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वन्दे मातरम् : राष्ट्रभाव के 150 वर्ष

05:00 AM Nov 08, 2025 IST | Editorial
वन्दे मातरम्   राष्ट्रभाव के 150 वर्ष
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भारत की राष्ट्रीय चेतना को यदि दो शब्दों में समेटा जाए, तो “वन्दे मातरम्” जितना व्यापक, सशक्त और भावनात्मक संधारक दूसरा कोई शब्द नहीं है। 1875 में बंगाल के महान कवि बंकिम चन्द्र चट्टोपाध्याय जी द्वारा रचित यह गीत आज 150 वर्षों के गौरवपूर्ण सफ़र को पार कर नए भारत की ऊर्जा, विश्वास, “राष्ट्र प्रथम” की भावना और लोकतांत्रिक भारत की आत्मा को पुनः पुष्ट कर रहा है। रचना से राष्ट्रगान तक – 150 वर्षों का कालक्रम : 1875 बंकिम चन्द्र चट्टोपाध्याय ने “वन्दे मातरम्” की रचना की। 1882 ‘आनंदमठ’ उपन्यास में प्रकाशित। 1896 कांग्रेस अधिवेशन (कलकत्ता) में गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर ने पहली बार सार्वजनिक गायन किया था। 1905 बंग-भंग विरोध आन्दोलन में वन्दे मातरम् ने क्रांति की ज्वाला जगाई। 1937 प्रथम दो अंतरों को आधिकारिक स्वीकृति दी। 1950 भारत के प्रथम राष्ट्रपति डॉक्टर राजेन्द्र प्रसाद जी ने राष्ट्र गीत का दर्जा प्रदान किया। “वन्दे मातरम्” में न भू-भाग मात्र है, न सीमाएं मात्र हैं। इसमें वह अद्भुत मातृत्व है, जो भारत को भू-राजनीति से परे आध्यात्मिक शक्ति बनाता है।

विवाद • 1923 में काकीनाडा में हुए कांग्रेस अधिवेशन में पंडित विष्णु दिगंबर पलुस्कर को ‘वंदे मातरम्’ गाने के लिए आमंत्रित किया गया था, लेकिन उस वर्ष कांग्रेस अध्यक्ष मौलाना मोहम्मद अली ने धार्मिक आधार पर आपत्ति जताई और कहा कि इस्लाम में संगीत वर्जित है।
• मुस्लिम लीग के नेताओं को खुश करने के लिए, 1937 में कांग्रेस कार्यसमिति ने राष्ट्रीय गीत को औपचारिक रूप से बदलने का निर्णय लिया। •बाद में भी और कई मौकों पर कांग्रेस और उसके नेताओं ने विभिन्न मंचों पर ‘वंदे मातरम्’ के प्रति अपनी असहमति दिखाई। एआईएमआईएम नेता श्री अकबरुद्दीन ओवैसी ने 2017 में मांग की थी कि स्कूलों में छात्रों के लिए ‘वंदे मातरम्’ गाना अनिवार्य करने वाले सर्कुलर को रद्द किया जाए। तेलंगाना सरकार ने अब कहा है कि स्कूलों में ‘वंदे मातरम्’ गाना अनिवार्य नहीं किया जाएगा। •2019 में, मध्य प्रदेश की कांग्रेस सरकार ने सचिवालय में ‘वंदे मातरम्’ गाने पर प्रतिबंध लगा दिया था।

स्वतंत्रता संग्राम में “वन्दे मातरम्” की भूमिका : गुलामी के अंधेरे में यह गीत सैनिकों का कमाण्ड था, क्रांतिकारियों की प्रार्थना था, सार्वजनिक नेतृत्व का डिजिटल सिग्नेचर था और आम भारतीयों का राष्ट्रभक्ति का आतंरिक घोष था। लाठीचार्ज की मार झेलते हुए सड़कों पर जनता के होंठों पर यही था। जेल की कोठरियों में भगत सिंह–बटुकेश्वर दत्त जैसे क्रांतिकारी यही गुनगुनाते थे। असहयोग, स्वदेशी, सत्याग्रह सबके केंद्र में मातृभूमि स्तवन का यही स्वर था। अंग्रेजी हुकूमत द्वारा उस समय “वन्दे मातरम्” बोलना भी देशद्रोह घोषित किया जाता था। परंतु क़ानून की बंदिशों पर भी यह नारा रुका नहीं। इसका इतिहास में बताता है कि एक नारा–भारत को साम्राज्यवादी सत्ता से जीत सकता है।
राजनीतिक–लोकतांत्रिक धारा में वन्दे मातरम् की भूमिका: माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी के कुशल नेतृत्व में आज भारत विश्व की सबसे सशक्त, उच्चतम स्तर वाली, जीवित लोकतंत्रों में अग्रणी है। लोकतंत्र केवल वोटिंग से नहीं चलता, लोकतंत्र आत्मगौरव, आत्मविश्वास, सांस्कृतिक एकता और राष्ट्रभाव से चलता है। “वन्दे मातरम्” भारतीय लोकतंत्र को यही चारों स्तम्भ प्रदान करता है। यह राष्ट्रहित को सर्वप्रथम रखता है। यह राजनीतिक संघर्ष की मर्यादा को “मातृभक्ति के अधीन” रखता है। यह धार्मिक विविधता के ऊपर राष्ट्र-विविधता और सांस्कृतिक एकत्व को स्थापित करता है।

यह भारत की भौगोलिक भूमि को “देवी” स्वरूप में प्रतिष्ठित करता है। इसलिए, यह गीत मात्र 150 वर्ष पुरानी रचना नहीं है। यह हमारी 5000 वर्ष पुरानी भारतीय सभ्यता की अग्नि लौ का आधुनिक रूप है। वैश्विक भारत में वन्दे मातरम् : आज भारत 21वीं सदी में नेतृत्व पर खड़ा राष्ट्र है। माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी के कुशल मार्गदर्शन में प्रौद्योगिकी, एआई, रक्षा, अंतरिक्ष, भू-राजनीतिक साझेदारी, वित्तीय कूटनीति, डिजिटल पब्लिक इंफ्रास्ट्रक्चर जैसे हर क्षेत्र में भारत अपने मॉडल से दुनिया के सामने एक वैकल्पिक, स्थायी, सशक्त समाधान प्रस्तुत कर रहा है। इस भारत की जड़ों की ऊर्जा “प्राचीन राष्ट्रीय संस्कृति” से आती है। यही ऊर्जा “वन्दे मातरम्” में है। आने वाले 25 वर्षों में, “अमृतकाल” में जब भारत विश्व-शक्ति बनेगा, उस यात्रा के आध्यात्मिक ईंधन के रूप में “वन्दे मातरम्” रहेगा। नरेन्द्र मोदी और वन्दे मातरम् की राष्ट्रीय पुनर्स्थापना : हमारे माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी ने भारतीय मानस में राष्ट्रगीत को “शब्द नहीं, संकल्प” के रूप में पुनर्स्थापित किया है। अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर भारत की संस्कृति को ‘नैरेटिव लीडरशिप’ के साथ स्थापित कर, आज़ादी के पर्वों – विशेषकर 75 वर्ष को जन-आन्दोलन में बदलकर, देश के युवाओं में “राष्ट्र प्रथम”की प्रेरणा देकर, मोदी युग ने “वन्दे मातरम्” को फिर से एक “लाइव वैल्यू सिस्टम” में परिवर्तित किया है।

आज वंदे मातरम सिर्फ गीत नहीं, नागरिक चरित्र निर्माण का राष्ट्रीय सूत्र बन गया है। 150 वर्षों का यह गौरव सिर्फ इतिहास का अध्याय नहीं है। यह भविष्य की दिशा है। स्वतंत्रता से डिजिटल क्रांति तक भारत की हर लड़ाई का सार यही था और आगे भी यही रहेगा। जब बच्चा पहली बार “वन्दे मातरम्” बोलता है,तो वह भारतीय संविधान की आत्मा में पहला कदम रखता है। 1875 में बंगाल के तत्कालीन राजनीतिक व सामाजिक परिदृश्य में उत्पन्न यह गीत धीरे-धीरे भारत की आत्मा की आवाज़ बन गया। 1882 में ‘आनंदमठ’ उपन्यास के माध्यम से यह गीत जन-चेतना के केन्द्रीय भाव में स्थापित हुआ। 1896 में कलकत्ता में हुए कांग्रेस अधिवेशन में गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर द्वारा पहली बार सार्वजनिक गायन किया गया। फिर 1905 का बंग-भंग आंदोलन आया, जिसने इस गीत को राष्ट्रीय स्वाभिमान का जीवित प्रतीक बना दिया। इस कालखंड में देश की हर गली व सड़क से लेकर क्रांतिकारियों की गुप्त सभाओं तक, हर भारतीय के गले में एक ही स्वर गूंज रहा था – वंदे मातरम्। यही वह गीत था, जिसने मातृभूमि को देवी के स्वरूप में स्थापित किया और आज़ादी की लड़ाई को आध्यात्मिक, भावनात्मक व वैचारिक शक्ति प्रदान की। 1950 में भारत के प्रथम राष्ट्रपति डॉक्टर राजेन्द्र प्रसाद जी ने राष्ट्र गीत का दर्जा प्रदान किया।

माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी के कुशल नेतृत्व में आज जब भारत आत्मनिर्भरता, तकनीकी नेतृत्व, अंतर्राष्ट्रीय आस्था, सांस्कृतिक पुनरुत्थान और वैश्विक शांति जैसे नए आयामों की ओर तेज गति से बढ़ रहा है। तब वंदे मातरम् की भूमिका और अधिक महत्वपूर्ण हो जाती है। अमृतकाल का भारत केवल इतिहास की महिमा का पाठ नहीं पढ़ना चाहता, बल्कि आने वाले भविष्य के भारत को गढ़ना चाहता है। ‘वंदे मातरम्’ माँ भारती को प्रणाम करने का मंत्र है। यह गीत हमारे संविधान, हमारी संस्कृति, हमारी स्वतंत्रता, हमारी अस्मिता और हमारी साझा राष्ट्रीय चेतना का अमर गीत है। आज जब 150 वर्ष पूरे हो रहे हैं, हमें भारत की आने वाली पीढ़ियों को यह बताना चाहिए कि चाहे देश कितना भी आगे बढ़ जाए, चाहे तकनीक कितनी भी उन्नत हो जाए, चाहे वैश्वीकरण कितना भी व्यापक हो जाए, हमारी आत्मा, हमारी पहचान और हमारी राष्ट्रीय धुरी मातृभूमि ही रहेगी। भारत की माटी से बढ़कर कोई पूज्य नहीं है। वंदे मातरम्।

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