Tulsi Vivah 2025 Katha in Hindi: जलंधर की पत्नी वृंदा कैसे बनी भगवान विष्णु की अर्धांगिनी? तुलसी विवाह पर जानें पौराणिक कथा
01:18 PM Oct 30, 2025 IST | Khushi Srivastava
Tulsi Vivah 2025 Katha in Hindi: हिंदू धर्म में तुलसी विवाह का बहुत बड़ा धार्मिक महत्व है। माना जाता है कि जो भक्त विधि-विधान से तुलसी और शालिग्राम का विवाह कराता है, उन्हें कन्यादान के समान पुण्य फल प्राप्त होता है और जीवन के सभी कष्ट दूर होते हैं। तुलसी माता को देवी लक्ष्मी का स्वरूप माना जाता है। ऐसे में इस दिन तुलसी विवाह कराने से वैवाहिक जीवन में खुशहाली, प्यार और सुख-समृद्धि आती है।
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अगर अविवाहित कन्याएं इस पूजा को पूरे विधि-विधान के साथ करती हैं, तो उन्हें मनचाहा पति मिलता है। हिन्दू पंचांग के अनुसार, कार्तिक महीने के शुक्ल पक्ष की द्वादशी तिथि की शुरुआत 02 नवंबर को सुबह 07 बजकर 31 मिनट पर होगी। वहीं, इसका समापन 03 नवंबर को सुबह 05 बजकर 07 मिनट पर होगा। ऐसे में इस साल 02 नवंबर को तुलसी विवाह किया जाएगा।
Tulsi Vivah 2025 Katha in Hindi: तुलसी जी ने क्यों दिया था भगवान विष्णु को श्राप?
Tulsi Vivah 2025 Katha in Hindi: धार्मिक ग्रंथ श्रीमद् भागवत पुराण के अनुसार, एक बार भगवान शिव ने क्रोधित होकर अपने तेज का अंश समुद्र में प्रवाहित किया था। इसी तेज से एक बालक का जन्म हुआ, जो आगे चलकर बलवान और पराक्रमी दैत्यराज जलंधर कहलाने लगा। समय बीतने के साथ जलंधर अहंकारी हो गया और आसुरी कर्मों में लिप्त होकर सभी प्राणियों को कष्ट देने लगा।
सत्ता के गर्व में उसने पहले माता लक्ष्मी को पाने की इच्छा से देवताओं से युद्ध किया, और बाद में देवी पार्वती को प्राप्त करने की लालसा में कैलाश पर्वत तक जा पहुंचा। किंतु देवी पार्वती ने अपने योगबल से तुरंत उसे पहचान लिया और अदृश्य हो गईं। क्रोधित होकर उन्होंने यह सब घटना भगवान विष्णु को बताई।
जलंधर बेहद शक्तिशाली था और उसकी शक्ति का मूल स्रोत थी उसकी पत्नी वृंदा। वृंदा एक अत्यंत धर्मपरायण और पतिव्रता नारी थी। उसका अटूट सतीत्व ही जलंधर के अजेय होने का कारण था, जिसके चलते देवता भी उसे परास्त नहीं कर पा रहे थे। सृष्टि को उसके आतंक से मुक्त करने के लिए भगवान विष्णु ने एक उपाय निकाला — उन्होंने एक ऋषि का रूप धारण किया और वृंदा के समीप पहुंचे।
जब वृंदा भगवान विष्णु के पास आई, तो उसने युद्ध में अपने पति जलंधर की स्थिति पूछी। भगवान विष्णु ने अपनी माया से दो वानरों को प्रकट किया, जिनके हाथों में जलंधर का सिर और शरीर था। यह दृश्य देखकर वृंदा बेहोश हो गई। जब उसे होश आया, तो भगवान विष्णु ने माया से स्वयं को जलंधर के रूप में उसके सामने प्रस्तुत किया।
वृंदा ने उन्हें अपना पति समझकर उनकी सेवा की, जिससे उसका सतीत्व भंग हो गया। उसी क्षण जलंधर की शक्ति क्षीण हो गई और देवताओं ने उसे युद्ध में मार गिराया। जब वृंदा को यह ज्ञात हुआ कि भगवान विष्णु ने छल से यह सब किया है, तो वह अत्यंत क्रोधित और दुःखी हो गई। उसने भगवान विष्णु को पत्थर बनने का श्राप दिया और स्वयं अग्नि में प्रवेश कर आत्मदाह कर लिया।
जिस स्थान पर उसने आत्मदाह किया, वहां तुलसी का पौधा उत्पन्न हुआ। भगवान विष्णु ने वृंदा को वरदान दिया कि वह तुलसी के रूप में सदैव उनके साथ रहेगी। उन्होंने शालिग्राम रूप में तुलसी से विवाह करने का संकल्प लिया। तभी से प्रत्येक वर्ष तुलसी विवाह भगवान विष्णु के शालिग्राम रूप में सम्पन्न किया जाता है।
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