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चैम्पियन बेटियों की विजय यात्रा

04:00 AM Nov 15, 2025 IST | Arjun Chopra
चैम्पियन बेटियों की विजय यात्रा
पंजाब केसरी के डायरेक्टर अर्जुन चोपड़ा
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भारतीय महिला क्रिकेट टीम एक बहुत ही दिलचस्प कहानी की तरह है जो उतार और चढ़ावों से गुजरते हुए आज की तारीख में एक इतिहास स्थापित कर चुकी है। जिस क्रिकेट को कल तक जेंटलमैन गेम कहा जाता था उस चुनौती को तोड़कर भारतीय बेटियों ने सिद्ध कर दिया कि वे किसी से कम नहीं हैं। अगर हाल में ही भारतीय महिला टीम के कुछ खिलाड़ी चाहे वे स्मृति मंदाना, हरमनप्रीत, वेदाकृष्ण मूर्ति और जैमिका रोड़विज हो या फिर दीप्मी शर्मा या फिर घोष, शेफाली वर्मा का जिक्र करें तो हमें मान लेना चाहिए महिला क्रिकेट की कहानी एक वह कहानी है जो इतिहास बनने से पहले एक छोटे से विचार से शुरू हुई। देश की बेटियों ने साबित कर दिया कि अगर एक छोटे विचार को अच्छी तरह से पौषित किया जाए तो आसमान मुट्ठी में किया जा सकता है वरना कल तक शुरूआती दौर में भारतीय महिला क्रिकेट और बेटियों ने बहुत ही चुनौती भरा विरोध झेला था और आज यही टीम 2025 विश्वकप की विजेता है। यह टीम पूरे देश के अनेक राज्यों से जड़ी है जो देश को खेल भावना से जोड़कर आगे बढ़ रही है। पूरी दुनिया में महिला क्रिकेट ईको सिस्टम के लिए देश की बेटियों ने एक नई मशाल जला दी है और इसके पूरी दुनिया में व्यूज इस कदर बढ़ रहे हैं कि हर कोई हैरान भी है और फिर सैल्यूट भी करता है।
देश की बेटियां अगर आज विश्व चैंपियन हैं तो कभी 2017 में वह इंग्लैंड की धरती पर खेले गए फाइनल में कड़ी स्पर्धा के चलते जीत की दहलीज पर फिसल गयी थी। तब फासला 9 रन का रह गया था लेकिन प्रयास करती रहीं और आसमान ​जीत कर दिखला दिया।
पूरी दुनिया सवाल खड़े कर रही थी। आज पूरी दुनिया के यही व्यूज आसमान छू रहे हैं। ब्रोडकास्ट का फोकस इन्हीं व्यूज पर केंद्रित हो चुका है। जिस मैच में भारत खेलता है उसके व्यूज हमारे सुखोई विमानों की स्पीड की तरह बढ़ते हैं। प्राप्त आंकड़ों के अनुसार जब भारत और पाकिस्तान की टीमें आमने सामने हुई तो वैश्विक व्यूज 1.87 बिलियन पहुंच गया और आस्ट्रेलिया के खिलाफ सेमिफाइनल में यही व्यूज 4.8 मिलियन का आंकड़ा (एट वन टाईम) पार कर गया। फाइनल में जब भारत का मुकाबला दक्षिण अफ्रीका से था तो यह व्यूज 1.90 मिलियन जा पहुंचा और डिजिटल प्लेटफार्म पर 185 वैश्विक मिलियन व्यूवर्स सामने आए थे। जब-,जब भारतीय खिलाडिय़ों के साथ ऑस्ट्रेलिया, इंग्लैंड या दक्षिण अफ्रीका या पाकिस्तान की प्रतिस्पर्धा पड़ती है तो बेटियां भी बुलंदियों पर पहुंच जाती हैं। ठीक ही कहा गया है कि क्या हमारी बेटियां म्हारै छोरो से कम है? पीएम मोदी बेटियों का समय-समय पर हौंसला बढ़ाते रहे। वह एक खेल प्रोमोटर पीएम भी हैं। उन्होंने टीम के सेमीफाइनल में पहुंचने पर पहले बधाई दी तथा फाइनल में जाने के लिए शुभकामनाएं भी दीं। जब खिताबी जीत मिली तो पीएम ने पूरी टीम का दिल्ली में स्वागत किया। सबसे बड़ी देर तक घुले-मिले रहे जैसे कोई फैमिली हैड बच्चों को प्यार कर रहा हो।
1978 में जब भारत में विश्व कप में बेटियों ने एक मेजबान के तौर पर डेब्यू किया तब महज आस्ट्रेलिया इंग्लैंड और न्यूजीलैंड की टीमें ही होती थी। यह एक कदम से शुरू हुई कठिन यात्रा थी जो मीलों तक सफर तय कर मंजिल पा चुकी है। तब टीम की कप्तान शांता रंगा स्वामी थी और उनके साथ डायना एडुलजी सिस्टर्स, शुभांगी कुकर्णी, सुधा साह और फौजिया खलीली जैसे खिलाड़ी थे और देखते ही देखते मैथाली राज की एंट्री से लेकर हरमन तक बेटियों के प्रतिभाओं और संघर्ष ने साबित कर दिया कि भारत किसी से कम नहीं है
सच तो यह है कि 1997 में भारत में आयोजित वर्ल्ड कप ने भारतीय महिला क्रिकेट के लिए चीज़ों को बदलना शुरू कर दिया, भले ही उन्हें सेमीफ़ाइनल में ऑस्ट्रेलिया से हार का सामना करना पड़ा। 2000 के अगले संस्करण में भी यही नतीजा आया, और फिर 2005 में ऐतिहासिक फाइनल मुकाबला हुआ, जो देश में महिला क्रिकेट के लिए एक निर्णायक दौर था। मिथाली राज की कप्तानी में उनका पहला फाइनल था। 98 रनों की हार भले ही परिणाम के लिहाज़ से निराशाजनक थी, लेकिन प्रगति को देखते हुए यह उत्साहजनक थी और 2017 तक आते-आते भारतीय बेटियां दुनिया में अपना दमखम एक चुनौती के रूप में रख चुकी थी। आज 2025 की इसी महिला क्रिकेट टीम के बारे में कहा जाता है कि वह पाकिस्तान की पुरुष टीम को हराने का दम रखती है। बीसीसीआई ने आखिरकार महिलाओं की नेशनल क्रिकेट अकाडमी भी बनाई वरना कल तक यही बेटियां किसी मैच के दौरान हॉस्टल के कमरों में रूकती थी लेकिन मोदी सरकार ने अब उन्हें फाइव स्टार तक
मुहैया करा दिये हैं। वरना यही बेटियां ट्रेन के साधारण कम्पार्टमेंट में ​बिना रिजर्वेशन के यात्रा करके खेलने के लिए पहंुचती थी। अब देश की बेटियों की इस महान सफलता को देखकर यह क्रिकेट का बीज एक विशाल वृक्ष बन गया है जिसकी छांव के नीचे युवा लड़कियां सपने देखकर
अपना करियर बना रही हैं। कुल मिलाकर संघर्ष की यह यात्रा अब एक सफलता में बदल चुकी है। पूरी दुनिया वैश्विक आसमान पर बेटों के बाद बेटियों द्वारा फहराए गए तिरंगे को देख रही है।

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