घोसी उपचुनाव के लिए अखिलेश यादव ने अपनाया कौन सा फॉर्मूला ? लोकसभा चुनाव में बदल जायेगी सपा की तस्वीर
08:30 AM Sep 11, 2023 IST
Advertisement
उत्तर प्रदेश के राजनीति में एक बड़ा उछाल देखने का मिला है जहां लगातार हारती आ रही समाजवादी पार्टी एक बार फिर से जीत की राह पर चल पड़ी है जी हां इंडिया गठबंधन में शामिल होते हैं समाजवादी पार्टी के रुख काफी बदल गए। इंडिया गठबंधन का पहला चुनावी पड़ाव तब देखने को मिला जब देश 7 विधानसभा सीटों में से घोसी यानि की उत्तर प्रदेश के विधानसभा सीट पर उपचुनाव हुआ जहां समाजवादी पार्टी में 2022 के मुकाबले सबसे ज्यादा मतों से जीत दर्ज की है। समाजवादी पार्टी की जीत इंडिया गठबंधन के पहले परीक्षा की तरह था जिसमें उन्होंने जीत का मुकाम हासिल किया। इस जीत के बाद इंडिया गठबंधन के खेमे में खुशी की लहर छा गई है तो वहीं भारतीय जनता पार्टी और एनडीए में काफी आत्ममंथन का दौर जारी है। बता दे की घोसी सीट पर हुए उपचुनाव के लिए समाजवादी पार्टी के नेता सुधाकर सिंह और भारतीय जनता पार्टी के नेता दारा सिंह चौहान को एक साथ मैदान में उतर गया था हालांकि दारा सिंह पहले समाजवादी पार्टी के नेता थे लेकिन उन्होंने समाजवादी पार्टी का हाथ छोड़कर भारतीय जनता पार्टी का हाथ थाम लिया।
सपा ने किया कमाल
इस चुनाव पर समाजवादी पार्टी में काफी अच्छे फार्मूले का इस्तेमाल किया जिसमें उन्होंने जनता को अपनी और आकर्षित करने के साथ-साथ भारतीय जनता पार्टी को हराने के लिए भी कई पैंतरे आजमाएं। लेकिन अब सवाल यह उठता है कि क्या इस चुनावी जीत के बाद इंडिया गठबंधन का आत्मविश्वास और बढ़ गया है ? क्या लोकसभा चुनाव में उनकी तस्वीरें बदल जाएंगी? इन सभी सवालों का जवाब तो लोकसभा चुनाव में ही पता चलने वाला है लेकिन उससे पहले आपको बता दे की अगर बसपा के नेताओं को घोसी सीट पर उपचुनाव के लिए उतारा गया होता तो परिणाम कुछ और ही होते क्योंकि साल 2022 की विधानसभा चुनाव में घोसी सीट पर बहुजन समाज पार्टी को 21 फीस दी वोट ही मिले थे।
इस फार्मूले ने घोसी चुनाव में समाजवादी पार्टी में डाल दी जान
इस सीट पर हुए चुनाव की बात करें तो समाजवादी पार्टी को साल 2022 में हुए चुनाव के दौरान 42.21% वोट मिले थे वही इस बार जो चुनाव हुए उसमें उन्हें 57.19 फीसदी वोट मिले वहीं बीजेपी को 37.54 फीसदी मत मिले बताया जा रहा है कि बसपा के दलित वोट बैंक का आंकड़ा सपा के खाते में आ गया है। राजनीतिक जानकारों का यह मानना है कि बसपा का इस सीट पर प्रत्याशी न उतरना अखिलेश यादव के उस फार्मूले में जान डालने जैसा हो गया है जैसा सपा प्रमुख का मानना है कि पिछड़ा दलित और अल्पसंख्यक एक साथ आए तो बीजेपी को मात दी जा सकती है। हालांकि विपक्षी गठबंधन बीजेपी को पूर्ण तरह से हारने के लिए अपनी जी तोड़ कोशिशें में लगी है अगर वह इसी तरह के फार्मूले अपनाती है तो क्या पता लोकसभा चुनाव में उनकी छवि पूरी तरह से बदल जाए।
Advertisement