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महाराष्ट्र से बेहद ही शर्मनाक मामला! पीरियड्स के नाम पर इस स्कूल ने छात्राओं के उतरवा दिए कपड़े

06:43 PM Jul 10, 2025 IST | Amit Kumar
महाराष्ट्र

महाराष्ट्र के ठाणे जिले के एक प्राइवेट स्कूल में छात्राओं के साथ हुए दुर्व्यवहार का चौंकाने वाला मामला सामने आया है. कक्षा 5 से 10वीं तक की छात्राओं को स्कूल प्रशासन ने पीरियड्स के नाम पर मानसिक रूप से प्रताड़ित किया. इस मामले की शुरुआत तब  हुई जब स्कूल के टॉयलेट में खून के कुछ धब्बे मिले.

मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, इसके बाद स्कूल प्रशासन ने सभी छात्राओं को एक हॉल में बुलाया और प्रोजेक्टर पर टॉयलेट की तस्वीरें दिखाईं. लड़कियों से पूछा गया कि किसे पीरियड्स हो रहे हैं. जो छात्राएं बोलीं कि उन्हें पीरियड्स हो रहे हैं, उनकी उंगलियों के निशान लिए गए. बाकी लड़कियों को एक-एक कर टॉयलेट में ले जाकर कपड़े उतरवाकर उनके निजी अंगों की जांच की गई.

माता-पिता का विरोध और स्कूल में हंगामा

जब लड़कियों ने घर जाकर यह बात अपने माता-पिता को बताई, तो अभिभावकों का गुस्सा फूट पड़ा. बड़ी संख्या में पेरेंट्स स्कूल पहुंच गए और प्रिंसिपल की गिरफ्तारी की मांग करने लगे. पुलिस को मौके पर बुलाया गया और प्रिंसिपल को हिरासत में लिया गया. स्कूल के वकील अभय पितळे भी वहां पहुंचे, लेकिन नाराज़ अभिभावकों ने उन्हें स्कूल से बाहर निकाल दिया और उन पर हमला करने की कोशिश की, हालांकि पुलिस ने समय रहते हालात संभाल लिए.

पुलिस कर रही है जांच, प्रिंसिपल हिरासत में

शहापुर पुलिस स्टेशन में मामले की एफआईआर दर्ज की जा रही है और आगे की जांच चल रही है. पुलिस ने कहा है कि इस मामले में जो भी दोषी पाया जाएगा, उसके खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जाएगी. यह घटना स्कूलों में बच्चों की निजता और सुरक्षा पर गंभीर सवाल खड़े करती है.

UNICEF रिपोर्ट

यूनिसेफ की एक रिपोर्ट के अनुसार, हर साल करीब 2.3 करोड़ लड़कियां भारत में पीरियड्स शुरू होने के बाद स्कूल छोड़ देती हैं. इसके पीछे सामाजिक दबाव, जागरूकता की कमी और सुविधाओं का अभाव बड़ी वजह हैं. रिपोर्ट में यह भी बताया गया कि हर साल करीब 10 करोड़ लड़कियों की कम उम्र में शादी हो जाती है और लगभग 54% किशोरियां एनीमिया की शिकार होती हैं.

शिक्षा मंत्रालय की सलाह

शिक्षा मंत्रालय ने स्कूलों को पहले ही सलाह दी थी कि 10वीं और 12वीं की परीक्षा के दौरान छात्राओं के लिए फ्री सैनिटरी नैपकिन, ब्रेक की सुविधा और उचित टॉयलेट की व्यवस्था सुनिश्चित की जाए. इसके बावजूद कई स्कूल अब भी इस दिशा में गंभीर नहीं हैं.

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