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फादर्स-डे हम बुजुर्गों ने तो बचपन में सुना ही नहीं था

पाश्चात्य संस्कृति, जिसे पश्चिमी संस्कृति भी कहा जाता है, की देन है यह पितृ दिवस…

05:46 AM Jun 18, 2025 IST | Vijay Maru

पाश्चात्य संस्कृति, जिसे पश्चिमी संस्कृति भी कहा जाता है, की देन है यह पितृ दिवस…

पाश्चात्य संस्कृति, जिसे पश्चिमी संस्कृति भी कहा जाता है, की देन है यह पितृ दिवस या फादर्स डे को मनाना। हर वर्ष, जून के तीसरे रविवार को जश्न, उपहार और श्रद्धांजलि के साथ मनाया जाता है फादर्स डे। इस वर्ष पिछले रविवार, 15 जून को यह मनाया गया। सुबह से फोन पर शुभकामना संदेश और सोशल मीडिया पर भावनात्मक संदेशों, तस्वीरों और धन्यवाद के साथ भरा पड़ा था। इस दिवस पर बच्चे, युवा और बड़े गले मिलकर और कभी-कभी भव्य इशारों से अपना प्यार व्यक्त करते हैं। बुजुर्गों ने तो जब छोटे थे इस दिवस के विषय में शायद सुना ही नहीं था। यह तो कुछ वर्षों से ही ज्यादा प्रचलित हुआ है। इसमें बिजनेस एंगल भी हैं और यह कहा भी जाता है कि इससे जुड़े व्यक्ति ही फादर्स डे मनाने का प्रचार-प्रसार खूब करने लगे। काड्र्स का चलन शुरु हुआ जब बच्चे अपने पिता को ग्रिटिंग्स भेजने लगे, गिफ्टिंग शुरू हुआ और होटलों में पार्टी मनाने लगे।

लेकिन एक बार यह विशेष दिन बीत जाने के बाद, कई लोग अपनी व्यस्त दिनचर्या में वापस लौट आते हैं, अक्सर उस व्यक्ति की शांत उपस्थिति को भूल जाते हैं जिसने कभी उन्हें अपनी पूरी दुनिया दी थी। क्या यह एक फोर्मेलिटी ही रह गई है कि ऐसे प्यार दिखाया जाता है। सच्चाई तो यह हैं कि फादर्स डे तो हर दिन उत्सव के रूप में मनाना चाहिए, क्योंकि पिता सिर्फ रिश्ते का नाम नहीं, वो एक भाव है जो हर खुशी की नींव रखता है।

हमारे पिता के लिए – खास तौर पर उनके बुढ़ापे में – एक दिन काफी नहीं होता। जैसे-जैसे वे बड़े होते हैं, उन्हें भव्य शो या आकर्षक शब्दों की ज़रूरत नहीं होती। उन्हें वास्तव में हमारे समय, ध्यान और प्यार की जरूरत होती है-सिर्फ वर्ष में एक बार नहीं, बल्कि हर दिन। दुर्भाग्यपूर्ण सच्चाई यह है कि कई पिता, जीवन भर पालन-पोषण, भरण-पोषण और त्याग करने के बाद अपने जीवन के अंतिम वर्षों में स्वयं को अकेला पाते हैं। एक बार जीवंत, जिम्मेदारी और काम से भरा जीवन धीरे-धीरे एकांत में सिमट जाता है – जून माह में उस एक दिन को छोड़कर। कोई भी उत्सव, चाहे कितना भी भव्य क्यों न हो, दैनिक देखभाल, सम्मान और जुड़ाव की कमी की भरपाई नहीं कर सकता।

हमारे पिता ही हमारे अस्तित्व का कारण हैं – न केवल जैविक रूप से, बल्कि भावनात्मक और नैतिक रूप से भी। उनकी ताकत ने हमें आकार दिया, उनके बलिदानों ने हमें अवसर दिए और उनका शांत प्रेम अक्सर अनदेखा रह गया। अब जब जीवन का चक्र घूम रहा है तो यह हमारी बारी है कि हम वापस दें – गरिमा के साथ, उपस्थिति के साथ, ऐसे प्रेम के साथ जिसे व्यक्त करने के लिए कैलेंडर की आवश्यकता नहीं है। झारखंड के मुख्यमंत्री श्री हेमंत सोरेन ने एक बहुत ही भावुक पोस्ट अपने पिता के साथ एक्स पर फोटो साझा की है और अपने जीवन में पिता की भूमिका को रेखांकित करते हुए लिखा कि पिता एक ऐसा वटवृक्ष है जिनकी छांव में आत्मविश्वास पलता है और जड़ों से मिली सीख से जीवन का हर पल सार्थक हो जाता है।

पिताजी के वो डायलॉग्स, जो बचपन में सिर्फ शब्द लगे थे, पर आज सबक बन गए हैं :

1.पढ़ाई पर ध्यान दो, बाकी सब बाद में!

2. मैं जो कर रहा हूं, सब तुम्हारे लिए कर रहा हूं।

3. खुद के पैरों पर खड़ा होना सीख।

4. मेरे जैसे मत बन, मुझसे अच्छा बन।

5. बड़ा आदमी बन, लेकिन अच्छा इंसान पहले बन।

6. नाम रोशन करना, बस यही सपना है मेरा।

7. खर्च सोच-समझकर करना, पैसे पेड़ पर नहीं उगते।

8. बचपन जल्दी निकल जाएगा, सम्भल जा।

9. पैसा कमाना आसान है, इज्जत कमाना मुश्किल।

10. अपने फैसले खुद ले, लेकिन सोच-समझकर।

11. दोस्ती सोच-समझकर करना, सब तेरे जैसे नहीं होते।

12. हर वक्त तेरे पीछे नहीं रहूंगा, खुद लडऩा सीख।

13. जो भी कर, मेरा सिर ऊंचा होना चाहिए!

14. मुझे कुछ नहीं चाहिए बेटा, तू खुश रहे बस।

15.कभी भी झूठ मत बोलना, चाहे हालात कैसे भी हों।

ये कुछ शब्द ही नहीं हैं, एक-एक शब्द में गहराई और अपनापन है। आज की व्यस्त जिदंगी में जब हम अपना पूरा ध्यान जीविकोपार्जन पर लगाने के लिए मजबूर होते हैं, उन परिस्थितियों में भी अपने बुजुर्ग माता-पिता की देखभाल करने की जिम्मेदारी भी उठानी आवश्यक हैं। द्य

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