संघर्ष विराम पर ट्रम्प के दावे खोखले
PM मोदी ने राष्ट्र को संबोधित करते हुए भारत और पाकिस्तान के बीच संघर्ष विराम
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सोमवार को राष्ट्र को संबोधित करते हुए भारत और पाकिस्तान के बीच संघर्ष विराम की घोषणा के बाद उत्पन्न हुई कई शंकाओं का समाधान किया। उनके इस संबोधन ने विशेष रूप से उन अटकलों को शांत किया जो अमेरिका की भूमिका को लेकर उठ रही थीं। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने इस मामले में जल्दबाज़ी दिखाते हुए विश्व के सामने यह घोषणा कर दी कि भारत और पाकिस्तान ने संघर्ष विराम पर सहमति जता दी है। उन्होंने यह दावा भी किया कि दोनों देशों के बीच जारी तनाव को समाप्त करने में उनकी भूमिका निर्णायक रही है। पाकिस्तान ने इस घोषणा का स्वागत किया, जबकि भारत ने चुप्पी साधे रखी।
प्रधानमंत्री मोदी ने अपने 22 मिनट के संबोधन में अमेरिका या उसकी भूमिका का कोई उल्लेख नहीं किया। हालांकि उन्होंने यह स्पष्ट कर दिया कि पाकिस्तान के साथ कोई भी बातचीत केवल आतंकवाद और पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर (पीओके) को लेकर ही होगी।
अपने इस रुख के माध्यम से प्रधानमंत्री मोदी ने अप्रत्यक्ष रूप से राष्ट्रपति ट्रंप के उस दावे को खारिज कर दिया जिसमें उन्होंने कहा था कि यदि भारत और पाकिस्तान युद्ध बंद कर दें तो अमेरिका दोनों देशों के साथ व्यापार ‘काफी हद तक’ बढ़ा सकता है या फिर किसी भी मुद्दे पर अमेरिका मध्यस्थता कर सकता है। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने कहा अगर तुम इसे (युद्ध) रोकते हो तो हम व्यापार करेंगे। अगर नहीं रोका तो कोई व्यापार नहीं होगा और अचानक उन्होंने कहा कि शायद अब हम इसे रोकने जा रहे हैं। ट्रंप ने यह भी दावा किया कि अमेरिका ने भारत और पाकिस्तान के बीच विवाद में मध्यस्थता की पेशकश की थी।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का संबोधन साफ़ और निर्णायक था। उनके भाषण के मुख्य बिंदु रहे -आतंकवाद और वार्ता, आतंकवाद और व्यापार और ‘खून और पानी साथ नहीं बह सकते’ जैसी स्पष्ट बातें। उन्होंने यह भी कहा कि ऑपरेशन ‘सिंंदूर’ अभी जारी है, जवाबी कार्यवाही रुकी है, खत्म नहीं हुई है, भारत ‘न्यूक्लियर ब्लैकमेल’ को बर्दाश्त नहीं करेगा और शान्ति का मार्ग सामूहिक शक्ति से होकर गुजरता है। संघर्ष विराम की घोषणा से एक राहत की भावना जरूर आई लेकिन इस पर भी सवाल उठे कि भारत पीछे क्यों हटा? क्या पाकिस्तान वाकई कमजोर हुआ? और क्या भारत उतना ही इच्छुक था हमले रोकने के लिए जितना पाकिस्तान? सबसे बड़ा सवाल यह उठा -क्या भारत अमेरिकी दबाव में झुक गया? इन सवालों के आसान और सीधे जवाब नहीं हैं।
संघर्ष विराम की घोषणा के बाद जब पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की नेतृत्व क्षमता वाले पोस्टर सामने आए और विदेश सचिव विक्रम मिसरी को ‘देशद्रोही’ कह कर ट्रोल किया गया। श्रीमती गांधी की सराहना करते हुए पोस्टर सामने आए, ‘भारत को इंदिरा की याद आती है’ और इंदिरा गांधी होना आसान नहीं है। स्पष्ट रूप से यह तुलना 1971 के युद्ध और बंगलादेश निर्माण से की जा रही थी, जिसे आज के ‘जल्दबाज़ी में लिए गए संघर्ष विराम’ के सामने खड़ा किया गया। यह कहना सही नहीं होगा कि पाकिस्तान को कोई नुक्सान नहीं हुआ। भारतीय पक्ष की आधिकारिक जानकारी के अनुसार पाकिस्तान को भारी नुक्सान पहुंचाया गया। गौरतलब है कि यह पाकिस्तान के डीजीएमओ ही थे जिन्होंने अपने भारतीय समकक्ष को संघर्ष विराम के लिए कहा, निस्संदेह एक सम्मान बचाने वाली बात थी।
पहलगाम हमले के बाद भारत ने बेहद कड़ा रुख अपनाया था -सिंधु जल संधि को निलंबित किया गया, अटारी बॉर्डर बंद किया गया, पाकिस्तानी नागरिकों को 48 घंटे में देश छोड़ने का आदेश दिया गया और पाकिस्तान उच्चायोग में रक्षा सलाहकारों को ‘पर्सोना नॉन ग्राटा’ घोषित कर दिया गया। इन कदमों ने शुरुआत में एक सख्त संदेश दिया था लेकिन अचानक संघर्ष विराम से लोगों में यह भावना बनी कि भारत ने अपने ही रुख से पीछे क्यों हटा। पहलगाम आतंकी हमले के जवाब से पूरे भारत में जोश और आत्मविश्वास का माहौल था।
तनाव तेजी से बढ़ने लगा और हालात के और बिगड़ने के संकेत मिलने लगे। आम जनता में बेचैनी थी, यह चिंता कि हालात कहां तक जाएंगे, क्या पाकिस्तान आत्मघाती राह पर है और सबसे अहम सवाल क्या वह परमाणु हथियार का सहारा ले सकता है? इसीलिए जब संघर्ष विराम की घोषणा हुई तो एक पल को ही सही, राहत की सांस ली गई। हालांकि अब पीछे मुड़कर देखें तो कुछ सवाल भी उठे।
वहीं दूसरी ओर पाकिस्तान को तुर्की और चीन का समर्थन मिला। अमेरिका की स्थिति अस्थिर रही, दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संघ (सार्क) भी खामोश रहा। नेपाल और बंगलादेश ने भी कोई स्पष्ट समर्थन नहीं दिया। यहां तक कि रूस, जो भारत का पारंपरिक सहयोगी रहा है, उसने भी तटस्थ रुख अपनाया। भारत की कड़ी आपत्ति के बावजूद पाकिस्तान को अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष से राहत पैकेज मिलना निर्णायक क्षण था। यह सर्वविदित है कि अमेरिका आईएमएफ का सबसे बड़ा शेयरधारक है और वीटो शक्ति रखता है। क्या यह पाकिस्तान को युद्ध विराम के लिए मनाने का एक साधन था? यह अभी भी अटकलों के दायरे में है।