कश्मीर में अमरीकी दखल मंजूर नहीं
कुछ लोग जब ताकतवर बन जाते हैं तो वे दूसरों के यहां ताक-झांक करके समझने लगते हैं कि इनके मामलों में हम कुछ भी कर सकते हैं और इन्हें हमारी बात माननी ही पड़ेगी।
05:10 AM Jul 14, 2019 IST | Aditya Chopra
Advertisement
कुछ लोग जब ताकतवर बन जाते हैं तो वे दूसरों के यहां ताक-झांक करके समझने लगते हैं कि इनके मामलों में हम कुछ भी कर सकते हैं और इन्हें हमारी बात माननी ही पड़ेगी। इसी तरह दुनिया के नक्शे पर कुछ वे देश जो पावरफुल हैं उन्हें भी यही भ्रम है। अमेरिका आज की तारीख में भारत के मामले में यही समझता है कि वहां कश्मीर का मसला चल रहा है और आतंकवाद के चलते पाकिस्तान को भी अपने साथ जोड़कर अपनी दखलंदाजी करते हुए दोनों को काबू में रखे। बिल क्लिंटन, जॉर्ज बुश, बराक ओबामा से लेकर ट्रंप तक जितने भी राष्ट्रपति हुए हैं उन्होंने कश्मीर को लेकर हमेशा अवांछनीय दखल ही दी जिसको भारत कभी सहन नहीं करेगा।
Advertisement
पिछले दिनों संयुक्त राष्ट्र की ओर से भारत की आंतरिक स्थिति के बारे में जम्मू-कश्मीर को आधार बनाकर एक रिपोर्ट जारी की गई। संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार उच्चायुक्त कार्यालय ने इस रिपोर्ट को जारी किया। जिसमें कहा गया िक सबसे ज्यादा मानवाधिकारों का उल्लंघन कश्मीर में हो रहा है और पिछले साल ही वहां 150 से ज्यादा आम नागरिक मारे गए हैं यह उचित नहीं है, ऐसे निष्कर्ष निकालकर भारत के अंदरुनी मामलों में दखलंदाजी की गई। भारत ने इस रिपोर्ट को सिरे से खारिज कर दिया और हम इसकी प्रशंसा करते हैं कि भारत अब प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में अमेरिका की मनमानी का मुंहतोड़ जवाब देने लगा है।
Advertisement
संयुक्त राष्ट्र कोई दादा नहीं है। जब से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश का चार्ज संभाला है और आज दूसरे टर्म में भी वह जम्मू-कश्मीर को लेकर सबसे ज्यादा चिंतित हैं। लेकिन भारत पूरा अलर्ट है। संयुक्त राष्ट्र की कश्मीर पर जारी रिपोर्ट को लेकर विदेश मंत्रालय ने हाथोंहाथ पलटवार किया। कश्मीर में घुसपैठ कम हो रही है। आतंकी मारे जा रहे हैं और काबू किए जा रहे हैं। पत्थरबाजों पर नकेल कसी जा चुकी है। एकतरफ खुद गृहमंत्री अमित शाह गंभीरतापूर्वक कश्मीर को लेकर डंटे हुए हैं तो वहीं विदेश मंत्री जयशंकर ने मोर्चा संभाल रखा है। खुद पाकिस्तान आतंकवाद के चक्कर में बेनकाब हो चुका है तो अब इसीलिए संयुक्त राष्ट्र के मानवाधिकार संगठन अपनी तथाकथित रिपोर्टें जारी करने लगे हैं।
भारत ने साफ कहा है कि कश्मीर में आतंकवाद की वजह से हालात कोई बिगड़े नहीं हुए और यह रिपोर्ट पूरी तरह से मनगढ़ंत और बेबुनियाद है। सच बात तो यह है कि आतंकी संगठन पाकिस्तान में बैठकर कश्मीर घाटी में आतंक का माहौल पैदा करते हैं। हमारे देश की कोई समस्या है तो एक संप्रभु देश होने के नाते क्या हमें आतंकियों से निपटने का कोई अधिकार नहीं है। कश्मीर में क्या सही है और क्या नहीं क्या इस बारे में अमरीकी मानवाधिकार संगठन हमें आदेश देंगे।
आतंकवाद और आतंकवादियों से निपटना हमें आता है। अंतर्राष्ट्रीय मोर्चे पर पाकिस्तान के आतंक प्रमोटर अजहर मसूद जैसों की अंतर्राष्ट्रीय घेरेबंदी के बाद अब अमरीका सार्वजनिक स्तर पर तो कुछ नहीं बोल सकता तो अपने वहां के मानवाधिकार संगठनों को काम पर लगा दिया। लेकिन पूरी दुनिया आतंकवाद के खिलाफ जंग में भारत के साथ है। लोकतांत्रिक दृष्टिकोण से भारत की मजबूती अमरीकी संगठनों को रास नहीं आ रही और भारत ने आतंकवाद और आतंकवादियों के खिलाफ एकजुट होने का जो आह्वान किया पूरी दुनिया उसके साथ चल रही है तो ऐसे में कश्मीर घाटी में आतंक की आड़ लेकर वहां मानवाधिकार उल्लंघन की बात करके खुद अमरीका आतंकवाद को लाइसेंस देने की कोशिश ना करे।
अगर कभी घाटी में सर्च आप्रेशन के दौरान आतंकी रिहायसी इलाकों में छिपकर आम लोगों पर फायरिंग करते हैं तो इसे किसके मानवाधिकारों का उल्लंघन कहेंगे। वहां रहने वाले लोगों और सैनिकों, सीआरपीएफ जवानों या बीएसएफ और पुलिसकर्मियों के परिजनों के कोई मानवाधिकार नहीं हैं। मानवाधिकार तो बस आतंकवादी संगठनों के हैं या फिर घाटी के उन पत्थरबाजों के हैं जो अपने आकाओं के इशारे पर काम करते हैं। दरअसल धारा 370 घाटी में अस्थायी है और यह ऐलान देश की संसद में खुद गृहमंत्री अमित शाह ने किया है तो उसकी तकलीफ तो होनी ही थी। लेकिन भारत ने उस रिपोर्ट को लेकर करारा जवाब दे दिया है।
कश्मीर हमारा है और हमारा ही रहेगा और संयुक्त राष्ट्र को हमारे यहां मानवाधिकारों को लेकर चिन्ता करने की जरूरत नहीं बल्कि अपने वहां हालात देखें कि किस प्रकार उसकी अर्थव्यवस्था पिछड़ रही है। हमारे देश की सरकार किसी तथाकथित मानवाधिकार संगठन की कश्मीर में या कहीं भी अवांछनीय दखल बर्दाश्त नहीं करेगी। भारत की खामोशी का मतलब कमजोरी नहीं बल्कि ताकत है। यह बात चीन और पाकिस्तान समझ चुके हैं और अब अमरीका भी समझ ही ले तो अच्छा है और हमारे यहां खासतौर पर कश्मीर में दखलंदाजी की कोशिश ना करें।
Advertisement