72 वर्षीय पद्मश्री से सम्मानित तुलसी अम्मा पिछले 60 सालों में लगा चुकी हैं 1 लाख से अधिक पेड़-पौधे
बीते शुक्रवार को पद्म विभूषण,पद्मभूषण व पद्मश्री पुरस्कार की घोषणा कर दी गई है। इनमें से 4 लोग ऐसे हैं
08:39 AM Feb 01, 2020 IST | Desk Team
बीते शुक्रवार को पद्म विभूषण,पद्मभूषण व पद्मश्री पुरस्कार की घोषणा कर दी गई है। इनमें से 4 लोग ऐसे हैं जिन्हें पद्म विभूषण,14 लोगों को पद्म भूषण जबकि 94 को पद्मश्री अवॉर्ड से नवाजा गया है। इस लिस्ट में पद्म अवॉर्ड अपने नाम दर्ज करने वाली 72 वर्षीय तुलसी गौड़ा का नाम भी शामिल है। बता दें कि कर्नाटक के अंकोला तालुका के होन्नाली गांव में जन्म लेने वाली तुलसी गौड़ा को इनसाक्लोपीडिया ऑफ फॉरेस्ट भी कहते हैं।
तुलसी अम्मा ने शायद ही कभी ऐसा सोचा होगा कि पर्यावरण को बचाने का जूनून उन्हें एक दिन पद्मश्री का हकदार बना देगा। खास बात यह है आदिवासी महिला तुलसी अम्मा का नाम पर्यावरण संरक्षण के सच्चे प्रहरी के तौर पर लिया जाता है। इनका कोई बच्चा नहीं है वो अपने द्वारा लगाए गए लाखों पौधों को ही अपना बच्चा मानती है। इतना ही नहीं वो अपने बच्चों की तरह ही इन पेड़-पौधों की परवरिश भी करती है।
तुलसी अम्मा तो कभी स्कूल पढ़ाई करने के लिए भी नहीं गई और ना ही उन्हें किसी भी तरह की किताब का ज्ञान है। इसके बाद भी उनका पेड़-पौधों में अतुलनीय ज्ञान है। कोई शैक्षणिक डिग्री आदि नहीं होने के बावजूद भी तुलसी गौड़ा को प्रकृति से उनके लगाव को देखते हुए उन्हें वन विभाग में नौकरी मिली है।
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अब तक लगाए 1 लाख से ज्यादा पौधे
तुलसी अम्मा ने 14 साल नौकरी करने के दौरान हजारों पौधे अपने हाथों से लगाए हैं जो आज एक घने जंगल के रूप में नजर आते हैं। दिलचस्प बात यह भी है कि रिटायरड होने के बाद भी उनका प्रकृति के प्रति प्रेम कम नहीं हुआ है। वो आज भी जगह-जगह पेड़ पौधे लगाकर पर्यावरण को बचाने के मुहिम में लगी हुई हैं। अपने पूरे जीवनकाल मे अभी तक तुलसी गौड़ा करीब 1 लाख से ज्यादा पौधे लगा चुकी हैं।
तुलसी अम्मा का पेड़-पौधे के प्रति ये प्रेम तब बाहर आया जब उन्होंने विकास के नाम पर जंगलों की कटाई होते हुए देख। उनसे पेड़-पौधों की लगातार हो रही कटाई नहीं देखी गई। इसलिए उन्होंने पौधरोपण करने का संकल्प किया और वह पौधरोपण के कार्य में जी जान से मेहनत करती रहीं।
तुलसी गौड़ा सिर्फ पेड़-पौधे लगाकर उन्हें ऐसे ही नहीं छोड़ देती हैं,बल्कि वो इन पौधों की जब तक देखभाल करती है जब तक की वह पेड़ न बन जाएं। वैसे अम्मा की खास बात यह है कि वो पौधो को अपने बच्चे की तरह से पालती है पूरा ध्यान भी रखती हैं कि कब किस पौधे को किसी चीज की जरूरत है वो इस चीज को बखूबी समझती हैं। इतना ही नहीं वह पौधों की विभिन्न प्रजातियों के साथ ही उनके आयुर्वेदिक लाभ के बारे में भी बहुत अच्छे से जानती हैं और उनके पास रोज कई लोग पौधों की जानकारी लेने के लिए भी आते हैं।
तुलसी अम्मा के इस नेक काम के लिए उन्हें इंदिरा प्रियदर्शिनी वृक्ष मित्र अवॉर्ड राज्योत्सव अवॉर्ड व कविता मेमोरियल समेत कई अन्य पुरस्कारों से भी सम्मानित किया जा चुका है। तुलसी अम्मा को अवॉर्ड पाने की इतनी खुशी नहीं होती जितनी खुशी उन्हें पेड़-पौधे लगाने और उनकी देखभाल करने में होती है। वो पिछले 6 दशक से बिना किसी मुनाफे के पर्यावरण का संवारने में जुटी हुई हैं।
तुलसी अम्मा की जिंदगी में पद्मश्री सम्मान मिलने के बाद भी कोई खास बदलाव देखने को नहीं मिला है। वो इस तरह के पुरस्कारों को एक चैलेंज की तरह लेती हैं और जीवन में कुछ नया और अच्छा करने को ही असल संघर्ष मानती है। अब तुलसी गौड़ा के इस तरह के प्रयासों को देख आप और हम सभी को ये सीख जरूर लेनी चाहिए कि पर्यावरण संरक्षण को लेकर अपनी सोच बदलनी होगी।
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