ट्रम्प की आर्थिक दादागिरी !
90 के दशक के शुरू में जब भारत में आर्थिक उदारीकरण की प्रक्रिया शुरू हुई तो…
90 के दशक के शुरू में जब भारत में आर्थिक उदारीकरण की प्रक्रिया शुरू हुई तो अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर विश्व व्यापार संगठन (वर्ल्ड ट्रेड आर्गनाइजेशन) की सदस्यता भी इसने ली जिसका मुख्य कार्य विश्व के विभिन्न देशों के बीच वाणिज्य व व्यापार को सुव्यवस्थित करना था और विश्व के विभिन्न उत्पादन स्रोतों को एक-दूसरे के लिए उपयोगी बनाना था। व्यापार संगठन का लक्ष्य यह भी था कि विश्व के सभी देश एक-दूसरे पर निर्भर रहते हुए अपना समुचित आर्थिक विकास अपनी स्रोतीय क्षमताओं का उपयोग करते हुए करें। इसमें जिस देश की प्रचुरता जिस भी क्षेत्र में हो वह उसका लाभ दूसरे देश को दे और दुनिया का विकास समावेशी तरीके से हो परन्तु लगता है कि अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प इस क्रम को उलटना चाहते हैं और अमेरिकी कम्पनियों को केवल अपने देश में ही उत्पादन इकाइयां स्थापित करने के लिए मजबूर करना चाहते हैं। ट्रम्प की इस आर्थिक नीति का कोई भी दूसरा देश समर्थन नहीं कर सकता है क्योंकि आर्थिक उदारता से आगे बढे़ आर्थिक भू-मंडलीकरण के चक्र में आये प्रत्येक देश की एक-दूसरे पर निर्भरता इस हद तक बढ़ चुकी है कि बाजार में मिलने वाले उत्पादों की राष्ट्रीय पहचान का कोई विशेष अर्थ नहीं रहा है।
ट्रम्प की नीतियों से लगता है कि वह पुनः आर्थिक संरक्षणवाद की तरफ लौटना चाहते हैं। वह चाहते हैं कि अमेरिका के पूंजीपतियों का निवेश केवल अमेरिका में ही हो। अमेरिका विश्व का सबसे धनी देश है और इसकी अर्थव्यवस्था नम्बर एक की मानी जाती है। जाहिर है कि इस देश के पास पूंजी की प्रचुरता है। अमेरिकी कम्पनियां उदारीकरण का दौर शुरू होने के बाद भारत में आने लगीं और पूंजी निवेश करने लगीं। इन्होंने अपनी उत्पादन इकाइयां इसलिए स्थापित कीं क्योंकि भारत में कुशल व अकुशल कर्मचारियों की प्रचुरता उपलब्ध थी। भारत में उत्पादन करने से इन कम्पनियों को लाभ अधिक होता था। मगर ट्रम्प चाहते हैं कि यह धारा पलटनी चाहिए जिसके लिए वह अमेरिकी कम्पनियों को धमकी तक दे रहे हैं। एेसी ही एक अमेरिकी कम्पनी ‘एप्पल’ है जो मोबाइल आईफोनों का उत्पादन करती है। इस कम्पनी की भारत में पहले से ही एक उत्पादन इकाई है जिसका ठेका एक भारतीय सहायक कम्पनी फाक्सकोन के पास है। एप्पल कम्पनी इसी कम्पनी के मार्फत अपनी उत्पादन क्षमता में विस्तार करके यहां बने मोबाइल फोनों को अमेरिका में बेचना चाहती है। इस बाबत फाक्सकोन ने पिछले दिनों लन्दन के शेयर बाजार को सूचित किया कि वह भारत के तमिलनाडु राज्य में लगभग डेढ़ अरब डालर का निवेश करके उत्पादन इकाई स्थापित करेगी और भारत में पहले से ही चल रहे उत्पादन की क्षमता में वृद्धि करेगी।
ट्रम्प ने कुछ सप्ताह पहले ही एप्पल कम्पनी के सर्वेसर्वा टिम कुक को चेतावनी दी थी कि वह अगर भारत या किसी अन्य देश में बने फोनों को अमेरिका में बेचेंगे तो उन पर 25 प्रतिशत आयात शुल्क लगाया जायेगा। यही धमकी उन्होंने दुबारा उस समय दी है जबकि भारत व अमेरिका के बीच वाणिज्य वार्ता चल रही है जिसे पूरा करने के लिए वाणिज्य मन्त्री श्री पीयूष गोयल वाशिंगटन में ही मौजूद हैं और विभिन्न अमेरिकी नेताओं से मुलाकात कर रहे हैं। निश्चित रूप से ट्रम्प की यह घोषणा विश्व व्यापार संगठन को अप्रासंगिक बनाने की है। संगठन की व्यापार नीतियां प्रत्येक सदस्य देश के हित में बहुदेशीय आधार पर इस प्रकार हैं कि हर देश को अपनी उत्पादन क्षमता का समुचित लाभ मिल सके। मगर ट्रम्प अब द्विपक्षीय आधार पर विभिन्न देशों के साथ व्यापार सन्धि करना चाहते हैं। जबकि 90 के दशक में यह अमेरिका ही था जो विभिन्न देशों पर अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार संगठन का सदस्य बनने के लिए दबाव डाल रहा था। इस संगठन की सदस्यता चीन जैसे कम्युनिस्ट देश को काफी लम्बी हील-हुज्जत के बाद ही मिल पाई थी। मगर चीन ने अपने यहां उपलब्ध सस्ते श्रम का पूरा लाभ उठाया और वह दुनिया के लिए उत्पादन का केन्द्र बनता चला गया। एप्पल कम्पनी की एक उत्पादन इकाई चीन में भी है। मगर यह कम्पनी अब मान रही है कि पूंजी निवेश के लिए भारत ज्यादा उपयुक्त स्थान है लेकिन ट्रम्प साहब ने पिछले सप्ताह ही एप्पल के सर्वेसर्वा टिम कुक से कहा था कि वह नहीं चाहते कि उनकी कम्पनी भारत में और पूंजी निवेश करके अपनी उत्पादन क्षमता बढ़ाये और भारत के बने फोनों को अमेरिका में बेचे। हां वह भारत में बने फोनों को वहीं बेच सकते हैं। जहां तक अमेरिकी बाजार का सम्बन्ध है तो उन्हें इसी देश में बने फोनों को अमेिरकियों को बेचना होगा। यह सरासर ट्रम्प की दादागिरी है जो वह अपने देश की कम्पनियों पर चलाना चाहते हैं।
जरा गौर कीजिये कि उदारीकरण के बाद आज भारत में कारों के बाजार में दुनिया की हर नामवर कम्पनी मौजूद है जो अपने-अपने ब्रांड की कारों को बेच रही है और भारत में बनी कारों का विदेशों में भी निर्यात करती है। ट्रम्प मूलतः एक व्यापारी हैं और वह सारे मामले को इसी नजरिये से देखते हुए मालूम पड़ते हैं। मगर सदियों पहले भारत के ही नीतिशास्त्र के महान ज्ञाता ‘आचार्य चाणक्य’ लिख कर गये हैं कि जिस देश का राजा व्यापारी होता है उसकी जनता कभी आराम से नहीं रह सकती। एेसे देश का भविष्य अंधकारपूर्ण होने से नहीं रोका जा सकता। ट्रम्प की आर्थिक नीतियों से अमेरिका में महंगाई बढ़ने की आशंका हर अर्थशास्त्री व्यक्त कर रहा है। आखिरकार ट्रम्प भारत जैसे देश के विकास में व्यवधान पैदा कर क्या हासिल करना चाहते हैं?