अमेरिका-चीन डील और भारत
दक्षिण कोरिया के बुसान में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग में 6 साल बाद हुई मुलाकात के परिणाम सकारात्मक इसलिए नजर आ रहे हैं क्योंकि दोनों देशों में व्यापार का रास्ता प्रशस्त हो गया है। ट्रंप ने तत्काल प्रभाव से चीन पर 10 फीसदी टैरिफ घटा दिया है और अब टैरिफ 57 फीसदी से कम होकर 47 फीसदी हो गया है जो भारत पर लगाए गए 50 फीसदी टैरिफ से कम है। चीन ने दुर्लभ धातुओं की अमेरिका को सप्लाई शुरू करने की अनुमति दे दी है और चीन ने अमेरिका से बड़ी मात्रा में सोयाबीन खरीदने का वादा किया है। इसके अलावा भी चीन अमेरिका ने ऊर्जा और कुछ अन्य चीजों को लेकर भी बातचीत की है। ट्रंप ने स्पष्ट कर दिया है कि वह जल्द ही चीन से ट्रेड डील करने जा रहे हैं। इस मुलाकात में बाजी किसके हाथ रही अगर इसका विश्लेषण करें तो साफ है कि चीन अमेरिका पर हावी रहा है। ट्रंप जो भारत से इसलिए नाराज हैं कि वह रूस से भारी मात्रा में कच्चा तेल खरीदता है लेकिन जिनपिंग से मुलाकात के दौरान उन्होंने कच्चे तेल का कोई जिक्र नहीं किया जबकि वास्तविकता यह है कि पूरी दुनिया में चीन रूस से सबसे ज्यादा कच्चा तेल खरीदता है। जिनपिंग ने मुलाकात के बाद संतुलित और सधी हुई प्रतिक्रिया दी जबकि ट्रंप ने इस मुलाकात को खुद ही 10 में से 12 नम्बर दे दिए। इससे स्पष्ट है कि ट्रंप अब काफी दबाव में हैं और उनका पलड़ा कमजोर नजर आ रहा है। इसी बीच भारत के लिए राहत भरी खबर यह है कि ट्रंप ने ईरान की चाबहार बंदरगाह परियोजना के लिए भारत को प्रतिबंध से 6 महीने की छूट आैर दे दी है। चाबहार बंदरगाह भारत के लिए बेहद महत्वपूर्ण है क्योंकि वह पाकिस्तान को बाईपास करते हुए अफगानिस्तान आैर मध्य एशिया तक सीधा व्यापार मार्ग उपलब्ध कराता है। ट्रंप आजकल परस्पर विरोधी बातें कर रहे हैं। कभी प्रधानमंत्री मोदी को अपना मित्र, महान नेता और पिता तुल्य बताते हैं लेकिन साथ ही चुभने वाली बातें भी करते हैं।
अब सवाल उठता है कि अमेरिका चीन ट्रेड डील से भारत को राहत मिलेगी या परेशानियां बढ़ेंगी। भारत के लिए कई सारी चुनौतियां नजर आ रही हैं जिससे भारत की परेशानियां बढ़ सकती हैं। अमेरिका को निर्यात में चीन सबसे आगे है, जिसके बाद भारत और अन्य देश आते हैं। अमेरिका और चीन में ट्रेड वॉर छिड़ने से अमेरिकी कंपनियों ने चीन के बजाय भारत और वियतनाम जैसे देशों से आयात करना शुरू कर दिया था। भारत को इसका सबसे ज्यादा लाभ मिल रहा था लेकिन अब चीन पर भारत से कम टैरिफ लगने से फिर से अमेरिकी कंपनियां चीन की तरफ रुख कर सकती हैं। साल 2024 में चीन ने संयुक्त राज्य अमेरिका को करीब 438.7 अरब डॉलर का माल सप्लाई किया था। वहीं भारत ने अमेरिका को करीब 79.44 अरब डॉलर का सामान सप्लाई किया। भारत चीन को मूंगफली, मिर्च, अनाज और सोयाबीन से लेकर तमाम चीजें सप्लाई करता है। एक रिपोर्ट के मुताबिक, भारत का चीन में एग्रीकल्चर प्रोडक्ट्स की सप्लाई करीब 14.9 अरब डॉलर थी लेकिन अब चीन ने अमेरिका को बड़ी मात्रा में सोयाबीन खरीदने का भरोसा दिया है। ऐसे में हो सकता है कि चीन अमेरिका से कुछ और एग्री प्रोडक्ट्स मंगाए, जिस कारण भारत से एग्रीकल्चर प्रोडक्ट्स की सप्लाई कम हो सकती है। डील होने से अमेरिका और चीन के बीच रिश्ता सुधर रहा है। ऐसे में चीन से बाहर जाने वाली अमेरिकी कंपनियां अपना प्लान चेंज कर सकती हैं, जो पिछले कई सालों से चल रहा है। चीन के बाद अमेरिकी कंपनियों की पहली पसंद भारत है, जिस कारण भारत के मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर को नुक्सान हो सकता है। इसके अलावा, भारत के इलेक्ट्रॉनिक्स, टेक्सटाइल और ऑटो पार्ट्स सेक्टर पर भी दबाव हो सकता है।
भारतीय शेयर बाजार को भी नुक्सान हो सकता है। विदेशी निवेशक चीन आैर अमेरिकी बाजार में निवेश के लिए आकर्षित हो सकते हैं। ट्रंप के लिए सोयाबीन की खेती बहुत बड़ी सिरदर्द बनी हुई थी। अमेरिकी सोयाबीन किसानों के चीन का बाजार सबसे बड़ा बाजार था। चीन लगभग 13 अरब डालर का सोयाबीन खरीदता था। टैरिफ वार शुरू होने के बाद चीन ने सोयाबीन की खरीद बंद कर दी थी जिससे सोयाबीन के किसानों को नुक्सान हो रहा था। जहां तक रेयर अर्थ मिनरल का सवाल है। दरअसल यह ऐसी 17 विशेष धातुओं का समूह है जो इलैक्ट्रानिक्स से लेकर डिफैंस उपकरण, बैटरी, सैमी कंडक्टर, मिसाइल, रेडार सिस्टम, ड्रोन, जेट इंजन, स्मार्ट फोन, लैपटॉप से लेकर इलैक्ट्रिक वाहनों तक में इस्तेमाल होती है। इन धातुओं की सप्लाई रुक जाने से अमेरिका प्रभावित हो रहा था। अगर इसे देखा जाए तो दोनों देशों ने अपनी-अपनी बात मनवा ली है। दोनों ने ही अपने-अपने हितों को देखते हुए रणनीति अपनाई है। अब देखना यह है कि भारत अमेरिका ट्रेड डील किन शर्तों पर होती है। एक बात स्पष्ट है कि अमेरिका हो या कोई और देश। आज की दुनिया में कोई एक हाथ से ताली नहीं बजा सकता।

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