ट्रंप का एशिया दौरा, निशाने पर भारत
आसियान के मंच पर अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप एक कद्दावर व्यक्ति की तरह पहुंचे, फिर जोश में अपनी मुट्ठियां लहराते हुए वह पारंपरिक नर्तकों की टोली में शामिल हो गये। इस तरह कुआलालंपुर में अपने रूटीन आगमन को उन्होंने अमेरिकी धूम-धड़ाके में तब्दील कर दिया, जिसके दृश्य एक से दूसरे महादेश तक वायरल हुए, जो इलाका लंबे समय से जटिल वैश्विक ताकतों के असर से प्रभावित है, वहां ट्रंप का व्यवहार पछतावे की भावना से रहित एक वर्चस्ववादी की तरह का था। मलेशिया, जापान और दक्षिण कोरिया के उनके तूफानी दौरे का कारण दोस्तों व शत्रुओं को अपनी शर्तें मनवाने की मंशा से आयोजित था। अपनी यात्रा के जरिये उन्होंने एकध्रुवीय विश्व का संदेश दिया, जहां अमेरिका ही वैश्विक व्यापार, सुरक्षा और असर तय करता है।
कंबोडिया और थाईलैंड के बीच ऐतिहासिक शांति समझौते का गवाह बनते हुए उन्होंने खुद को एक ऐसे शांतिदूत के रूप में पेश किया जिसने दशकों पुराने सीमा विवाद का हल निकाला है। ‘यह बहुत बड़ा कदम है, दूसरा कोई यह काम नहीं कर सकता था’, ट्रंप ने कहा, यह उनका एक ऐसा दांव था जिससे न सिर्फ दक्षिण पूर्व एशिया के सीमांत में स्थिरता की गारंटी बनी, बल्कि अमेरिकी कंपनियां भी अब यहां के संसाधनों का अबाध दोहन कर सकेंगी। मलेशियाई प्रधानमंत्री अनवर इब्राहिम से गलबहियां के साथ ट्रंप ने वहां के उद्यमियों से अमेरिकी बुनियादी ढांचों और टेक कंपनियों में 70 अरब डॉलर के निवेश का आश्वासन भी हासिल किया। इससे जहां अमेरिका में अतिरिक्त रोजगार सृजन होगा, वहीं कुआलालंपुर भी वाशिंगटन से जुड़ा रहेगा।
टोक्यो में ट्रंप ने जापान की पहली महिला प्रधानमंत्री से द्विपक्षीय वार्ता की तथा रक्षा संबंध मजबूत करने का दबाव भी डाला, वहां संवाददाताओं से बातचीत में ट्रंप ने आदतन शेखी बघारते हुए कहा, ‘जापान हमारा बेहद उपयोगी साझेदार है लेकिन हम न्यायपूर्ण समझौता करना चाहते हैं, किसी को अनुचित लाभ नहीं दे सकते’, ट्रंप के एशिया दौरे का चरम दक्षिण कोरिया में दिखा, जहां चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग से मुलाकात करने के बाद उन्होंने सोशल मीडिया पर लिखा, ‘हम दोनों के बीच शानदार बातचीत हुई- चीन ताकत का महत्व समझता है।’ उन्होंने एक फ्रेमवर्क एग्रीमेंट का भी खुलासा किया, जिसके तहत चीन द्वारा बौद्धिक संपदा और अपने बाजार तक पहुंच देने के वादे के बदले अमेरिका ने चीनी वस्तुओं पर 100 फीसदी टैरिफ लगाने की धमकी वापस ली है।
बाद में उन्होंने दक्षिण कोरिया के साथ 18.8 अरब डॉलर के अमेरिकी निर्यात का समझौता किया, वहां उनका जोर शांति स्थापना और परमाणु मुक्त होने पर था लेकिन शांति के पुजारी होने का उनका दावा तब खोखला लगा जब उन्होंने घरेलू नीति में आक्रामकता का परिचय दिया। युद्ध रोकने व वैश्विक स्थिरता स्थापित करने के दावों के बीच ट्रंप ने जब दशकों से जारी प्रतिबंध के बीच अमेरिका द्वारा परमाणु परीक्षण करने की बात कही तो यह उनके व्यक्तित्व के विरोधाभास के बारे में बताता था। आलोचकों का मानना है कि ट्रंप का यह दौरा एशिया में भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कद को कमतर करने की रणनीतिक कोशिश थी।
मोदी ग्लोबल साउथ की एक ताकतवर आवाज हैं जो बहुध्रुवीय विश्व व्यवस्था की बात करते हैं। जी-20 जैसे मंचों के जरिये वह पश्चिमी देशों की वर्चस्ववादी प्रवृत्ति के खिलाफ विकासशील देशों के पक्ष में मजबूती से खड़े हैं।
रूस और यूक्रेन के तनावों के बीच अपने निरपेक्ष रवैये से पश्चिमी टेक कंपनियों का निवेश आकर्षित कर भारत ने खुद को एक लचीले राष्ट्र के रूप में स्थापित किया है, जिसकी तेजी से आगे बढ़ती हुई अर्थव्यवस्था दुनिया में चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है। व्यक्तिगत अहंकार से प्रेरित ट्रंप की यह यात्रा दरअसल मोदी के इस उभार को रोकने की मंशा से थी और नई दिल्ली को नजरअंदाज कर भारत के पड़ोसियों व प्रतिद्वंद्वियों से संवाद करने के उनके इरादे को बताती थी। मोदी को ‘गहरे दोस्त’ और ‘सख्त आदमी’ कह कर ट्रंप मोदी को संकट में डालने का काम कर रहे थे। अपने एशिया दौरे में ट्रंप ने दक्षिण कोरिया और जापान पर टैरिफ में कमी की। उन्होंने ऐसे समझौते किये जिससे ऑटोमोबाइल्स और इलेक्ट्रॉनिक्स पर लगे दबाव कम हुए। चरणबद्ध कटौती के जरिये उन्होंने चीन के साथ रिश्ते में नरमी बरतने का भी संकेत दिया, पर भारत को ऐसी कोई राहत नहीं मिली।
भारतीय इस्पात, एल्युमीनियम और टेक्सटाइल्स पर लगे टैरिफ पहले जितने ही ऊंचे हैं। टोक्यो में ट्रंप ने कहा, ‘भारत एक महान देश है, पर उसने हमें भारी चोट पहुंचाई है, इसलिए हमने भी करारा जवाब दिया’। ट्रंप की यह टिप्पणी उनकी हालिया नीति के अनुरूप ही है, जिसके तहत भारत की निर्यात महत्वाकांक्षा को दंडित किया गया है, जबकि दूसरे देशों को पुरस्कृत किया जा रहा है। ट्रंप का यह पक्षपाती आचरण दक्षिण पूर्व एशिया में भी दिखा, जहां उन्होंने अमेरिकी निर्यातों पर शुल्क छूट के बदले मलेशिया, थाईलैंड, कंबोडिया और वियतनाम के साथ व्यापार ढांचे की घोषणा की। ट्रंप ने जानबूझकर भारत को इससे अलग ही नहीं रखा, बल्कि दक्षिण चीन सागर विवाद के संदर्भ में वियतनाम से वाशिंगटन की नजदीकी भारत को घेरने की अमेरिकी रणनीति के बारे में ही बताती है। ट्रंप उन देशों से बेहतर रिश्ते बना रहे हैं जो भारत के उभार से चिंतित हैं। एशियाई देशों में हुआ उनका भव्य स्वागत अमेरिकी शक्ति के प्रति महादेश के आकर्षण के बारे में ही बताता है।
ट्रंप का यह दौरा क्या भारत को अलग-थलग करने के उद्देश्य से आयोजित था जो अपनी आबादी की ताकत और नवाचार से लगातार आर्थिक ऊंचाइयों पर पहुंच रहा है? मोदी को कमतर करने की कोशिश में ट्रंप ज्यादा ही जोखिम ले रहे हैं। डिजिटल क्रांति और हरित ऊर्जा के क्षेत्र में ऊंची छलांगें लगा रहा भारत निषेध, प्रतिबंध या रोकथाम की परवाह नहीं करता। भारत की साझेदारी मॉस्को से वाशिंगटन तक विस्तृत है, ऐसे में इसका कद छोटा करने की कोशिश भ्रामक है। ट्रंप अपनी मनमानी शैली जारी रखने के लिए स्वतंत्र हैं, पर विश्व में सबसे तेजी से बढ़ रही अर्थव्यवस्था को अलग-थलग करने की कोशिश में उन्हें झटका लग सकता है।
बहुध्रुवीय विश्व का जो सूर्य उग रहा है, मोदी उसके अग्रदूत हैं। लिहाजा ग्लोबल साउथ के उभार के बीच ट्रंप के एकध्रुवीय विश्व का सपना टूट और बिखर सकता है।
(ये लेखक के निजी विचार हैं।)