बिहार में वीवीपैट पर्चियां !
भारत के संविधान निर्माता चुनावी काल में चुनाव आयोग को एेसी असीमित शक्तियां देकर गये हैं कि लोकतन्त्र में हर स्तर पर लोक (जनता) तन्त्र पर प्रभावी रहे। चुंकि लोकतन्त्र का अर्थ लोगों का तन्त्र होता है अतः तन्त्र कभी भी लोगों पर भारी नहीं पड़ना चाहिए। यदि लोकतन्त्र में तन्त्र लोगों पर भारी पड़ने लगेगा तो प्रजातन्त्र की व्यवस्था के सुचारू चलने की उम्मीद क्षीण होती जायेगी। इस मामले में चुनाव आयोग भारत में लोकतन्त्र स्थापित करने वाले संस्थानों में सबसे अग्रणी भूमिका निभाता है क्योंकि वही लोगों के तन्त्र की आधारशिला रखता है। भारत के राजनीतिक शासनतन्त्र को ही लोकतन्त्र इसलिए कहा जाता है क्योंकि आम जनता राजनीतिक दलों की मार्फत ही अपना तन्त्र स्थापित करने की इच्छा जताती है। भारत ने आजाद होने के बाद संसदीय प्रणाली का लोकतन्त्र अपनाया। इस तन्त्र में बहुमत का शासन तो होता है मगर अल्पमत में आये राजनीतिक दलों को भी सत्ता में अपनी भागीदारी इस प्रकार निभानी पड़ती है कि कभी भी बहुमत के नशे में चूर होकर कोई भी राजनीतिक दल मनमानी न कर सके और संविधान की सीमा में रहे।
लोकतन्त्र में भागीदारी का नमूना संसदीय लोकतन्त्र की मार्फत ही सफल हो सकता है क्योंकि सत्ता पक्ष का चुनाव भी जनता करती है और विपक्ष का चुनाव भी यही करती है। इन सब तथ्यों के आलोक में भारत के चुनाव आयोग की भूमिका बहुत संजीदा हो जाती है इसीलिए हमारे संविधान निर्माताओं ने चुनाव आयोग को सरकार का हिस्सा नहीं बनाया और इसे स्वतन्त्र व स्वायत्त संस्थान का दर्जा दिया। चुनाव आयोग को हमारे संविधान निर्माताओं ने सीधे लोक (लोगों) के प्रति जवाबदेह बनाया और इसे सीधे संविधान से शक्ति लेकर अपना कार्य करने में सक्षम बनाया। चुनाव आयोग की यह संवैधानिक जिम्मेदारी तय की गई कि वह सभी राजनीतिक दलों के लिए चुनाव के समय एक जैसी परिस्थितियों का निर्माण करेगा जिससे उसकी निगाह में पहले से ही सत्तारूढ़ दल और अन्य दलों के बीच किसी प्रकार का अन्तर न रहे। चुनाव के समय चुनाव आयोग को इस बात से कोई मतलब नहीं होता कि कौन सा दल हुकूमत में है और कौन सा विपक्ष में। उसके समक्ष सभी राजनीतिक दल एक समान होते हैं। संविधान के अनुसार जब किसी राज्य में चुनाव होते हैं तो उस प्रदेश की शासन व्यवस्था चुनाव आयोग के नियन्त्रण में आ जाती है। बेशक पहले से स्थापित सरकार हुकूमत पर काबिज रहती है मगर उसके सभी मन्त्री आदि अपने राजनीतिक दलों के प्रतिनिधि ही हो जाते हैं। यह नियम राष्ट्रीय चुनावों के समय भी रहता है। चुनाव के समय कोई मन्त्री या मुख्यमन्त्री से लेकर प्रधानमन्त्री तक चुनाव प्रचार करते हैं तो वे अपनी पार्टी के खर्चे पर ही चुनाव प्रचार करते हैं। बेशक उनकी सुरक्षा आदि से जुड़े शिष्टाचार का पालन किया जाता है मगर उनके मन्त्री होने का असर चुनाव आयोग पर नहीं रहता।
आजकल बिहार में चुनाव चल रहा है जिसके पहले चरण का मतदान विगत 6 नवम्बर को हो चुका है और दूसरे व अन्तिम चरण का मतदान आगमी 11 नवम्बर को होना है। मतदान से वोटों की गणना होने तक के समय के भीतर मतपेटियों या ईवीएम मशीनों की सुरक्षा की गारंटी देना चुनाव आयोग का ही काम होता है। यह गारंटी परोक्ष रूप से भारत के संविधान द्वारा ही चुनाव आयोग के माध्यम से दी जाती है परन्तु बिहार में विगत 6 नवम्बर को हुए मतदान की ईवीएम मशीनों में लगी वीवीपैट मशीनों की रसीदी पर्चियां सड़कों पर पड़ी मिलती हैं तो इसकी सीधी जिम्मेदारी चुनाव आयोग पर ही जाती है। इसका सीधा मतलब यही निकलता है कि चुनाव आयोग अपनी जिम्मेदारी पूरी करने में असमर्थ रहा है। बिहार से ईवीएम मशीनों के रखरखाव को लेकर जिस प्रकार की शिकायतें मिल रही हैं उससे एेसा लग रहा है कि चुनाव आयोग भारी गफलत में है और वह अपने कारिन्दों की मार्फत मशीनों की सुरक्षा नहीं कर पा रहा है। इस स्थित को लेकर यदि विपक्षी दल आग-बबूला हो रहे हैं तो यह जायज ही माना जायेगा। अतः चुनाव आयोग को इस बाबत तुरन्त स्पष्टीकरण देना चाहिए क्योंकि ईवीएम मशीनों में जनता की वह इच्छा कैद है जिसे जनादेश कहा जाता है और लोकतन्त्र जनादेश से ही चलता है।
हमें ध्यान रखना चाहिए कि वर्तमान समय आधुनिकतम टेक्नोलॉजी का समय है जिसमें मशीनों की सुरक्षा के लिए कैमरे हर समय मौजूद रहते हैं। चुनाव के बाद मशीनों को जिस स्थान पर रखा जाता है उसे स्ट्रांगरूम या वज्रगृह कहा जाता है जहां मतगणना होने तक 24 घंटे पुलिस का पहरा रहता है। अब वह समय नहीं रहा कि बैलेट पेपरों से भरे कनस्तर मतगणना के बाद कहीं कूड़े के ढेर में पड़े हुए मिलते थे। 1974 में जब उत्तर प्रदेश में मध्यावधि चुनाव हुए थे तो उस समय राज्य के मुख्यमन्त्री स्व. हेमवती नन्दन बहुगुणा थे। इन चुनावों में विपक्षी संगठन कांग्रेस के नेता पूर्व मुख्यमन्त्री स्व. चन्द्रभानु गुप्ता ने लखनऊ की सरोजिनी नगर सीट से चुनाव लड़ा था और वह इन्दिरा गांधी की नई कांग्रेस के प्रत्याशी से चुनाव हार गये थे। मगर परिणाम आने के बाद सरोजिनी नगर के एक इलाके से ही बैलेट पत्रों से भरे कनस्तर बरामद हुए थे। एेसे मामले राज्य में एक-दो स्थानों पर और भी हुए थे लेकिन अब सीसीटीवी का जमाना है जो हर गतिविधि को कैमरे में कैद कर लेता है। एेसे हालात में यदि बिहार के समस्तीपुर जिले की सरायरंजन विधानसभा सीट के एक इलाके में ईवीएम मशीनों से जुड़ी वीवीपैट की पर्चियां हजारों की संख्या में मिलती हैं तो चुनाव आयोग की कार्य प्रणाली पर प्रश्न उठना स्वाभाविक है? ये पर्चियां क्षेत्र के शीतलपट्टी गांव में हजारों की संख्या में मिली जिनसे बच्चे खेल रहे थे। इसकी सूचना मिलने पर जिले के कलैक्टर व पुलिस कप्तान मौके पर पहुंचते हैं और जिलाधीश दो कर्मियों को निलम्बित कर देते हैं। मगर क्या इससे चुनाव आयोग की प्रतिष्ठा बहाल हो सकती है? सरायरंजन से जद (यू) के श्री विजय चौधरी चुनाव लड़ रहे हैं जो कि मुख्यमन्त्री नीतीश कुमार के बहुत करीबी माने जाते हैं। इस सरायरंजन सीट पर 6 नवम्बर को 73 प्रतिशत से भी अधिक मतदान हुआ। लोगों ने अपने अधिकार का जमकर उपयोग किया और लोकतन्त्र के झंडे को फहराया मगर क्या उनकी मेहनत सड़क किनारे पड़ी मिली पर्चियों में बेकार ही चली जायेगी। असली सवाल यही है जिसका उत्तर चुनाव आयोग को देना है।

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