वीर सावरकर : दसों दिशाओं से नमन
28 मई को प्रखर राष्ट्रवादी और क्रांतिकारी वीर सावरकर को उनके जन्म दिवस पर देशप्रेमियों ने याद किया। वीर सावरकर नाम है एक बहुआयामी व्यक्तित्व वाले ऐसे प्रखर सूर्य का जिसके प्रखर हिन्दुत्व दर्शन के कारण अच्छों-अच्छों की आंखें चौंधिया गई थीं।
12:24 AM May 29, 2020 IST | Aditya Chopra
Advertisement
28 मई को प्रखर राष्ट्रवादी और क्रांतिकारी वीर सावरकर को उनके जन्म दिवस पर देशप्रेमियों ने याद किया। वीर सावरकर नाम है एक बहुआयामी व्यक्तित्व वाले ऐसे प्रखर सूर्य का जिसके प्रखर हिन्दुत्व दर्शन के कारण अच्छों-अच्छों की आंखें चौंधिया गई थीं। कई बार देखा गया कि कई तथाकथित धर्मनिरपेक्षता का लबादा ओढ़ने वाले लोग वीर सावरकर पर उंगली उठा देते हैं। मुझे लगता है कि या तो उन्हें वीर सावरकर के संबंध में जानकारी नहीं और न ही वे इतिहास को जानने के इच्छुक हैं अन्यथा वे ऐसी अनर्गल बयानबाजी नहीं करते। इतिहास ने हमें बार-बार चुनौती दी।
Advertisement
-कभी वीर सावरकर पर महात्मा गांधी की हत्या का आरोपी होने का आरोप लगाया गया।
Advertisement
-कभी वीर सावरकर को जिन्ना से पूर्व द्विराष्ट्र सिद्धांत का प्रणेता बताया गया।
Advertisement
-कभी उनके कारण राष्ट्र के धर्मनिरपेक्ष स्वरूप को खतरा नजर आया।
-कभी संसद में उनका चित्र लगाने पर विवाद हुआ तो भी सैल्यूलर जेल में नाम पट्टिका को लेकर।
-आज भी उनके नाम पर बेंगलुरु में फ्लाईओवर का नामकरण करने विरोध किया जा रहा है।
लेकिन मैं आज का सम्पादकीय अंग्रेजों के खिलाफ क्रांति का आह्वान करने वाले वीर सावरकर को समर्पित कर रहा हूं। पाठकों की जानकारी के लिए अति संक्षेप में नीचे मैं वीर सावरकर के चरित्र पर एक नजर डाल रहा हूं। सन् 1906 में ब्रिटिश सरकार ने यह घोषणा की कि वह भारत के कुछ प्रतिभाशाली छात्रों को छात्रवृत्ति देकर उच्च शिक्षा का प्रबंध करेगी। लोकमान्य तिलक की अनुशंसा पर सावरकर लंदन जा पहुंचे। वहां उन्होंने कानून में दाखिला लिया। कुछ दिन तक स्थिति को देखा और फिर ‘फ्री इंडिया सोसाइटी’ का गठन कर दिया। जिन लोगों ने सबसे पहले इसकी सदस्यता ग्रहण की, उनके नामों पर एक नजर डालें। वे थे भाई परमानंद, मदन लाल धींगड़ा, लाला हरदयाल, स. हरनाम सिंह और सेनापति वापट।
इस सोसाइटी के गठन के दिन सावरकर ने इसके उद्देश्य को इस तरह वर्णित किया-‘‘शांति की जंग अधूरी है। भारत के सम्मान की रक्षा करने के लिए, इसकी अस्मिता के लिए हमें प्राणों की आहूति देने की शपथ लेनी होगी। जो भारत मां को गुलामी की बेड़ियों से जान देकर मुक्त कराना चाहें वे ही हमारे सदस्य बनें।’’
इस ‘सोसाइटी’ में गिने-चुने, परन्तु प्रचंड राष्ट्रभक्त आए। इसी सोसाइटी के सौजन्य से सावरकर ने तीन पुस्तकें लिखीं :-
* मैजिनी की जीवन कथा।
* सिखों का इतिहास।
* 1857 का स्वतंत्रता समर।
सिखों के इतिहास के अंश अक्सर सावरकर जनसभाओं में सुनाते और मांआें से मांग करते कि हमें अजीत सिंह और जुझार सिंह जैसे बच्चों की जरूरत है। फतेह सिंह और जोरावर सिंह चाहिए।
1857 के इतिहास में पहली बार राष्ट्र के वीरों के प्रति सम्मानपूर्ण शब्द कहे गए अन्यथा आज तक लाल रंग में रंगे हुए, बिके हुए इतिहासकारों ने उसे विकृत कर दिया था। खुफिया विभाग उनके पीछे पड़ गया। उन्होंने 1857 के इतिहास को अंग्रेजी में प्रकाशित करवा कर ब्रिटिश साम्राज्य की नींद हराम कर दी। लाला हरदयाल ने अपने अखबार ‘गदर’ में इसे धारावाहिक के रूप में छापा। भारतीय युवकों को बम बनाने की जानकारी देने के लिए उन्होंने रूस से तीन व्यक्ति भारत भेजे। सारा भारत बम के धमाकों से गूंज उठा।
13 मार्च, 1910 को उन्हें लंदन में गिरफ्तार किया गया। एक जुलाई को पानी के जहाज द्वारा भारत भेजा गया। रास्ते में वह छलांग लगा कर समुन्द्र में कूद गए और फ्रांस की सीमा तक जा पहुंचे, परन्तु अंत में उन्हें अंग्रेजों को सौंप दिया गया। मुकदमा चला। सावरकर यरवदा जेल में बंद थे।
उनके वकील बने अंग्रेज बैरिस्टर बेपतिस्ता, श्री चितरे और श्री गाडगिल। उन पर अभियोग लगा कि उन्होंने बम बनाने की तकनीक भारत भेजी, क्रांति के लिए हथियार भेजे, इतिहास के माध्यम से जनभावनाएं उद्वेलित कीं, मदन लाल धींगरा को उकसा कर ब्रिटिश पदाधिकारी वायली को मरवाया।
बहुत सी बातें मनगढ़ंत थीं। सावरकर ने कहा, ‘‘राष्ट्र को गुलामी के बंधनों से मुक्त कराना मेरा प्रथम लक्ष्य। इसके लिए सतत् संघर्ष करना मेरा एकमात्र ध्येय। मैंने अपनी ‘मां’ से छल नहीं किया एक स्वाभिमानी को जो करना चाहिए था, वही मैंने किया। मुझे इस न्यायालय से न्याय की कोई उम्मीद नहीं।’’
उन्हें सजा मिली-दो बार आजन्म कारावास। वहां से सैल्युलर जेल भेजे गए और वहां जो अत्याचार उन पर किए गए, उनके बारे में काश! मैं यहां लिख पाता।
गर्म सलाखों से बदन को दागे जाते समय ‘वंदे मातरम्’ बोलना राष्ट्रभक्ति थी या चरखे चलाते हुए निकृष्ट बैठे रहना और अहिंसा-अहिंसा चिल्लाते हुए सवेरे जेल में ठूंस दिया जाना और शाम को बाहर निकल आना। वक्त आ गया है और जब वक्त उस दौर का वास्तविक इतिहास लिखेगा, आप यकीन रखें वह तमाम तथाकथित महान लोग जो आज तक प्रचार माध्यमों की बैसाखियों पर महान बने बैठे हैं, धूल-धूसरित हो जाएंगे।
जनवरी 1921 में उन्हें भारत लाकर रतनागिरी जेल में बंद कर दिया गया। यहीं उनसे महात्मा गांधी और वीरभगत सिंह भी मिले। उन्होंने भगत सिंह से कहा, ‘‘पंजाब के बेटों पर इस मुल्क को गर्व है। तुम गुरु गोिवन्द सिंह के पुत्र हो। राष्ट्र की रक्षा के लिए फांसी पर झूलने से भी मत घबराना।’’
भगत सिंह को यह पहली प्रेरणा थी। गांधी को उन्होंने कहा, ‘‘लीगी नेताओं से सावधान! वह देश को तोड़ देना चाहते हैं, उनकी चालों पर नजर रखनी होगी।’’
10 मई, 1937 काे अंततः सावरकर आजाद हो गए। 30 दिसम्बर, 1937 को वह सर्वसम्मति से हिन्दू महासभा के अध्यक्ष बने। उन्होंने भारत को ‘हिन्दू’ शब्द की परिभाषा दी-‘‘सिंधू से लेकर समुद्र तक फैली, इस मातृभूमि को जो अपनी पितृभूमि और पुण्यभूमि मानता है, वही हिन्दू है।’’
मैं उन लोगों पर कोई टिप्पणी नहीं करना चाहता जिन्होंने इस देश के साथ छल किया। यह वीर सावरकर ही थे, जिन्होंने केवल
एक ही आह्वान किया था-अखंड भारत। हम उन्हें दसों दिशाओं से नमन करते हैं।

Join Channel