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राजधानी में मतदान उत्सव

देश की राजधानी दिल्ली में आज विधानसभा चुनावों के लिए मतदान…

11:20 AM Feb 04, 2025 IST | Aditya Chopra

देश की राजधानी दिल्ली में आज विधानसभा चुनावों के लिए मतदान…

देश की राजधानी दिल्ली में आज विधानसभा चुनावों के लिए मतदान होगा। इन चुनावों में सत्तारूढ़ आम आदमी पार्टी (आप), भाजपा व कांग्रेस के प्रत्याशियों के बीच कड़ी टक्कर होने की संभावना है जिससे यह संघर्ष त्रिकोणात्मक हो गया है। विधानसभा में कुल 70 सीटें हैं जिन पर विभिन्न दलों के छह सौ से अधिक प्रत्याशी अपना भाग्य आजमा रहे हैं। इन सभी प्रत्याशियों के भाग्य का फैसला दिल्ली के डेढ़ करोड़ मतदाता आज ईवीएम में कैद कर देंगे। चुनाव जीतने के लिए तीनों ही प्रमुख दलों ने मतदाताओं को लोक लुभावन नारों के साथ लाभप्रद प्रोत्साहन स्कीमें भी दी हैं जिनमें हर गरीब महिला को धनराशि दिया जाना भी शामिल है। भाजपा व कांग्रेस 2500 रु. माहवार की धनराशि देंगी जबकि आप 2100 रु. प्रतिमाह देगी। महिलाओं के लिए मुफ्त बस यात्रा की स्कीम को तीनों ही दलों ने जारी रखने का वचन दिया है। इसके साथ ही महंगाई से निपटने के लिए और भी कई अन्य वादे किये गये हैं। इस पार्टी ने मन्दिरों के पुजारी पंडितों व गुरुद्वारों के ग्रन्थियों को भी 18 हजार रु. मासिक मानदेय देने का वादा किया है। जबकि कांग्रेस वादा कर रही है कि वह गरीब परिवारों को 500 रु. में ईंधन गैस सिलेंडर देने के साथ ही एक राशन किट भी देगी और बेरोजगार युवाओं को एक साल की नौकरी प्रशिक्षु कार्यक्रम के अन्तर्गत देगी जिसमे साढे़ आठ हजार रु. मासिक की तनख्वाह दी जायेगी।

भाजपा घोषणा कर रही है कि वह दिल्ली में 50 हजार सरकारी नौकरियां देगी और स्वरोजगार व नौकरियों के 20 लाख अवसर सृजित करेगी। तीनों ही पार्टियां अपने-अपने घोषणापत्रों में ये वादे करके मतदाताओं को लुभाने का प्रय़ास कर रही हैं। मगर दिल्ली के मतदाता बहुत प्रबुद्ध समझे जाते हैं क्योंकि वे लोकसभा चुनावों में जिस पार्टी को वोट देते हैं उसी पार्टी को राज्य स्तर के चुनावों में हरा भी देते हैं। परन्तु एेसा कोई दस्तूर भी नहीं है कि हर चुनाव में यही नजारा पेश किया जाये। देश का दिल समझी जाने वाली दिल्ली को ‘मिनी इंडिया’ भी कहा जाता है क्योंकि यहां आकर बसने वाले लोगों में भारत के लगभग सभी प्रदेशों के लोग होते हैं। ये लोग ही मिल कर दिल्ली को बनाते हैं। दिल्ली के डेढ़ करोड़ मतदाता यह अच्छी तरह जानते हैं कि किस पार्टी की क्या हैसियत है और किस पार्टी में उनकी समस्याओं को सुलझाने की क्षमता है। वे कभी कांग्रेस पर मेहरबान हो जाते हैं तो कभी भाजपा पर और कभी ‘आप’ पार्टी को छप्पर फाड़ कर समर्थन दे देते हैं। दिल्ली एेसा अर्ध प्रदेश है जिसका प्रशासन तीन स्तरों नगर निगम, राज्य सरकार व केन्द्र सरकार के तहत चलता है। इसे हम बहुत उलझा हुआ प्रशासकीय तन्त्र भी कह सकते हैं।

अतः सवाल उठना लाजिमी है कि दिल्ली में जो भी राज्य सरकार हो वह तीनों जगह समन्वय स्थापित करने में सिद्धहस्त हो। दिल्ली वाले इस रहस्य को न समझते हों, एेसा नहीं है क्योंकि वह लगभग हर चुनाव में अपनी वरीयताएं बदलते रहते हैं। कभी वह कांग्रेस को अपनी बागडोर पकड़ा देते हैं तो कभी भाजपा को तो कभी केजरीवाल की पार्टी आप को। इसका प्रमाण दिल्ली का पुराना चुनावी इतिहास है। 1967 के लोकसभा चुनावों में दिल्ली वालों ने राजधानी की सभी सीटों पर जनसंघ (भाजपा) को जिता दिया था केवल बाहरी दिल्ली की सीट को छोड़कर। इसके साथ ही महानगर परिषद चुनाव भी जनसंघ के पक्ष में गये। वहीं 1971 में इन्होंने सभी सीटों पर कांग्रेस को जिताया मगर इसी वर्ष हुए दिल्ली नगर निगम के चुनावों में इन्होंने जनसंघ को जिता दिया जबकि महानगर परिषद (उस समय विधानसभा नहीं थी) चुनावों में भी कांग्रेस को जिताया। इसी प्रकार 2014 से लेकर पिछले तीन लोकसभा चुनावों में दिल्ली वासी भाजपा को सभी सात सीटों पर जिता रहे हैं मगर राज्य विधानसभा में आप पार्टी का डंका बजा रहे हैं। इससे पहले लगातार तीन चुनावों में इन्हीं मतदाताओं ने कांग्रेस को जिताया था। मगर जब 90 के दशक में महानगर परिषद के स्थान पर विधानसभा बनी तो सबसे पहला मौका इन्होंने भाजपा को ही दिया था।

इससे कम से कम इतना तो कहा ही जा सकता है कि कोई भी पार्टी दिल्ली वालों के लिए अछूती नहीं है। मगर तस्वीर का दूसरा पहलू यह भी है दिल्ली वाले मतदान में उस जोश का प्रदर्शन नहीं करते जिसकी अपेक्षा उनसे की जाती है। विगत दिल्ली विधानसभा चुनावों में केवल 62.82 प्रतिशत ही मतदान हुआ था जो कि पिछले 2015 के चुनावों से 4.65 प्रतिशत कम था मगर 2019 के लोकसभा चुनावों में हुए मतदान से 2.2 प्रतिशत अधिक था। इसका मतलब यह हुआ कि दिल्ली वाले 60 प्रतिशत के आसपास ही मतदान करते आ रहे हैं। इस लकीर को तोड़े जाने की सख्त जरूरत है तभी दिल्ली देश का दिल कहलायेगी क्योंकि भारत के ग्रामीण इलाकों में मतदान 70 प्रतिशत से ऊपर होता आ रहा है जिनमे पूर्वोत्तर के छोटे-छोटे प्रदेश हमेशा आगे रहते हैं। दिल्ली वाले मतदाताओं को यह बताने की जरूरत नहीं है कि मतदाता ही लोकतन्त्र का असली मालिक होता है और इसके एक वोट की कोई भी व्यक्ति कीमत नहीं लगा सकता। इसीलिए इसे ‘अमूल्य’ वोट कहा जाता है। अतः एेसे बेशकीमती वोट के अधिकार का सभी मतदाताओं को प्रयोग करके लोकतन्त्र के प्रहरी बनने का काम करना चाहिए और मतदान को लोकतन्त्र के उत्सव की तरह मनाना चाहिए।

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