Tulsidas jayanti 2025: आज है तुलसीदास जयंती, पढ़ें उनके प्रमुख दोहे और अर्थ
Tulsidas jayanti 2025: आज तुलसीदास जयंती है। ऐसे में हमें यह तो मालूम है कि तुलसीदास को 'रामचरितमानस' के रचयिता के तौर पर जानते हैं। कहा जाता है कि श्रावण मास में आने वाली शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि पर ही तुलसीदास जी का जन्म हुआ था। तुलसीदास को भगवान राम के प्रति उनकी अनंत भक्ति के लिए जाना जाता हैं। तो चलिए पढ़ते हैं उनकी जयंती पर कुछ प्रेरणादायक दोहे।
ये हैं Tulsidas ke dohe aur unka arth
‘तुलसी’ काया खेत है, मनसा भयौ किसान।
पाप-पुन्य दोउ बीज हैं, बुवै सो लुनै निदान।।
भावार्थ: गोस्वामी जी कहते हैं कि शरीर एक खेत के समान है और मन एक किसान के समान। जिसमें यह किसान पाप और पुण्य रूपी दो प्रकार के बीज बोता है। वह जैसा बीज बोएगा, अंत में उसे वैसा ही फल मिलेगा। भावार्थ यह है कि यदि मनुष्य अच्छे कर्म करेगा तो उसे अच्छे फल मिलेंगे और यदि वह पाप कर्म करेगा तो उसे बुरे फल मिलेंगे।
तुलसी मीठे बचन ते सुख उपजत चहुँ ओर।
बसीकरन इक मंत्र है परिहरू बचन कठोर।।
ऐसी स्थिति में, बुद्धिमान और मूर्ख एक समान हैं। तुलसी, मीठे वचन चारों ओर सुख फैलाते हैं। बसिकरण एक मंत्र है, लेकिन कठोर वचनों से परहेज किया जाता है। इस दोहे का अर्थ है कि मीठे वचन बोलने से चारों ओर सुख का प्रकाश फैलता है।
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आवत हिय हरषै नहीं, नैनन नहीं सनेह।
‘तुलसी’ तहाँ न जाइए, कंचन बरसे मेह॥
इस दोहे का अर्थ है कि जहां हृदय में प्रसन्नता और आंखों में प्रेम न हो, वहां नहीं जाना चाहिए, भले ही वहां सोने की वर्षा हो रही हो। यह दोहा तुलसीदास जी का है।
‘तुलसी’ सब छल छाँड़िकै, कीजै राम-सनेह।
अंतर पति सों है कहा, जिन देखी सब देह॥
इस दोहे का अर्थ है "हे तुलसी (अर्थात हे भक्त), सभी छल-कपट त्याग दो और भगवान राम से प्रेम करो। जिस प्रकार एक पति अपनी पत्नी के शरीर के सभी अंगों को जानता है, उसी प्रकार भगवान भी तुम्हारे हृदय की हर बात जानते हैं, इसलिए उनसे कुछ भी छिपाने की कोशिश मत करो"।
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