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1 मई को मनाई जाएगी वैशाख मास की विनायक चतुर्थी, 21 दूर्वा दल चढ़ाने से प्रसन्न होंगे गजानन

विनायक चतुर्थी पर गणेश पूजन से मिलेगा ज्ञान और धैर्य का आशीर्वाद

08:08 AM Apr 30, 2025 IST | IANS

विनायक चतुर्थी पर गणेश पूजन से मिलेगा ज्ञान और धैर्य का आशीर्वाद

1 मई को मनाई जाएगी वैशाख मास की विनायक चतुर्थी  21 दूर्वा दल चढ़ाने से प्रसन्न होंगे गजानन
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विनायक चतुर्थी का पर्व 1 मई को मनाया जाएगा, जिसमें भगवान गणेश की पूजा का विशेष महत्व है। इस दिन गणेश जी की उपासना से सुख-समृद्धि और ज्ञान की प्राप्ति होती है। गणेश की मूर्ति पर 21 दूर्वा दल चढ़ाने से गजानन प्रसन्न होते हैं।

हर मास के शुक्ल पक्ष में आने वाली चतुर्थी को विनायकी या विनायक चतुर्थी व्रत कहते हैं। विनायक प्रथम पूज्य श्री गणेश के लिए प्रयुक्त होता है, इससे स्पष्ट है कि यह दिवस भगवान श्री गणेश को समर्पित है। इस दिन गणपति का पूजन-अर्चन करना लाभदायी माना गया है।

पंचांगानुसार 30 अप्रैल 2025 को दोपहर 2:12 बजे से होगा और इसका समापन 1 मई 2025 को प्रातः 11:23 बजे होगा। उदया तिथि के अनुसार विनायक चतुर्थी का पर्व 1 मई 2025, गुरुवार को मनाया जाएगा।

दृक पंचांग में इसकी महत्ता का वर्णन है। लिखा है कि विनायक चतुर्थी को वरद विनायक चतुर्थी के नाम से भी जाना जाता है। भगवान से अपनी किसी भी मनोकामना की पूर्ति के आशीर्वाद को वरद कहते हैं। जो श्रद्धालु विनायक चतुर्थी का उपवास करते हैं, भगवान गणेश उन्हें ज्ञान और धैर्य का आशीर्वाद देते हैं। ज्ञान और धैर्य दो ऐसे नैतिक गुण हैं, जिसका महत्व सदियों से मनुष्य को ज्ञात है। जिस मनुष्य के पास यह गुण हैं, वह जीवन में काफी उन्नति करता है और मनवान्छित फल प्राप्त करता है।

हिन्दू कैलेंडर के अनुसार विनायक चतुर्थी के दिन गणेश पूजा दोपहर को मध्याह्न काल के दौरान की जाती है। दोपहर के दौरान भगवान गणेश की पूजा का मुहूर्त विनायक चतुर्थी के दिनों के साथ दर्शाया गया है।

इस दिन गणेश की उपासना करने से घर में सुख-समृद्धि, धन-दौलत, आर्थिक संपन्नता के साथ-साथ ज्ञान एवं बुद्धि की प्राप्ति भी होती है। पुराणों के अनुसार शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को विनायकी तथा कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को संकष्टी चतुर्थी कहते हैं।

विनायकी चतुर्थी व्रत के दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठकर नित्य कर्म से निवृत्त होकर स्नान कर लाल रंग के वस्त्र धारण करने चाहिए। इसके बाद दोपहर पूजन के समय अपने-अपने सामर्थ्यानुसार सोने, चांदी, पीतल, तांबा, मिट्टी अथवा सोने-चांदी से निर्मित गणेश प्रतिमा स्थापित कर संकल्प लें। फिर षोडशोपचार पूजन कर श्री गणेश की आरती करें। तत्पश्चात श्री गणेश की मूर्ति पर सिन्दूर चढ़ाएं। इसके साथ ही गणेश जी का प्रिय मंत्र- ‘ओम गं गणपतयै नमः’ बोलते हुए 21 दूर्वा दल चढ़ाना चाहिए।

इसके बाद श्री गणपति को बूंदी के लड्डू का भोग श्रेष्ठ माना जाता है। इनमें से 5 लड्डुओं का दान ब्राह्मणों को किया जाता है और 5 भगवान के चरणों में रख बाकी प्रसाद में वितरित कर दिया जाता है। पूजन के समय श्री गणेश स्तोत्र, अथर्वशीर्ष, संकटनाशक गणेश स्तोत्र का पाठ करना चाहिए।

वहीं, संध्या को गणेश चतुर्थी कथा, गणेश स्तुति, श्री गणेश सहस्रनामावली, गणेश चालीसा का स्तवन करें। संकटनाशन गणेश स्तोत्र का पाठ कर श्री गणेश की आरती करें तथा ‘ओम गणेशाय नमः’ मंत्र की माला जपने से मनोरथ पूरे होते हैं।

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