स्वास्थ्य और सामाजिक प्रगति के लिए खेल की शक्ति को अनलॉक करें
खेल के माध्यम से मानसिक स्वास्थ्य संकट से निपटने के उपाय…
विश्व प्रत्येक वर्ष 6 अप्रैल को विकास और शांति के लिए संयुक्त राष्ट्र द्वारा घोषित अंतर्राष्ट्रीय खेल दिवस (आईडीएसडीपी) मनाता है जो एकता, जीवटता और सकारात्मक सामाजिक परिवर्तन को बढ़ावा देने में खेल की परिवर्तनकारी शक्ति को पहचान प्रदान करता है। मतभेदों, मानसिक स्वास्थ्य से जुड़े संघर्षों और जीवनशैली से जुड़ी बीमारियों से त्रस्त इस युग में खेल इन अंतरालों को पाटने और मजबूत समुदाय का निर्माण करने के एक शक्तिशाली, लागत प्रभावी उपायों के रूप में उभर रहे हैं। शांति स्थापना में खेल महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। यह भाषा, संस्कृति और राजनीति से परे है तथा लोगों को एकजुट करने, तनाव कम करने और मेल-मिलाप को बढ़ावा देने के लिए एक सार्वभौमिक मंच प्रदान करता है। नेल्सन मंडेला ने एक बार कहा था, “खेल में दुनिया को बदलने, प्रेरणा प्रदान करने, लोगों को एकजुट करने की शक्ति है जो किसी भी अन्य कार्यकलाप में नहीं है।” चाहे ओलंपिक जैसे अंतर्राष्ट्रीय खेल आयोजन हों या संघर्ष क्षेत्रों में जमीनी स्तर के खेल कार्यक्रम, शांति और कूटनीति को बढ़ावा देने में खेलों की क्षमता को नकारा नहीं जा सकता।
सतत् विकास के लिए 2030 एजेंडा इस भूमिका को मान्यता प्रदान करके इस बात पर बल देता है कि खेल किस प्रकार सहिष्णुता, सम्मान, जेंडर समानता, युवा सशक्तिकरण और सामाजिक समावेश को बढ़ावा देते हैं। शांति को बढ़ावा देने की अपनी भूमिका के अतिरिक्त, खेल व्यक्तिगत विकास में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। भारत में राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी) 2020 और राष्ट्रीय पाठ्यचर्या रूपरेखा (एनसीएफ) 2023 छात्रों की संज्ञानात्मक क्षमताओं, सामाजिक कौशल और समग्र कल्याण में सुधार के लिए शिक्षा में खेल को एकीकृत करने पर बल देती है। इस मिथक के विपरीत कि खेल अकादमिक प्रगति में बाधा डालते हैं, अनुसंधान लगातार इसके लाभों पर प्रकाश डालता रहा है यह ध्यान, स्मृति और समस्या समाधान कौशल में सुधार करता रहा है। खेल एक सार्वभौमिक भाषा है, यह सांस्कृतिक या भाषायी बाधाओं से मुक्त है। यह सभी का है, चाहे यह पेशेवर रूप से खेला जाए या शौकिया तौर पर।
अनेक खेलों को प्रायः महज मनोरंजन के रूप में खारिज कर दिया जाता है, लेकिन प्रारंभिक मानव सभ्यताओं से जुडें धार्मिक रीति-रिवाजों और परंपराओं में इनकी गहरी ऐतिहासिक जड़ें हैं। खेल अपनी-अपनी संस्कृतियों के मूल्यों और लोकाचार को प्रतिबिंबित करते हैं, जिससे वे विरासत का अभिन्न अंग बन जाते हैं। मूलतः खेल और पारंपरिक खेल स्वैच्छिक भागीदारी पर आधारित होते हैं जो आनंद के साथ-साथ जीवन के बहुमूल्य सबक भी प्रदान करते हैं। विशेष रूप से पारंपरिक खेल सीखने के साधन के रूप में काम करते हैं तथा समायोजन, टीमवर्क और अनुकूलनशीलता जैसे आवश्यक मानसिक कौशल सिखाते हैं। वे मानसिक कौशल, हाथ-आंख समन्वय तथा गिनती और रंग पहचान जैसी संज्ञानात्मक क्षमताओं को बढ़ाते हैं और साथ ही यह सुनिश्चित करते हैं कि सीखना आनंद आधारित बना रहे।
वैश्विक स्तर पर युवाओं का मानसिक स्वास्थ्य चिंताजनक दर से बिगड़ रहा है। निमहांस द्वारा किए गए राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य सर्वेक्षण सहित अन्य अध्ययनों से पता चलता है कि छात्रों में चिंता, अवसाद और यहां तक कि आत्महत्या करने के स्तर में वृद्धि हो रही है। सेपियन लैब्स की रिपोर्ट (2025) इन चिंताओं से सरोकार रखती है, मानसिक स्वास्थ्य के स्तर में पीढ़ी दर पीढ़ी आने वाली गिरावट का खुलासा करती है, जिसमें किशोरों की स्थिति युवा वयस्कों से भी बदतर है। आक्रामकता, क्रोध और वास्तविकता से अलगाव की भावना में वृद्धि, विशेष रूप से उन किशोरों में जिनके पास कम उम्र में ही स्मार्टफोन हैं। प्रारंभिक अवस्था में स्मार्टफोन से संपर्क और भावनात्मक उथल-पुथल में वृद्धि के बीच एक मजबूत संबंध पाया गया। ये निष्कर्ष हस्तक्षेप की तत्काल आवश्यकता पर जोर देते हैं।
हालांकि स्मार्टफोन मानसिक स्वास्थ्य में आ रही गिरावट का एकमात्र कारण है, जिसे हम देख पा रहे हैं, लेकिन छोटी उम्र में स्मार्टफोन प्राप्त करने और आक्रामकता व क्रोध की बढ़ती भावनाओं के बीच संबंध आज के युवाओं की सुरक्षा के लिए तत्काल सामाजिक कार्रवाई की मांग करता है तथा किशोरावस्था में आत्महत्या और आक्रामकता को कम करने के तरीके के रूप में देर से स्मार्टफोन देने का पुरजोर समर्थन करता है। खेलों के माध्यम से मानसिक स्वास्थ्य संकट से निपटने/ बचाने के लिए फिटनेस गतिविधियों और खेलों में स्वयं को शामिल करना अत्यधिक उचित है। वैज्ञानिक अनुसंधान ने लंबे समय से शारीरिक गतिविधि और मानसिक स्वास्थ्य के बीच संबंध स्थापित किया है। व्यायाम मस्तिष्क में एंडोर्फिन और सेरोटोनिन जैसे रसायनों के स्राव को सक्रिय करता है जो मूड को नियंत्रित करते हैं, तनाव को कम करते हैं और संज्ञानात्मक कार्य को बढ़ाते हैं। टीम संबंधी खेल, विशेष रूप से मानसिक स्वास्थ्य संबंधी संकटों से बचाने में मुख्य तत्व-सहानुभूति, आत्मविश्वास और निजी कौशल को प्रोत्साहित करते हैं।
खेल की क्षमताओं को पूरी तरह से उपयोग में लाने के लिए हमें इसके विकास में निवेश को आवश्यक रूप से प्राथमिकता देनी होगी। वर्तमान समय में खेल उद्योग भारत के सकल घरेलू उत्पाद का केवल 0.1% योगदान देता है जिसमें महत्वपूर्ण सुधार की जरूरत है। खेल अवसंरचना, प्रशिक्षण कार्यक्रम, और मूलभूत पहलों में ‘सार्वजनिक और निजी निवेश’ को बढ़ाना आवश्यक है। भारत सरकार की राष्ट्रीय खेल विकास कोष (एनएसडीएफ) खिलाड़ियों को सहायता प्रदान करने, अंतर्राष्ट्रीय कोच से प्रशिक्षण को सुविधाजनक बनाने और अवसंरचना विकास में सहायता करने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। इस कोष में विभिन्न संगठनों से सहयोग प्राप्त हो रहा है, इस दान पर कर में छूट भी उपलब्ध हैं।