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Victory of jailed separatists: जेल में बंद अलगाववादियों की जीत

06:52 AM Jun 07, 2024 IST | Shivam Kumar Jha
victory of jailed separatists  जेल में बंद अलगाववादियों की जीत

लोकसभा चुनावों के नतीजे कई जगह काफी चौंकाने वाले रहे। कई दिग्गज नेताओं को धूल चाटनी पड़ी तो कई उम्मीदवार निर्दलीय चुनाव जीत गए, जिसकी शायद किसी ने उम्मीद भी नहीं की होगी। पंजाब में खालिस्तानी समर्थक अमृतपाल सिंह तो दूसरी तरफ श्रीमती इंदिरा गांधी के हत्यारे बेअंत सिंह के बेटे सरबजीत सिंह खडूर साहिब और फरीदकोट से चुनाव जीत गए हैं। इनकी जीत के बाद इस बात की आशंका ने जोर पकड़ लिया है कि पंजाब में कहीं अलगाववाद का मोर्चा फलने-फूलने तो नहीं लगा है। अमृतपाल सिंह इस समय देशद्रोह के आरोप में असम की डिब्रूगढ़ जेल में बंद है। जम्मू-कश्मीर में बारामूला सीट का चुनाव परिणाम भी चौंकाने वाला रहा। इस सीट से दिल्ली की तिहाड़ जेल में बंद और टैरर फंडिंग मामले में यूएपीए के तहत आरोपी पूर्व विधायक राशिद इंजीनियर इत्तेहाद पार्टी की टिकट पर चुनाव जीत गए हैं। वैसे तो भारतीय लोकतंत्र में जेलों में बंद बाहुबली और नेता चुनाव जीतते रहे हैं। 1977 में दिग्गज श्रमिक नेता जार्ज फर्नांडीज ने आपातकाल के दौरान जेल में रहते हुए मुजफ्फरपुर सीट से चुनाव लड़ा था और वह जीत गए थे।

खडूर साहिब और फरीदकोट के नतीजे पारम्परिक राजनीतिक दलों के प्रति सिखों के बढ़ते असंतोष को उजागर करते हैं। खडूर सा​हिब को पंथक सीट माना जाता है। राजनीति के साथ धर्म का घालमेल कट्टरपंथ के लिए हमेशा उर्वर जमीन तैयार करता रहा है। वारिस पंजाब दे संस्था का प्रधान बने अमृतपाल सिंह खुद को जनरैल सिंह भिंडरावाले की जमात का होने का दावा करता है।

सबसे पहले बात करते हैं अमृतपाल की। अमृतपाल को पंजाब में आए ज्यादा समय नहीं हुआ है लेकिन उसने यहां आते ही लोगों के दिलों में जगह बना ली। उसने सबसे बड़ी समस्या नशे को पहचाना और उसे खत्म करने की मुहिम शुरू की। उसने कई युवाओं को नशा छुड़ाने का दावा किया। इसके अलावा धर्म के प्रति अमृतपाल की सोच कट्टर थी। खडूर साहिब पंथक सीट थी, इसलिए नशा छुड़ाने की आस और अमृतपाल की धर्म के प्रति सोच ने लोगों को आकर्षित किया। अमृतपाल के चुनाव प्रचार में पवित्र स्थलों को भ्रष्ट करने वालों को सजा देने, ड्रग कल्चर के खिलाफ गम्भीर संघर्ष करने, प्रलोभन और धोखे से धर्म परिवर्तन पर रोक लगाने, पाकिस्तान के साथ व्यापार करने आदि के मुद्दे उछाले गए। इन मुद्दों का कोई भी राजनीतिक दल विरोध नहीं कर सकता।

वहीं फरीदकोट सीट पर सरबजीत की जीत के पीछे लोगों की आप और बीजेपी के पीछे की नाराजगी रही। बेअंत सिंह के बेटे का मुकाबला आप उम्मीदवार कर्मजीत अनमोल और बीजेपी के हंसराज हंस से था। यहां आप सरकार के प्रति लोगों में नाराजगी थी। बीजेपी की वजह से हंसराज हंस से किसानों की नाराजगी थी। इसी वजह से लोगों का झुकाव सरबजीत खालसा की तरफ हो गया। इससे पहले सरबजीत खालसा ने जितने भी चुनाव लड़े उसे हार का सामना कर पड़ा था। यद्यपि दोनों ने चुनाव प्रचार में ‘खालिस्तान’ शब्द का इस्तेमाल ज्यादा नहीं किया लेकिन इनके इरादे सब जानते हैं। स्वर्ण मंदिर में ब्लू स्टार आपरेशन की 40वीं वर्षगांठ पर सरबजीत सिंह की मौजूदगी से स्पष्ट है कि आने वाले दिनों में ‘खा​िलस्तान मूवमेंट’ को जीवित करने के प्रयास किए जा सकते हैं।

जम्मू-कश्मीर की बारामूला सीट से राशिद इंजीनियर की जीत भी कोई कम चौंकाने वाली नहीं है। रा​शिद इंजीनियर का चुनावों में जेल का बदला वोट से, जुल्म का बदला वोट से नारा खूब गूंजा। जो मतदाताओं में काम कर गया। ऐसे नारे पीडीपी के वहीद-उर-रहमान परा की रैलियों में भी गूंजे लेकिन जेल में बंद इंजीनियर का नारा कश्मीर में मतदाताओं को प्रभावित कर गया। इंजीनियर की जीत यह दिखाती है कि जम्मू-कश्मीर में चुनाव भयमुक्त वातावरण में हुए और वहां लोकतंत्र की जीत हुई है।

अब सवाल यह है कि क्या तीनों सांसद के रूप में भारतीय संविधान में आस्था की शपथ लेंगे। शिरोमणि अकाली दल अमृतसर के अध्यक्ष सिमरनजीत सिंह मान जब लोकसभा चुनाव जीते थे तो उन्होंने तीन फुट की तलवार संसद में ले जाने के मुद्दे पर अड़ियल रवैया अपनाया था। क्या अब अमृतपाल सिंह और राशिद इंजीनियर सांसद के रूप में शपथ ले पाएंगे। क्योंकि दोनों को शपथ लेने का संवैधा​िनक अधिकार है। इतिहास में ऐसे उदाहरण मिलते हैं कि जेल में बंद कई सांसदों को शपथ लेने के लिए अस्थाई रूप से पैरोल दी गई। हाल ही में आप सांसद संजय सिंह को राज्यसभा सदस्यता की शपथ लेने के लिए पैरोल दी गई थी। 2021 में अखिल गोगोई को असम विधानसभा के सदस्य के रूप में शपथ लेने की इजाजत दी गई। अगर अमृतपाल और राशिद को दोषी पाए जाने पर 2 साल की भी जेल होती है तो वे दोनों अपनी सीटें गंवा देंगे। सुरक्षा एजैंसियों को सतर्क रहना होगा और अलगाववादियों की सा​जिशों को ​विफल बनाना होगा।

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Shivam Kumar Jha

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