शान्त लद्दाख में भड़की हिंसा
चीन की सीमा से लगे इलाके लद्दाख में हिंसा का भड़कना वास्तव में चिन्ता की बात है। यह इलाका बहुत शान्त क्षेत्र समझा जाता है, जहां के बहुसंख्यक बौद्ध व जनजातीय निवासी शान्ति प्रिय माने जाते हैं। 5 अगस्त, 2019 तक जम्मू-कश्मीर राज्य का हिस्सा रहा यह इलाका एेतिहासिक तौर पर भारतीयता के रंग में रंगा रहा है और यहां के निवासियों ने हर संकट के समय देश पर अपने प्राण न्यौछावर करने में भी अग्रणी भूमिका निभाई है। यह इलाका जम्मू-कश्मीर का हिस्सा 19वीं शताब्दी में महाराजा गुलाब सिंह के जम्मू-कश्मीर के राजा बनने के साथ ही बना। इतना ही नहीं अक्साई चिन तक महाराजा गुलाब सिंह का राज था। जब अक्तूबर 1947 में जम्मू-कश्मीर का भारतीय संघ में विलय हुआ तो लद्दाख भी भारत का अभिन्न अंग बना। मगर 5 अक्तूबर, 2019 को जब जम्मू-कश्मीर राज्य का विशेष दर्जा संसद के माध्यम से समाप्त किया गया तो इस पूरे राज्य को दो केन्द्र प्रशासित राज्यों में भी विभक्त कर दिया गया और लद्दाख को जम्मू-कश्मीर से पृथक केन्द्र प्रशासित क्षेत्र बनाया गया। एक ओर जहां जम्मू-कश्मीर में विधानसभा का प्रावधान किया गया वहीं दूसरी ओर लद्दाख को सीधे केन्द्र के नियन्त्रण में उपराज्यपाल के माध्यम से दिया गया। इसके बाद से ही लद्दाख के लोग मांग करते आ रहे हैं कि उन्हें भी राज्य का दर्जा दिया जाये और इस प्रदेश को संविधान की छठी अनुसूची में कुछ अन्य पूर्वोत्तर राज्यों की भांति शामिल किया जाये जहां कि जनजातीय या आदिवासी लोग काफी संख्या में रहते हैं।
संविधान की छठी अनुसूची जनजातीय लोगों को विशेष प्राथमिकता देती है। शुरू में केन्द्र में शासनारूढ़ भारतीय जनता पार्टी भी इस मांग के पक्ष में थी मगर बाद में इसने अपना रुख बदल लिया। भाजपा के इस बदले रुख के प्रति लद्दाख के लोगों में खिन्नता थी। इसके साथ ही लद्दाख के गांधीवादी नेता श्री सोनम वांगचुक लोगों की इस मांग को आवाज भी दे रहे थे। वह कई बार आमरण अनशन पर भी बैठे और अपनी मांग के समर्थन में दिल्ली तक की यात्रा भी की। दूसरी तरफ केन्द्र सरकार के सामने जब लोगों की मांग का दबाव बढ़ने लगा तो उसने राज्य के लोकतान्त्रिक संगठनों के साथ वार्तालाप शुरू की। मगर इस वार्तालाप में वांगचुक को शामिल नहीं किया। केन्द्र सरकार का कहना है कि राज्य के आन्दोलनकारियों के प्रतिनिधियों से सरकार की वार्ता आगे बढ़ रही थी मगर श्री वांगचुक के उत्तेजक बयानों से युवा भड़क गये और वे हिंसा पर उतारू हो गये। वांगचुक ने हालांकि आमरण अनशन का रास्ता ही अपनाया हुआ था मगर इस हिंसा के बाद उन्होंने अपना अनशन समाप्त कर दिया और अपने गांव लौट गये।
सरकार का कहना है कि कुछ राजनीतिक शक्तियां इस वार्तालाप की प्रगति से खुश नहीं थीं अतः उन्होंने युवाओं को भड़काने का काम किया और नेपाल जैसे जेन-जेड आन्दोलनों का सन्दर्भ दिया। लद्दाख की राजधानी लेह में कल भड़की हिंसा के दौरान पुलिस को गोली चलानी पड़ी जिसमें छह लोगों की जान गई और 50 से ज्यादा लोग जख्मी हुए। जख्मियों में कुछ पुलिसकर्मी भी शामिल हैं। हिंसा के बाद लेह में कर्फ्यू लगा दिया गया है और लोगों के इकट्ठा होने को प्रतिबन्धित कर दिया गया है। लद्दाख के उपराज्यपाल श्री कवीन्द्र गुप्ता हैं जो जम्मू-कश्मीर की महबूबा सरकार में वरिष्ठ मन्त्री रहे हैं। अतः वह लद्दाख के हालात से अच्छी तरह वाकिफ बताये जाते हैं। उनके अनुसार लेह में जो कुछ भी कल हुआ वह तुरंत प्रतिक्रिया नहीं थी, बल्कि हिंसा एक साजिश के तहत हुई है। सरकार इसका पता लगाने का प्रयास करेगी। सरकार उन लोगों को बख्शेगी नहीं जिन्होंने इस छोटे से राज्य का वातावरण खराब किया है। दूसरी तरफ केन्द्रीय गृह मन्त्रालय ने एक वक्तव्य जारी कर कहा है कि श्री वांगचुक ने विगत 10 सितम्बर को अपनी भूख हड़ताल इस मांग के समर्थन में शुरू की थी कि लद्दाख को एक पूर्ण राज्य का दर्जा दिया जाये और इसे छठी अनुसूची में शामिल किया जाये। जबकि यह सर्व विदित है कि केन्द्र सरकार लद्दाख की लोकतान्त्रिक शक्तियों व कारगिल लोकतान्त्रिक गठबन्धन के साथ इसी विषय पर वार्तालाप कर रही है। इन संस्थाओं से बातचीत के कई दौर उच्च स्तरीय समिति व उपसमिति के माध्यम से हो चुके थे। इसके साथ इसके नेताओं के साथ अनौपचारिक बातचीत का दौर भी जारी रहा था। बातचीत के इस तन्त्र के स्थापित होने के बाद सकारात्मक परिणाम आने लगे थे जिसमें लद्दाख के जनजातीय लोगों का आरक्षण 45 प्रतिशत से बढ़ाकर 64 प्रतिशत किया जाना शामिल था तथा महिलाओं को जनजातीय परिषदों में एक-तिहाई आरक्षण दिया जाना तय हो गया था। साथ ही भोटी व पुर्गी भाषाओं को अाधिकारिक भाषा घोषित करने पर फैसला हो चुका था। इसके साथ ही 1800 सरकारी रिक्तियों को भरे जाने की प्रक्रिया भी शुरू हो गई थी परन्तु कुछ राजनीतिक रूप से प्रेरित तत्वों को यह रास नहीं आ रहा था और ये तत्व वार्तालाप में बाधा पहुंचाना चाहते थे। जिसकी वजह से एेसे तत्वों द्वारा राज्य में हिंसा भड़काने के प्रयास किये गये । जबकि आगामी 6 अक्तूबर को उच्च स्तरीय वार्तातन्त्र की अगली बैठक होनी निश्चित हुई थी। मगर इससे पहले ही हिंसा भड़का दी गई।