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ट्रम्प की ब्रिक्स को धमकी

07:01 AM Jul 09, 2025 IST | Aditya Chopra

ब्राजील के रियो डी जेनेरियो में ब्रिक्स शिखर सम्मेलन का घोषणा पत्र जारी होते ही अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने ​ब्रिक्स की अमेरिका विरोधी नीतियों से जुड़ने वाले देशों पर 10 प्रतिशत अतिरिक्त टैरिफ लगाने की धमकी दी है। यह धमकी ऐसे वक्त में आई है जब अमेरिका सरकार टैरिफ लगाने की समय सीमा से पहले कई देशों के साथ व्यापार समझौते को अंतिम रूप देने की तैयारी कर रही है, जिसमें भारत भी शामिल है। ट्रम्प की धमकी के बाद ब्राजील के राष्ट्रपति लूला डीसिल्वा ने तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त की है और दो-टूक शब्दाें में कहा है कि ‘‘दुनिया बदल गई है हमें कोई सम्राट नहीं चाहिए।’’ ब्रिक्स आर्थिक दृष्टिकोण से दुनिया को संगठित करने का दूसरा तरीका खोज रहा है। यही कारण है कि ​ब्रिक्स ट्रम्प को असहज कर रहा है। ​

ब्रिक्स वैश्विक व्यापार में अमेरिकी डॉलर का विकल्प ढूंढ रहा है। चीन ने भी ट्रम्प की धमकी पर संतुलित प्रतिक्रिया व्यक्त की है लेकिन अन्य देशों ने ट्रम्प का विरोध किया है। फरवरी में ट्रम्प ने चेतावनी दी थी कि अगर ​ब्रिक्स अमेरिकी डॉलर की भूमिका को कम करने की ​को​शिश करेगा तो उन्हें 100 प्रतिशत टैरिफ का सामना करना पड़ेगा। ट्रम्प की धमकी का असर भारत पर भी पड़ेगा। अब सवाल यह है ​कि ट्रम्प ब्रिक्स को निशाना क्या बना रहे हैं। इस साल अमेरिकी करैंसी डॉलर की कीमत में तगड़ी ​गिरावट आई। अमेरिकी अर्थव्यस्था में सुस्ती के कारण ट्रम्प को लगता है कि हर कोई उसके खिलाफ साजिश कर रहा है। रियो घोषणापत्र में 'वैश्विक शासन में सुधार करने' से लेकर 'अंतर्राष्ट्रीय स्थिरता' पर बात की गई है। इसके साथ ही इसमें एकतरफा टैरिफ और नॉन-टैरिफ जैसे मुद्दों पर भी चर्चा की गई है। ऐसा माना जा रहा है कि घोषणापत्र में इसी मुद्दे को लेकर डोनाल्ड ट्रम्प ने टैरिफ लगाने की धमकी दी है।

हालांकि घोषणा पत्र में अमेरिका का नाम नहीं लिया गया है। रियो घोषणा पत्र में कहा गया है कि ब्रिक्स राष्ट्र एकतरफा टैरिफ और नॉन-टैरिफ उपायों के बढ़ते इस्तेमाल पर गहरी चिंता व्यक्त करते हैं, ये उपाय व्यापार के तरीके को बिगाड़ रहे हैं और विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) के मानदंडों का उल्लंघन करते हैं। इसके अलावा घोषणा पत्र में ये भी कहा गया है कि एकतरफा बलपूर्वक उपाय लागू करना अन्तर्राष्ट्रीय कानून का उल्लंघन है और एकतरफा आर्थिक प्रतिबंध जैसी कार्रवाइयों का हानिकारक असर पड़ता है। बयान में डब्ल्यूटीओ के नियमों के अनुसार व्यापार की वकालत की गई है, साथ ही बहुपक्षीय व्यापार प्रणाली की बात की गई है। ब्रिक्स समूह ऐसी बैंकिंग व्यवस्था की बात करता है जो डॉलर के समानांतर हो। यह भी एक कारण है ​कि ट्रम्प सख्त रुख अपनाए हुए है। ट्रम्प की धमकी भारत के​ लिए भी परेशानी का सबब बन सकती है और भरात ने भी ब्रिक्स घोषणा पत्र पर हस्ताक्षर किए हैं जिसमें अमेरिकी टैरिफ की आलोचना की गई है।

हालांकि ट्रम्प ने 14 देशों पर नए सिरे से टैरिफ का ऐलान करते हुए भारत-अमेरिका ट्रेड डील को लेकर कहा है ​िक वे भारत के साथ सौदे के करीब हैं। ट्रम्प ने नया टैरिफ लगाने की समय सीमा एक अगस्त तक बढ़ा दी है लेकिन अब भारत के पास 1 अगस्त तक का समय है। भारत चाहता है कि ये टैरिफ नहीं लगे लेकिन इसके लिए अमेरिका चाहता है कि भारत उसके कृषि और डेयरी उत्पादों को अपने बाजार में ज्यादा जगह दे। जानकार सूत्रों के मुताबिक भारत की ओर से अमेरिका के पेकान नट्स, ब्लूबेरी और कुछ अन्य कृषि उत्पादों पर शुल्क घटाने की पेशकश की गई है। पशुओं के चारे पर भी भारत कुछ छूट देने को तैयार है और साथ ही ऑटोमोबाइल और व कुछ औद्योगिक उत्पादों पर भी शुल्क में रियायत दे सकता है।

हालांकि अमेरिका चाहता है कि भारत उसके डेयरी उत्पादों, जेनेटिकली मॉडिफाइड यानी जीएम फसलों खास कर मक्का और सोयाबीन, सेब, बादाम, पिस्ता जैसे कृषि उत्पादों पर टैरिफ कम करे। जानकार सूत्रों का कहना है कि भारत मक्का, सोयाबीन या चावल, गेहूं जैसे अमेरिकी जीएम उत्पादों को कम शुल्क पर भारत में बेचने की इजाजत नहीं दे सकता है। इससे भारतीय किसानों के लिए अपने उत्पाद बेच पाना मुश्किल हो जाएगा। इसके बावजूद बताया जा रहा है कि अमेरिका से वार्ता चल रही है और एक मिनी ट्रेड डील की घोषणा जल्दी ही हो सकती है।

यह स्पष्ट है ​कि अमेरिका उच्च टैरिफ लगाएगा तो वैश्विक व्यापार की मुश्किलें बढ़ेंगी। इन मुश्किलों को भांप कर ही प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी अन्य कारोबारी साझेदारों के साथ व्यापारिक रिश्ते मजबूत करने में लगा है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की ​विदेश यात्राओं के दौरान ऐसा प्रदर्शित भी हुआ है कि भारत छोटे से बड़े देशों के साथ व्यापारिक रिश्ते मजबूत कर रहा है। अमेरिका अपने दबदबे का इस्तेमाल कर भारत की प्रगति को बाधित करना चाहता है। भारत को बहुत सतर्क होकर चलना होगा और समान विचारधारा वाले देशों के साथ विश्व व्यापार और निवेश के क्षेत्र में व्यवस्था स्थापित करनी होगी। देखना होगा कि भारत-अमेरिका व्यापार समझौते का स्वरूप क्या ​निकलता है।

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