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Uttar Pradesh: उत्तर प्रदेश में वसीयत पंजीकरण की अनिवार्यता को इलाहाबाद हाई कोर्ट ने शुक्रवार को खत्म कर दिया है। अब इसकी कोई जरूर नहीं पड़ेगी। साथ ही 2004 का संशोधन कानून भी शून्य करार दे दिया है। हाई कोर्ट ने उत्तर प्रदेश जमींदारी विनाश एवं भूमि सुधार अधिनियम की धारा 169 की उपधारा 3 रद्द कर दी है।
Highlights
कोर्ट ने संशोधन कानून को भारतीय पंजीकरण कानून के विपरीत करार दिया है। कोर्ट कहा है कि प्रदेश में वसीयत का पंजीकरण अनिवार्य नहीं होगा। संशोधन कानून से सरकार ने 23 अगस्त 2004 से वसीयतनामे का पंजीकरण अनिवार्य कर दिया था। हाई कोर्ट ने कहा है कि वसीयत पंजीकृत नहीं है तो वह अवैध नहीं होगी। न्यायमूर्ति सिद्धार्थ वर्मा तथा न्यायमूर्ति अजित कुमार की खंडपीठ ने यह आदेश दिया है।
कोर्ट ने इस संशोधन कानून को भारतीय पंजीकरण कानून के विपरीत करार दिया है। कोर्ट कहा है कि प्रदेश में वसीयत का पंजीकरण अनिवार्य नहीं होगा। संशोधन कानून से सरकार ने 23 अगस्त 2004 से वसीयतनामे का पंजीकरण अनिवार्य कर दिया था। अब हाई कोर्ट ने कहा है कि वसीयत पंजीकृत नहीं है तो वह अवैध नहीं होगी।
न्यायमूर्ति सिद्धार्थ वर्मा तथा न्यायमूर्ति अजित कुमार की खंडपीठ ने मुख्य न्यायाधीश द्वारा भेजे गए रेफरेंस को निस्तारित करते हुए यह आदेश दिया है। न्यायमूर्ति विवेक चौधरी ने यह रेफरेंस तय करने के लिए खंडपीठ को भेजने का अनुरोध किया था कि क्या संशोधन कानून लागू होने का प्रभाव तात्कालिक है या भूतलक्षी।
दरअसल, शोभनाथ केस में हाई कोर्ट ने कहा है कि कानून आने के बाद वसीयत का पंजीकरण अनिवार्य किया गया है, किंतु जहान सिंह केस में कहा गया कि क्योंकि वसीयत मौत के बाद प्रभावी होती है, इसलिए पेश करने के समय वह पंजीकृत होनी चाहिए।
भ्रम की स्थिति को साफ करने के लिए एकलपीठ ने रेफरेंस तय करने का अनुरोध किया था। इसका निस्तारण करते हुए खंडपीठ ने याचिका एकल पीठ को वापस कर दी है।
याचिका पर अधिवक्ता आनंद कुमार सिंह ने बहस की। कोर्ट ने याचिका की सुनवाई के दौरान रेफरेंस संशोधित कर मूल मुद्दे पर अपना फैसला सुनाया है। इस फैसले के बाद प्रदेश में वसीयत का पंजीकृत होना अनिवार्य नहीं होगा।