रूढ़ी की जीत और ‘सियासत’
क्या भाजपा के एक अदने से सिपाही ने अपनी जीत को नये सिरे से परिभािषत करने का काम किया है। पिछले सप्ताह 13 अगस्त को घोषित नई दिल्ली स्थित ‘कांस्टीट्यूशन क्लब’ के चुनावी नतीजों से भाजपाई राजनीति उफान पर आ गई। भाजपा के 5 बार के सांसद राजीव प्रताप रूढ़ी के मुकाबले इस दफे के चुनाव में भाजपा के ही एक जाट नेता संजीव बालियान खड़े थे जिन्हें पार्टी के कुछ नेताओं का वरदहस्त प्राप्त था। चुनाव पूर्व बालियान ने सांसदों के लिए जो डिनर रखा था, उसमें 260 के करीब वर्तमान व पूर्व सांसद शामिल हुए थे। वहीं रूढ़ी के डिनर में मात्र 40 लोगों की उपस्थिति ही दर्ज हुई। बालियान को जिताने के लिए भाजपा के कई बड़े नेता इस कदर आमादा थे कि ‘कांस्टीट्यूशन क्लब’ में पहली बार यूपी, बिहार, ओडिशा, राजस्थान व मध्य प्रदेश के कई बड़े नेताओं की ड्यूटी लगाई गई थी कि वो बालियान की जीत पक्की कराएं लेकिन जब चुनावी नतीजे आए तो भाजपा का पसंदीदा कैंडिडेट 102 मतों से चुनाव हार गया था। इस चुनाव में कुल 707 वोट पड़े जिसमें रूढ़ी को 392 तो बालियान को 290 वोट ही मिल पाए। बालियान को मिले वोटों में पूर्व सांसदों के 110 वोट भी शामिल हैं। जबकि चुनाव के एक दिन पहले तक बालियान करीबी भाजपा के एक सांसद हर तरफ ये दावा करते फिर रहे थे कि रूढ़ी कम से कम 125 वोटों से हार रहे हैं। अब भाजपा इस बात की पड़ताल में जुटी है कि उनकी अच्छी भली अनुशासित पार्टी में ये बगावत की लुत्ती आखिर लगी कहां से?
रूढ़ी से किस ने चुनाव से हटने को कहा था? : भाजपा से जुड़े बेहद भरोसेमंद सूत्रों का दावा है कि कांस्टीट्यूशन क्लब के चुनाव से पहले भाजपा के एक बड़े नेता ने राजीव प्रताप रूढ़ी को बुला कर कहा था कि ‘वो इस दफे चुनाव न लड़ें।’ इस पर रूढ़ी ने बेहद मासूमियत से पूछा- ‘यह तो ठीक है, पर आप मेरी जगह किसको उतारना चाहते हैं?’ तब संजीव बालियान के नाम का खुलासा हुआ जो पश्चिमी यूपी के एक जाट नेता हैं। रूढ़ी ने अपनी पार्टी के उस नेता को बताना चाहा कि ‘पहली बार उन्होंने 1991 में ये चुनाव जीता था और क्लब की गवर्निंग काऊंसिल के सचिव पद का चुनाव वे अब तक निर्विरोध जीतते आए हैं। पिछले ढाई दशक में उन्होंने क्लब का काया कल्प कर दिया है। इसे मॉडर्न और हाईटेक बनाया है। रूढ़ी ने कहा, ‘मैं 5 बार का सांसद हूं पर न तो पार्टी में न ही सरकार में मेरी कोई वक़त है। वैसे भी मुझे राजनीति में हरमोहन धवन और चंद्रशेखर जी लेकर आए थे।’ रूढ़ी की ये बात भाजपा के इस नेता को बेतरह चुभ गई और उन्होंने इस पूरे चुनाव की कमान सीधे अपने हाथों में ले ली।
जब रूढ़ी हुए सक्रिय : राजीव प्रताप रूढ़ी अपनी जीत पक्की करने के लिए कोई भी कसर छोड़ना नहीं चाहते थे। इसके बाद ही उन्होंने सोनिया गांधी से मिलने का समय मांगा और सोनिया ने ही उन्हें राहुल गांधी और मल्लिकार्जुन खड़गे से कनेक्ट करवाया। इसके बाद वे सपा नेता अखिलेश यादव से मिले। अखिलेश ने उन्हें पूरा समर्थन देने का वायदा किया क्योंकि अखिलेश का बालियान से छत्तीस का आंकड़ा है। छत्तीस का आंकड़ा तो बालियान का रालोद नेता जयंत चौधरी से भी है जिन्होंने चुनाव से दूरी बना ली और वोट डालने नहीं आए पर उनकी पार्टी के सांसद रूढ़ी के समर्थन में कदमताल करते नज़र आए। इसके बाद रूढ़ी पहुंचे मीसा भारती के पास। लालू परिवार से रूढ़ी का पुराना बैर है सो मीसा ने भी उनसे दो टूक कह दिया ‘आई एम सॉरी, हम आपका समर्थन नहीं कर सकते।’ वहीं नििशकांत दुबे ने अपने चुभते बयानों से रूढ़ी के पक्ष में सहानुभूति की बयार बहा दी। जिन्होंने बेखटके कह दिया कि ‘कांस्टीट्यूशन क्लब’ को पायलटों, आईएएस, आईपीएस अफसरों और वामपंथियों के कब्जे से मुक्त करवाने के लिए ही बालियान चुनाव में उतरे हैं।’ सो, जो लोग निशिकांत को पसंद नहीं करते थे उनके वोट भी रूढ़ी की तरफ चले गए।
कौन होगा देश का नया उप राष्ट्रपति? : देश के नए उप राष्ट्रपति को लेकर कयासों के दौर जारी हैं। पर भाजपा से जुड़े सूत्र खुलासा करते हैं कि दरअसल नए उप राष्ट्रपति के चयन को लेकर अपनी मंशा स्पष्ट कर दी है। सूत्र बताते हैं कि भाजपा ने अपने खास सहयोगियों को हिदायत दी है कि ‘अगले उप राष्ट्रपति के तौर पर उसी व्यक्ति का चुनाव हो जिन्हें नियम कानूनों की सही समझ हो और भाजपा जिनकी रगों में गहरे से दौड़ती हो।’ सूत्र बताते हैं कि फिलहाल दो नामों पर गंभीरता से विचार चल रहा है। इनमें से एक भाजपा के पुराने ब्राह्मण नेता हैं और दूसरे हैं थावरचंद गहलोत जो जाति से दलित हैं।