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उद्धव ठाकरे का सियासी संकट टला

कोरोना काल के बीच संवैधानिक पेचीदगियों के बीच फंसे उद्धव ठाकरे का संकट फिलहाल टल गया है। पहले उद्धव ठाकरे की मुख्यमंत्री पद की कुर्सी बचाने के लिए महाराष्ट्र म​ंत्रिमंडल ने प्रस्ताव पारित कर राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी से आग्रह किया था

12:11 AM May 02, 2020 IST | Aditya Chopra

कोरोना काल के बीच संवैधानिक पेचीदगियों के बीच फंसे उद्धव ठाकरे का संकट फिलहाल टल गया है। पहले उद्धव ठाकरे की मुख्यमंत्री पद की कुर्सी बचाने के लिए महाराष्ट्र म​ंत्रिमंडल ने प्रस्ताव पारित कर राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी से आग्रह किया था

उद्धव ठाकरे का सियासी संकट टला
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कोरोना काल के बीच संवैधानिक पेचीदगियों के बीच फंसे उद्धव ठाकरे का संकट फिलहाल टल गया है। पहले उद्धव ठाकरे की मुख्यमंत्री पद की कुर्सी बचाने के लिए महाराष्ट्र म​ंत्रिमंडल ने प्रस्ताव पारित कर राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी से आग्रह किया था कि वह अपने कोटे से उद्धव ठाकरे को विधान परिषद का सदस्य मनोनीत कर दें। संवैधानिक प्रावधानों के तहत किसी भी मंत्री या मुख्यमंत्री को अपनी शपथ की तिथि से 6 महीने के भीतर किसी न किसी सदन का सदस्य होना जरूरी होता है। मार्च महीने में कोरोना की वजह से लॉकडाउन के चलते विधान परिषद और  विधानसभा सहित सभी चुनाव स्थगित कर दिये गए थे, ऐसे में उद्धव ठाकरे का चुनाव के जरिए सदस्य बनना संभव नहीं है। विधान परिषद या विधानसभाओं में मनोनयन के लिए निर्धारित क्षेत्र कला, खेल, सामाजिक कार्य, लेखन आदि से ही कोई व्य​िक्त हो सकता है और उद्धव ठाकरे इनमें से किसी भी श्रेणी में नहीं आते। फिर भाजपा के पुराने सहयोगी रहे उद्धव ठाकरे को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से गुहार लगानी पड़ी। अब उद्धव ठाकरे की कुर्सी बचाने के लिए महाराष्ट्र के राज्यपाल भगत सिंह कोशियारी स  ने निर्वाचन आयोग को पत्र लिख कर 24 अप्रैल को खाली हुई सीटों पर शीघ्र चुनाव कराने का आग्रह किया है। 28 मई तक उद्धव ठाकरे अगर किसी भी सदन के सदस्य नहीं बनते तो उनकी कुर्सी चली जाएगी यानी महाआघाड़ी की सरकार का गिरना तय है। राज्यपाल ने आयोग को लिखे पत्र में आग्रह किया है कि लॉकडाउन और राज्य की विषम परिस्थितियों में ​स्थिर सरकार जरूरी है। ऐसे में विधान परिषद चुनाव कराना ही ज्यादा उचित होगा। कोरोना काल में सियासी उथल-पुथल मचाने की बजाय बीच का रास्ता ढूंढ निकाला है और निर्वाचन आयोग ने भी 21 मई को विधान परिषद की 9 सीटों पर चुनाव कराने का फैसला किया।
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संविधान विशेषज्ञों का कहना है कि मनोनीत सदस्य के तौर पर मुख्यमंत्री की कुर्सी संभालने में कानूनी तौर पर इसकी मनाही नहीं लेकिन सवाल राजनीतिक नैतिकता का भी है। यद्यपि संविधान विशेषज्ञों का यह भी कहना है कि राज्यपाल कैबिनेट की दोबारा सिफारिश को मानने को बाध्य हैं लेकिन ​उचित फैसला यही है कि मुख्यमंत्री निर्वाचित प्रतिनिधि होना चाहिए। महाराष्ट्र कोरोना का हॉटस्पॉट बन रहा है। मरीजों की संख्या 10 हजार के करीब पहुंच चुकी है। मौतों का आंकड़ा रोज डरा रहा है। मुंबई में कोरोना वायरस से हालात काफी गंभीर हो चुके हैं। राज्य में अनिश्चितता का माहौल देखते हुए राज्यपाल ने बिल्कुल सही फैसला किया है और  यह संविधान के अनुसार है।
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विधान परिषद चुनावों में एक पेच यह भी है कि कोई निर्दलीय भी यह चुनाव लड़ सकता है लेकिन नामांकन भरने के लिए दस विधायकों का समर्थन चाहिए। ऐसे में कोई भी उम्मीदवार अदालत का दरवाजा खटखटा सकता है और कह सकता है कि वह लॉकडाउन के चलते विधायकों से समर्थन पत्र हासिल नहीं कर सका है। लिहाजा या तो उसे लॉकडाउन में छूट दी जाए या फिर लॉकडाउन समाप्त होने तक चुनाव टाले जाएं। अगर ऐसा होता है तो कोरोना से लड़ाई के बीच भी सियासी अखाड़ा जम जाएगा।
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भाजपा तो चाहेगी कि शिवसेना, राकांपा और कांग्रेस के समर्थन वाली महाआघाड़ी सरकार अपने ही बोझ से या कानूनी दावपेचों के चलते गिर जाए और उस पर कोई ठीकरा भी नहीं फूटे। फिलहाल कोरोना काल में उद्धव सरकार का गिरना न तो महाराष्ट्र के हित में होगा और न ही देश के हित में। यद्यपि भाजपा उद्धव सरकार को पालघर में साधुओं की हत्या, वधावन भाइयों को सैर सपाटे की छूट को लेकर घेर रही है लेकिन उद्धव ठाकरे हर मुद्दे पर भाजपा को करारा जवाब दे रहे हैं। अगर बांद्रा स्टेशन पर प्रवासी मजदूरों की भीड़ इकट्ठी हुई तो ऐसा भाजपा शासित राज्यों में भी हुआ है। अगर पालघर में साधुओं की हत्या हुई है तो उत्तर प्रदेश में भी साधुओं की हत्या हुई है।
प्रवासी मजदूरों के मामले में भी स्थितियां राज्य में समान हैं। कोरोना वायरस से जूझने में भी महाराष्ट्र सरकार कोई लापरवाही नहीं बरत रही। उद्धव ठाकरे पहले ही गरीबों के लिए शिव थाली की शुरूआत कर चुके हैं। इसमें कोई संदेह नहीं कि उद्धव ठाकरे मराठी मानुष का सहारा लेकर अपना रास्ता आसान बना रहे हैं। अगर उद्धव सरकार गिराई जाती है तो कोरोना काल में सारी सहानुभूति वह बटोर सकते हैं। फिलहाल तो उद्धव सरकार मुश्किल से निकल जाएगी लेकिन राज्य की चुनौतियां उनके सामने हैं।
पालघर में दो साधुओं की भीड़ द्वारा हत्या किए जाने के मामले पर बाम्बे हाईकोर्ट ने राज्य सरकार से जांच ​स्थिति की रिपोर्ट मांगी है। हाईकोर्ट में एक याचिका दायर की गई जिसमें साधू हत्याकांड की जांच सीबीआई या विशेष जांच दल से कराने का आग्रह किया गया है। उद्धव सरकार की यह जिम्मेदारी है कि वह इस मामले की जांच ईमानदारी और निष्पक्ष ढंग से कराए और दोषियों को दंडित किया जाए। जहां तक कोरोना को पराजित करने का सवाल है, सरकार को लम्बी लड़ाई के लिए तैयार रहना होगा। सभी दलों को सियासत की बजाय एकजुट होकर वायरस से लड़ना होगा और दलगत राजनीति से ऊपर उठकर कोरोना को पराजित करना होगा। जान और जहान बचेगा तो ही सियासत होगी।
आदित्य नारायण चोपड़ा
Adityachopra@punjabkesari.com
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