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जंग के लिए तैयार हैं हम

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी लगातार यह संदेश देते रहे हैं कि यह समय युद्ध का नहीं …

11:25 AM May 06, 2025 IST | Aditya Chopra

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी लगातार यह संदेश देते रहे हैं कि यह समय युद्ध का नहीं …

जंग के लिए तैयार हैं हम

* यह सत्य है कि युद्ध अंतिम विकल्प होता है,

यह सत्य है कि इससे यथासंभव बचना चाहिए,

* यह सत्य है कि कलिंग की विभीषिका ने सम्राट अशोक तक को बौद्ध धर्मावलंबी बना दिया,

* यह सत्य है कि युद्ध तो स्वयं एक समस्या है, इससे समस्याओं का निदान कैसा?

* यह सत्य है कि अहिंसा अपने आप में बड़ी ऊंची चीज है, परंतु इन सारे सत्यों के बीच यह भी ख्याल आता है कि :

* राम-रावण युद्ध क्यों नहीं रोका जा सका ?

* भगवान कृष्ण ने तो बहुत प्रयास किए, पर महाभारत क्यों रचना पड़ा,

* गुरु गोविंद सिंह, बंदा बहादुर, महाराणा प्रताप, शिवाजी राजे, क्यों इनकी तलवारें मध्य युग में बराबर खनकती ही रहीं,

* क्यों भारतवर्ष को पाकिस्तान से तीन युद्ध लड़ने पड़े?

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी लगातार यह संदेश देते रहे हैं कि यह समय युद्ध का नहीं। समूचे विश्व को इस समय युद्ध की नहीं बुद्ध की जरूरत है लेकिन भारत को आत्मरक्षा का अधिकार है। मोदी सरकार का राष्ट्रीय संकल्प यह है कि भारत पहलगाम हमले के आतंकियों को चुन-चुन कर मारेगा। कभी-कभी शांति के​ लिए युद्ध भी लड़ने पड़ते हैं। शांति के सारे उपाय जब असफल हो जाएं तो तलवार उठाना ही धर्म है। एक शांतिप्रिय देश होने का अर्थ यह नहीं है कि हम पहलगाम हमले पर कोई प्रतिकार न करें। भारत को आतंकवाद पर करारी चोट करनी होगी। ऐसी स्थिति में भारतीय सेना तो पाकिस्तान से युद्ध लड़ने के लिए तैयार है। इस तरह की तैयारी यह संकेत देती है कि राष्ट्रीय सुरक्षा सिर्फ सैनिकों की ही जिम्मेदारी नहीं है बल्कि आम नागरिकों की भी ​जिम्मेदारी है।

आज की युवा पीढ़ी ने युद्ध नहीं देखे। मेरे पिताश्री अश्विनी कुमार जब भी कभी युद्धों की दास्तान सुनाते थे तो वे बताते थे कि जब भारतीय सेनाओं का काफिला सीमाओं की ओर बढ़ता था तो शहर के दोनों ओर सुबह सवेरे ही लोग सैनिकों के स्वागत के लिए खड़े हो जाते थे और उन्हें खाद्य सामग्री, भोजन, फल भेंट करते थे। शहर भारत माता की जय के नारों से गुंजायमान हो उठता था। मेरे पिता मेरे पूजनीय दादा अमर शहीद रमेश चन्द्र के कंधों पर सवार होकर वीर जवानों को सैल्यूट करते थे। युवा पीढ़ी ने न तो ब्लैक आऊट का दौर देखा है और न ही उसने कभी जंग की तैयारियां देखी हैं। युद्धों का दौर देखने वाले लोग जानते हैं कि आम नागरिकों को ऐसे समय में क्या करना है, कब करना है और कैसे संयम बनाए रखना है। युद्ध के दौरान आम नागरिकों की भूमिका से पूरे देश की मजबूती बढ़ जाती है। यह केवल हमले के बाद की प्रतिक्रिया नहीं बल्कि हमले से पहले की जागरूकता का हिस्सा है।

गृह मंत्रालय ने बुधवार को देशभर के 244 चिन्हित सिविल डिफैंस जिलों में एक मॉकड्रिल आयोजित करने का निर्देश दिया है। इसका मकसद यह जांचना है कि जंग जैसे हालात जैसे हवाई हमलों, मिसाइल हमलों के दौरान आम जनता कितनी जल्दी और असरदार तरीके से प्रतिक्रिया दे सकती है। इस अभ्यास का मकसद अफरा-तफरी से बचाव, घबराहट को कम करना और जानें बचाना है। इस मॉकड्रिल में स्थानीय प्रशासन, सिविल डिफैंस वार्डन, होम गार्ड, एनसीसी, नैशनल सर्विस स्कीम और स्कूल-कॉलेज के छात्र-छात्राएं शामिल होंगे।

संवेदनशील इलाकों और संस्थानों में सायरनों का परीक्षण किया जाएगा ताकि आम लोगों को हमले की स्थिति में सतर्क किया जा सके। स्कूलों, दफ्तरों और समुदाय केंद्रों में वर्कशॉप्स आयोजित होंगी जिनमें लोगों को गिरकर छिपने, नजदीकी शरण स्थलों का पता लगाना, प्राथमिक उपचार और मानसिक स्थिति को संभालना सिखाया जाएगा। इसके अलावा अचानक बिजली बंद कर दी जाएगी ताकि रात के समय हवाई हमले की स्थिति में शहर को दुश्मन की नजर से छिपाया जा सके। यह तकनीक आखिरी बार 1971 की बंगलादेश मुक्ति युद्ध के समय इस्तेमाल हुई थी। सामरिक इमारतों जैसे मिलिट्री बेस, संचार टावर और पावर प्लांट को छिपाने के लिए नकाबपोशी की जाएगी ताकि सैटेलाइट या हवाई निगरानी से बचा जा सके। हाई रिस्क इलाकों से लोगों को सुरक्षित क्षेत्रों में ले जाने का अभ्यास किया जाएगा जिससे वास्तविक स्थिति में आने वाली रुकावटों को पहचाना जा सके।

दुनिया के कई देशों में नागरिकों के लिए सैन्य प्रशिक्षण अनिवार्य है। इनमें इजराइल, दक्षिण कोरिया, थाइलैंड, रूस, चीन, नार्वे, ईरान आदि कई देश शामिल हैं। भारत में ऐसी कोई अनिवार्यता नहीं है। भारत के लोग अपनी जिम्मेदारी को समझते हैं तभी हर संकट की घड़ी में राष्ट्र एकजुट रहा है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का उदाहरण हमारे सामने है जिसने 1962 के युद्ध में जवानों की मदद में पूरी ताकत लगाने, सैनिक आवाजाही मार्गों पर ट्रैफिक व्यवस्था सम्भालने, प्रशासन की मदद तथा रसद की सप्लाई में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। 1965 के युद्ध में संघ के स्वयंसेवकों ने दिल्ली की ट्रैफिक व्यवस्था को सम्भाला था और कश्मीर की हवाई पट्टियों से बर्फ हटाने का काम भी स्वयंसेवकों ने किया था। आज राष्ट्र को ऐसी ही भावना की जरूरत है। एक नागरिक के तौर पर भले ही आपने युद्ध के मैदान में नहीं जाना लेकिन आपको खुद की और लोगों की रक्षा की लड़ाई में शामिल होना है। हर नागरिक का कर्त्तव्य है कि वह अपनी और दूसरे नागरिकों की सुरक्षा के लिए बुनियादी सिविल डिफैंस तकनीकों का प्रशिक्षण हासिल करें। देश के हर युवा तक यह संदेश पहुंचना बहुत जरूरी है-

‘‘हुंकार भर न चीत्कार कर

हर घाव का प्रतिकार कर

यह जग है तो निर्मम बड़ा

तू शत्रु का संहार कर

आघात पर प्रतिघात कर

तू मात्र न संवाद कर

शब्दों की भाषा न समझते

उनसे तू संग्राम कर।’’

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Aditya Chopra

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