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यूजीसी ड्राफ्ट रेगुलेशंस 2025 कमियां और चिंताएं

भारत में उच्च शिक्षा के शीर्ष नियामक निकाय, विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी)…

11:01 AM Feb 27, 2025 IST | K.S. Tomar

भारत में उच्च शिक्षा के शीर्ष नियामक निकाय, विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी)…

भारत में उच्च शिक्षा के शीर्ष नियामक निकाय, विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) ने फैकल्टी भर्ती के लिए अपने मसौदा विनियमों में महत्वपूर्ण बदलावों का प्रस्ताव रखा है जो देश में अकादमिक स्टाफिंग के भविष्य को आकार देंगे। यूजीसी ड्राफ्ट रेगुलेशंस 2025 का उद्देश्य गुणवत्ता, पारदर्शिता और दक्षता को बढ़ावा देना है, साथ ही वैश्विक शैक्षणिक मानकों के अनुरूप रहना है। हालांकि, एक आलोचनात्मक मूल्यांकन से पता चलता है कि प्रस्तावित दिशा-निर्देशों में कई कमियां हैं जो कार्यान्वयन और प्रभावशीलता को लेकर चिंताओं को जन्म देती हैं।

एक प्रमुख आलोचना यह है कि फैकल्टी भर्ती में शोध कार्य और प्रकाशनों को अधिक महत्व दिया जा रहा है। हालांकि शोध महत्वपूर्ण है लेकिन इसे शिक्षण क्षमता से ऊपर रखना विश्वविद्यालयों में शिक्षण की भूमिका को कमजोर कर सकता है। यह मान लेना कि उत्कृष्ट शोधकर्ता बेहतर शिक्षक होंगे, एक भ्रामक धारणा है। कई सफल शोधकर्ता जरूरी नहीं कि प्रभावी शिक्षण कौशल रखते हों, विशेष रूप से स्नातक और स्नातकोत्तर स्तरों पर।

विश्वविद्यालय ऐसे शोधकर्ताओं को नियुक्त कर सकते हैं जो शिक्षण में कमजोर हों जिससे शिक्षा की गुणवत्ता प्रभावित हो सकती है। शोध और शिक्षण अनुभव दोनों को समान महत्व देने वाली संतुलित नीति अपनाई जानी चाहिए। शिक्षण-केंद्रित भूमिकाओं को प्रोत्साहित किया जाना चाहिए ताकि प्रभावी शिक्षण क्षमताओं वाले संकाय सदस्यों को भी उचित अवसर मिले।

मसौदा नियमों में उद्योग विशेषज्ञों को उनके अनुभव, पेटेंट या प्रकाशनों के आधार पर पीएचडी की आवश्यकता से छूट देने का प्रस्ताव है। हालांकि अकादमिक और उद्योग के बीच की खाई को पाटना लाभदायक हो सकता है लेकिन यह प्रावधान कुछ चिंताएं पैदा करता है। उद्योग का अनुभव उच्च शिक्षा के लिए आवश्यक गहरी शैक्षणिक समझ की गारंटी नहीं देता। अकादमिक प्रशिक्षण के बिना संकाय सदस्य मौलिक अनुसंधान करने या सैद्धांतिक ज्ञान प्रदान करने में असमर्थ हो सकते हैं।

यदि विश्वविद्यालय केवल प्रभावशाली उद्योग प्रोफेशनल्स को आकर्षित करते हैं लेकिन उनकी अकादमिक गहराई अपर्याप्त रहती है तो यह शैक्षणिक मानकों को कमजोर कर सकता है। उद्योग विशेषज्ञों के लिए एक प्रमाणन या मूल्यांकन प्रणाली विकसित की जानी चाहिए ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि वे आवश्यक शिक्षण और शोध मानकों को पूरा करते हैं।

हालांकि नियमों में कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI), डेटा विज्ञान और पर्यावरणीय स्थिरता जैसे क्षेत्रों पर जोर दिया गया है लेकिन गैर-पारंपरिक या अंतःविषय विषयों में फैकल्टी भर्ती के लिए स्पष्ट दिशा-निर्देश नहीं दिए गए हैं। स्पष्ट दिशा-निर्देशों की अनुपस्थिति के कारण विश्वविद्यालयों में भर्ती प्रक्रियाओं में असंगति हो सकती है। यदि उभरते हुए क्षेत्रों के लिए भर्ती मानदंड स्पष्ट नहीं हैं तो विश्वविद्यालय वैश्विक रुझानों के अनुरूप अत्याधुनिक कार्यक्रम विकसित करने में संघर्ष कर सकते हैं।

यूजीसी को अंतः विषय भर्ती के लिए स्पष्ट पैरामीटर तय करने चाहिए और उभरते शैक्षणिक क्षेत्रों के लिए अनुकूलित भर्ती मानदंड तैयार करने चाहिए। ऑनलाइन आवेदन प्रणाली शुरू करने का उद्देश्य भौगोलिक बाधाओं को कम करना है लेकिन यह उच्च शिक्षा में पहले से मौजूद क्षेत्रीय असमानताओं को पूरी तरह दूर नहीं कर सकता। डिजिटल भर्ती प्लेटफॉर्म उन उम्मीदवारों के लिए फायदेमंद हो सकते हैं जो बेहतर इंटरनेट सुविधाओं वाले शहरी क्षेत्रों में रहते हैं जिससे ग्रामीण उम्मीदवारों को नुक्सान हो सकता है।

ऑनलाइन प्लेटफॉर्म पर अत्यधिक निर्भरता उन वंचित उम्मीदवारों को हाशिए पर डाल सकती है जिनके पास प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी या ऑनलाइन साक्षात्कार के लिए पर्याप्त संसाधन नहीं हैं। यूजीसी को डिजिटल साक्षरता कार्यक्रम लागू करने चाहिए और वंचित क्षेत्रों में बुनियादी ढांचे का समर्थन प्रदान करना चाहिए ताकि सभी के लिए समान अवसर सुनिश्चित किए जा सकें। ड्राफ्ट नियमों में अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, अन्य पिछड़ा वर्ग और आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के लिए आरक्षण की बात कही गई है लेकिन इसे लेटरल हायरिंग और चयन समितियों में लागू करने को लेकर चिंताएं बनी हुई हैं।

लेटरल भर्ती की चुनौतियां: आरक्षण नीति का पालन सुनिश्चित करना कठिन हो सकता है, क्योंकि कई उम्मीदवार उच्च पदों पर पहले से आसीन होते हैं। बाहरी विशेषज्ञों की भागीदारी आरक्षण नीति के अनुपालन को कमजोर कर सकती है, क्योंकि वे संवैधानिक प्रावधानों से परिचित नहीं हो सकते। लेटरल भर्ती में आरक्षण के स्पष्ट दिशा-निर्देश बनाए जाने चाहिए और चयन पैनलों के लिए अनिवार्य जागरूकता कार्यक्रम संचालित किए जाने चाहिए।

चयन प्रक्रिया का बोझिल होना ः हालांकि पारदर्शिता और योग्यता आधारित मूल्यांकन स्वागत योग्य कदम हैं लेकिन भर्ती प्रक्रिया अत्यधिक जटिल हो सकती है। बहु-स्तरीय मूल्यांकन प्रणाली से भर्ती प्रक्रिया लंबी और थकाऊ हो सकती है। प्रक्रिया को सरल बनाना और विश्वविद्यालयों को पर्याप्त संसाधन, प्रशिक्षण और एक उपयोगकर्ता-अनुकूल डिजिटल प्रणाली प्रदान करना चाहिए।

ड्राफ्ट में भारतीय फैकल्टी भर्ती को वैश्विक सर्वोत्तम प्रथाओं के अनुरूप बनाने का उल्लेख है लेकिन अंतर्राष्ट्रीय सहयोग के लिए कोई ठोस ढांचा नहीं दिया गया है। विश्व स्तरीय विश्वविद्यालय फैकल्टी एक्सचेंज, संयुक्त शोध और सहयोगी नियुक्तियों को बढ़ावा देते हैं। यूजीसी को विदेशी विश्वविद्यालयों के साथ साझेदारी की अनुमति देने वाले प्रावधानों को शामिल करना चाहिए। यूजीसी ड्राफ्ट रेगुलेशंस 2025 पारदर्शिता, लचीलापन और समावेशिता को बढ़ावा देने के लिए प्रयासरत हैं। हालांकि, शोध को अधिक महत्व देना, अंतः विषय नियुक्तियों में अस्पष्टता, क्षेत्रीय असमानताएं और आरक्षण क्रियान्वयन की कमजोरियां इसकी सफलता में बाधा बन सकती हैं। इन चिंताओं को बेहतर नीतियों और समर्थन तंत्र के माध्यम से हल किया जाना आवश्यक है।

भारत के उच्च शिक्षा क्षेत्र की विविध आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए एक व्यापक, समावेशी और अनुकूलनशील नियामक ढांचे की आवश्यकता है। यूजीसी केवल रचनात्मक संवाद और समय-समय पर समीक्षा के माध्यम से ही फैकल्टी भर्ती प्रणाली को प्रभावी बना सकता है जिससे भारतीय विश्वविद्यालय वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्धी बने रह सकें।

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