महत्वपूर्ण बाजार है। अगर ट्रम्प आयात शुल्क बढ़ाते हैं, तो भारतीय कार कंपनियों को अमेरिका में कारें बेचने में कठिनाई होगी। इलेक्ट्रिक व्हीकल और ऑटो कंपोनेंट सेक्टर को भी झटका लग सकता है, जिससे निवेश में गिरावट आ सकती है।
भारत के टैक्सटाइल और गारमेंट उद्योग, स्टील और एल्युमीनियम उद्योग प्रभावित होंगे। ऐसी भी आशंकाएं व्यक्त की जा रही हैं कि ट्रम्प इस ट्रेड वॉर से खुद के हाथ न जला बैठें। क्योंकि महंगाई बढ़ने से अमेरिकी कम्पनियां ज्यादा से ज्यादा अपने कर्मचारियों की छंटनी कर सकती हैं और हो सकता है कि यह भारत के लिए गोल्डन चांस साबित हो। भारत पहले ही कई उत्पादों पर टैरिफ कम कर चुका है, जैसे हाई एंड मोटर साइकिल पर 50 फीसदी से घटाकर 30 फीसदी कर चुका है और बार्बन व्हिस्की पर 150 फीसदी से घटाकर 100 फीसदी कर चुका है। अभी भारत कृषि उत्पादों पर टैरिफ कम करने से इंकार कर रहा है, क्योंकि इससे करोड़ों छोटे किसान प्रभावित होंगे। यदि भारत सही रणनीति अपनाता है, तो यह अमेरिका के साथ बेहतर व्यापार समझौता यानी ट्रेड डील हासिल कर सकता है और यूएस मार्केट में अपनी पकड़ मजबूत बना सकता है। ऐसे में यह व्यापार युद्ध (ट्रेड वॉर) भारत के लिए एक बड़ा अवसर साबित हो सकता है। इससे न सिर्फ भारतीय निर्यात को बढ़ावा मिलेगा, बल्कि अमेरिकी कंपनियां भारत में निवेश करने के लिए आकर्षित हो सकती हैं। इसके अलावा, चीन पर लगाए गए उच्च टैरिफ से भारत को अपनी मैन्युफैक्चरिंग क्षमता को और मजबूत करने का अवसर मिल सकता है।
मोदी सरकार व्यापार वार्ता के जरिये राहत पाने की कोशिशों में जुटी हुई है। यदि भारत और अमेरिका में द्विपक्षीय व्यापार समझौता हो जाता है तो दोनों देशों के बीच व्यापार संबंधों को संतुलित करने के लिए आने वाले दिनों में नई घोषणाएं सम्भव हैं। उम्मीद है कि भारत और अमेरिका आपसी मसलों को हल कर लेंगे। द्विपक्षीय व्यापार समझौते पर सहमति के बाद भारत अमेरिका से आयातित 30 से अधिक वस्तुओं पर टैरिफ कम कर सकता है। भारत व्यापार और निर्यात की दिशा में यूरोपीय संघ और मध्यपूर्व से सम्पर्क कायम करने के लिए नए रास्ते तलाश रहा है। भारत को यूरोपीय संघ के साथ अपने व्यापार समझौते को जल्द से जल्द अंतिम रूप दे देना चाहिए। भारत सही रणनीति अपनाते हुए अमेरिका के साथ मुद्दों को हल कर लेता है तो यह एक बड़ी सफलता होगी।