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बिहार में मतदाता सूची का​ पुनरीक्षण

04:04 AM Jun 30, 2025 IST | Aditya Chopra
बिहार में मतदाता सूची का​ पुनरीक्षण
पंजाब केसरी के डायरेक्टर आदित्य नारायण चोपड़ा

बिहार चुनावों से पहले चुनाव आयोग द्वारा मतदाता सूची का पुनरीक्षण शुरू कर दिया गया है। महाराष्ट्र चुनाव के बाद से ही मतदाता सूची को लेकर कांग्रेस नेता राहुल गांधी और अन्य विपक्षी नेता तीखे तेवर अपनाएं हुए थे। इसके बाद चुनाव आयोग ने मतदाता सूची का सत्यापन कराने का फैसला किया। अब जबकि चुनाव आयोग ने फैसले के मुताबिक काम करना शुरू किया। उस पर भी घमासान शुरू हो गया है। कांग्रेस, राजद, तृणमूल कांग्रेस, प्रशांत किशोर की जन सुराज पार्टी, वामपंथी दलों और बिहार की वीआईपी पार्टी ने चुनाव आयोग को लेकर फिर से सवाल खड़े कर दिए हैं। अगर प्रथम दृष्टि से देखा जाए तो चुनाव आयोग ने यह कदम जनप्रतिनिधित्व अधिनियम 1950 की धारा 21(3) और मतदाता पंजीकरण ​िनयम 1960 के तहत उठाया है। जिसके अंतर्गत आयोग ​किसी भी समय मतदाता सूची के विशेष संशोधन का आदेश दे सकता है। इस संशोधन के तहत सभी नागरिकों को व्यक्तिगत रूप से गणना फॉर्म भरना होगा और 1 जनवरी 2003 के बाद पंजीकृत सभी मतदाताओं को नागरिकता प्रमाण के दस्तावेज जमा करने होंगे। यह प्रक्रिया 25 जून से शुरू होकर 30 सितंबर तक चलेगी और अंतिम मतदाता सूची का प्रकाशन इसी दिन किया जाएगा।
चुनाव आयोग ने गहन पुनरीक्षण के पीछे कई कारण गिनाए हैं। इनमें शहरीकरण की तेज गति, आंतरिक पलायन, मृतकों के नाम सूची से हटाने में देरी, नए योग्य युवाओं का पंजीकरण और कथित रूप से अवैध विदेशी नागरिकों के नामों का शामिल होना शामिल है। आयोग का कहना है कि इन सभी कारणों से मतदाता सूची की शुद्धता प्रभावित होती है और इसे ठीक करने के लिए यह विशेष अभ्यास आवश्यक है। इस गहन पुनरीक्षण के दौरान बूथ लेवल ऑफिसर (बीएलओ) घर-घर जाकर प्रत्येक मतदाता से व्यक्तिगत जानकारी लेंगे। इसके लिए हर मतदाता को एक व्यक्तिगत गणना फॉर्म भरना होगा। 2003 के बाद मतदाता सूची में नाम जुड़वाने वालों को अपने नागरिक होने का प्रमाण भी देना होगा। इसमें पासपोर्ट, जन्म प्रमाण पत्र, माता-पिता के मतदाता पहचान पत्र, पेंशन भुगतान आदेश, भूमि रिकॉर्ड, स्थानीय निकाय द्वारा जारी निवास प्रमाणपत्र आदि दस्तावेज मान्य माने जाएंगे। इससे पहले, बीएलओ घरों में जाकर ‘गणना पैड’ भरवाते थे जो परिवार के मुखिया द्वारा भर दिया जाता था लेकिन इस बार हर व्यक्ति को अलग-अलग दस्तावेज और फॉर्म भरने होंगे। साथ ही नए मतदाता पंजीकरण के लिए फॉर्म 6 में अब एक अतिरिक्त घोषणापत्र जोड़ा गया है, जिसमें नागरिकता का स्पष्ट प्रमाण देना अनिवार्य होगा।
1 जुलाई 1987 और 2 दिसम्बर 2004 के बीच जन्में लोगों को मतदाता सूची में अपना नाम दर्ज कराने के ​िलए माता-पिता के जन्म प्रमाण पत्र के साथ घोषणा पत्र जमा कराना होगा। विपक्षी इंडिया गठबंधन पहले तो मतदाताओं की अचानक बढ़ती संख्या पर सवाल उठा रहा था लेकिन अब चुनाव आयोग की कार्रवाई पर भी उसे सा​िजश की बू आ रही है। इंडिया गठबंधन के नेताओं ने चुनाव आयोग के आदेश को गरीबों से मतदान अधिकार छीनने की सा​िजश बताया आैर कहा कि संशोधन अभ्यास राज्य बहिष्कृत करने का जो​िखम उठाएगा। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने आरोप लगाया है कि सत्यापन प्रक्रिया की आड़ में चुनाव आयोग बंगाल के युवाओं को निशाना बना रहा है। ममता बनर्जी ने तो इसे एनआरसी से भी अधिक खतरनाक करार दिया। बिहार में चुनाव इसी साल होने जा रहे हैं जबकि अन्य पांच राज्यों पश्चिम बंगाल, केरल, असम, पुंडुचेरी और तमिलनाडु में चुनाव अगले वर्ष प्रस्तावित है। विपक्ष का आरोप है कि इस प्रक्रिया से ग्रामीण लोग बाहर रह जाएंगे। फिर सूची बढ़ाने के लिए फर्जी मतदाताओं के नाम शामिल किए जाएंगे। इस बात का भी संदेह व्यक्त किया गया है कि भाजपा के दबाव में चुनाव आयोग उन लोगों के नाम मतदाता सूची से न हटा दे जो विपक्षी दलों के समर्थक माने जाते हैं। यह भी सवाल उठाया जा रहा है कि जो काम दो साल में होता है उसको 25 दिन में कैसे पूरा कर लिया जाएगा। यह एक तरफ से बैक डोर से एनआरसी लागू करने जैसा है। चुनाव आयोग ने विपक्ष के आरोपों को देखते हुए मतदाता सूची में संशोधन कर सही कदम उठाया है लेकिन विपक्ष अपना राग अलाप रहा है।
चुनाव आयोग को न सिर्फ निष्पक्ष होना चाहिए बल्कि निष्पक्ष दिखना चाहिए। यह पहली बार नहीं है कि जब चुनाव आयोग और विपक्ष आमने-सामने हो। पार्टियों की संख्या, मतदाताओं की संख्या, पोलिंग बूथों की संख्या सब बढ़े हैं। इसके साथ-साथ चुनाव आयोग के खिलाफ शिकायतें भी बढ़ी हैं। ईवीएम से लेकर मत प्रतिशत की जानकारी देने तक को लेकर बहुत से संदेह पहले ही जताए जाते रहे हैं। यद्यपि आयोग सभी आरोपों को खारिज करता रहा है लेकिन स्वतंत्र संवैधा​िनक संस्था की साख भी प्रभावित हुई है। महाराष्ट्र में 5 साल में जितने मतदाता नहीं बढे़ उससे ज्यादा पांच महीने में कैसे बढ़ गए। इस पर भी चुनाव आयोग स्पष्ट उत्तर नहीं दे पाया। चुनाव आयोग को बिहार की जनता को और विपक्ष के नेताओं को भरोसा दिलाना होगा कि यह प्र​क्रिया पारदर्शी, निष्पक्ष हो और इसमें कोई गलती नहीं की जाएगी। यह सारा काम इतनी कुशलता से होना चाहिए कि मतदाताओं और राजनीतिक दलों को कोई नुक्सान नहीं पहुंचे।

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