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इस अनोखे गांव का हर कुत्ता है करोड़पति, जानिये कैसे आयी इनके पास इतनी संपत्ति

गुजरात में एक गांव है जहां करोड़पति कुत्ते रहते है, ये बात सुनने में विचित्र लगती है, लेकिन ये सच्चाई भी है। यह जानकारी इसलिए भी हैरत भरी है क्योंकि ये करोड़पति कुत्ते किसी धन्ना सेठ के नहीं हैं, बल्कि गांव के आम आवारा कुत्ते हैं।

12:58 PM Oct 21, 2022 IST | Ujjwal Jain

गुजरात में एक गांव है जहां करोड़पति कुत्ते रहते है, ये बात सुनने में विचित्र लगती है, लेकिन ये सच्चाई भी है। यह जानकारी इसलिए भी हैरत भरी है क्योंकि ये करोड़पति कुत्ते किसी धन्ना सेठ के नहीं हैं, बल्कि गांव के आम आवारा कुत्ते हैं।

गुजरात में एक गांव है जहां करोड़पति कुत्ते रहते है, ये बात सुनने में विचित्र लगती है, लेकिन ये सच्चाई भी है। यह जानकारी इसलिए भी हैरत भरी है क्योंकि ये करोड़पति कुत्ते किसी धन्ना सेठ के नहीं हैं, बल्कि गांव के आम आवारा कुत्ते हैं। करोड़पति कुत्तों के इस गांव का नाम पंचोत है और यह गुजरात के मेहसाणा जिले में स्थित है।
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दरअसल, गांव में एक ट्रस्ट संचालित होता है, जिसका नाम है ‘मध नी पति कुतारिया ट्रस्ट’ Madh ni Pati Kutariya Trust’। इस ट्रस्ट के पास 21 बीघा जमीन है। हालांकि यह जमीन कुत्तों के नाम नहीं है, लेकिन इस भूमि से होने वाली आय (खेती की नीलामी) को कुत्तों के लिए रखा जाता है। राधनपुर-मेहसाना बाईपास पर स्थित इस जमीन की कीमत तेजी से बढ़ी है और वर्तमान में इसकी कीमत साढ़े तीन करोड़ रुपए प्रति बीघा से अधिक है।
ट्रस्ट के अध्यक्ष के मुताबिक जानवरों के लिए दया पंचोत गांव वर्षों पुरानी परंपरा का हिस्सा है। ‘मध नी पति कुतारिया ट्रस्ट’ की शुरुआत जमीन के टुकड़े को दान करने की परंपरा से हुई। उस वक्त इसे बनाए रखना आसान नहीं था क्योंकि जमीन की कीमतें ज्यादा नहीं थी। कुछ मामलों में जमीन का दान लोगों ने मजबूरी में किया। दरअसल, भूमि के मालिक टैक्स का भुगतान करने में असमर्थ थे अत: उन्होंने जमीन दान कर इस देनदारी से मुक्ति पा ली।
उन्होंने बताया कि करीब 70 साल पहले पूरी जमीन ट्रस्ट के आधीन आ गई, लेकिन चिंता इस बात की है कि भूमि के रिकॉर्ड में अभी भी मूल मालिक का ही नाम है। साथ ही जमीन की कीमतें भी काफी बढ़ चुकी हैं। इसलिए मालिक फिर से इसे हासिल करने के लिए भी सामने आ सकते हैं। हालांकि इस जमीन को जानवरों और समाज सेवा के लिए दान किया गया था।
इस ट्रस्‍ट से जुड़े लोगों का यह भी कहना है कि 15 लोगों पर इन कुत्‍तों के खान-पान (रोटला खिलाना) की जिम्‍मेदारी है। जिस चक्‍की पर इस ट्रस्‍ट से जुड़ा अनाज पिसाई के लिए जाता है, वह चक्‍कीवाला भी इसकी पिसाई के पैसे नहीं लेता है। यहां के लोगों की धार्मिक प्रवृत्ति को इस सेवा-भाव की बड़ी वजह बताया जा रहा है। 2015 में ट्रस्‍ट ने एक विशेष निर्माण के तहत ‘रोटला घर’ का निर्माण कराया। वहां पर दो महिलाएं 20-30 किग्रा आटे से रोजाना 80 रोटला का निर्माण करती हैं। इन सबके बीच यह भी सही है कि केवल कुत्‍तों ही नहीं बल्कि पक्षियों, बंदरों और गायों की देखभाल के‍ लिए भी इस गांव ने बंदोबस्‍त किए हैं।
धर्मार्थ परंपरा के नाम पर शुरू हुआ यह ट्रस्ट केवल कुत्ते की सेवा तक सीमित नहीं है। ट्रस्ट के स्वयंसेवक सभी पक्षियों और जानवरों की सेवा करते हैं। ट्रस्ट को पक्षियों के लिए 500 किलोग्राम अनाज प्राप्त होता है। ट्रस्ट ने 2015 में एक इमारत का निर्माण किया, जिसे ‘रोटला घर’ नाम दिया गया।
यहां दो महिलाएं प्रतिदिन प्रतिदिन 20-30 किलो आटे से करीब 80 रोटला (रोटियां) बनाती हैं। स्वयंसेवक रोटला और फ्लैटब्रेड को ठेले पर रखकर सुबह साढ़े सात बजे इसका वितरण शुरू करते हैं। इसमें करीब एक घंटे का समय लगता है। इतना ही नहीं ट्रस्ट द्वारा स्थानीय कुत्तों के अलावा बाहरी कुत्तों को भी खाना उपलब्ध करवाया था। महीने में दो बार इन्हें लड्‍डू खिलाए जाते हैं।
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