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देवउठनी एकादशी के बाद ही क्यों होता है तुलसी विवाह? जानें इस परंपरा का रहस्य

06:00 PM Oct 29, 2025 IST | Bhawana Rawat

Tulsi Vivah Aur Dev Uthani Ekadashi: देवउठनी एकादशी का पर्व कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को मनाया जाता है। मान्यता है कि इस दिन भगवान विष्णु चार महीने की योग निद्रा के बाद जागते हैं। आषाढ़ शुक्ल एकादशी से कार्तिक शुक्ल एकादशी तक, इन चार महीनों को चातुर्मास कहा जाता है। इस दौरान सभी शुभ कार्य स्थगित कर दिए जाते हैं।

तुलसी के पौधे का सीधा संबंध भगवान विष्णु से है। देवउठनी के बाद ही तुलसी माता का विवाह भगवान विष्णु के शालिग्राम स्वरुप से विवाह किया जाता है। देवउठनी के बाद तुलसी विवाह इस बात का प्रतिक है कि इस दिन से सारे शुभ कार्यों की शुरुआत हो जाती है। आइए विस्तार से जानते है कि देवउठनी और तुलसी विवाह की परंपरा का क्या संबंध है।

Dev Uthani Ekadashi 2025: क्या है देवउठनी एकादशी?

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क्या है देवउठनी एकदशी? (Image- Ai Generated)

देवउठनी एकादशी, जिसे प्रबोधिनी एकादशी भी कहा जाता है। यह पर्व कार्तिक शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को मनाई जाती है। मान्यता है कि इस दिन भगवान विष्णु चार महीने की योगनिद्रा से जागृत होते हैं। आषाढ़ शुक्ल एकादशी से शुरू होकर कार्तिक शुक्ल एकादशी तक, ये चार महीने जिन्हें चातुर्मास कहा जाता है। इन महीनों के दौरान विवाह, गृहप्रवेश, यज्ञ आदि मांगलिक कार्य नहीं किए जाते क्योंकि देवता विश्राम अवस्था में रहते हैं। जैसे ही भगवान विष्णु नींद से जागते हैं, शुभ कार्यों की शुरुआत हो जाती है।

Tulsi Vivah 2025: क्या है तुलसी विवाह?

क्या है तुलसी विवाह? (Image- Ai Generated)

तुलसी विवाह देवउठनी एकादशी के बाद से लेकर कार्तिक पूर्णिमा तक किसी भी शुभ मुहूर्त में किया जाता है। इस दिन तुलसी माता का विवाह शालिग्राम (भगवान विष्णु का स्वरूप) से किया जाता है। पौराणिक कथा के अनुसार एक वृंदा नाम की पतिव्रता स्त्री थी, जिसका विवाह जालंधर नामक राक्षस से हुआ था। वृंदा के पतिव्रता होने के कारण जालंधर को कोई नहीं मार सकता थे। जालंधर के अत्याचारों से सभी देवी-देवता परेशान थे, उन्होंने भगवान विष्णु से प्रार्थना की।

इसके बाद भगवान विष्णु ने जालंधर का रूप धारण करके वृंदा का पतिव्रता भांग किया। इससे जालंधर की शक्ति समाप्त हो गयी और देवताओं ने उसे मार डाला। जब वृंदा को इस बात का पता चला, तो उसने विष्णु जी को पत्थर बनने का श्राप दे दिया और खुद सती हो गयी। वृंदा की राख से तुलसी का पौधा उगा, जिसपर भगवान विष्णु ने उन्हें वरदान दिया कि वह शालिग्राम के रूप में उससे विवाह करेंगे और बिना तुलसी के कोई भोग स्वीकार नहीं करेंगे।

तभी से शालिग्राम के साथ तुलसी विवाह की परंपरा चली आ रही है।

Tulsi Vivah Aur Dev Uthani Ekadashi: दोनों पर्वों का आपसी संबंध

दोनों पर्वों का आपसी संबंध (Image- Social Media)

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