Top NewsIndiaWorldOther StatesBusiness
Sports | CricketOther Games
Bollywood KesariHoroscopeHealth & LifestyleViral NewsTech & AutoGadgetsvastu-tipsExplainer
Advertisement

पहाड़ों की चेतावनी और संकेतों को समझना होगा

06:11 AM Aug 12, 2025 IST | Rohit Maheshwari

बीते कुछ दिनों में एक बार फिर हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड के कई इलाकों में भारी बारिश के बाद भयानक नुक्सान की खबरें आईं हैं। दोनों पहाड़ी राज्यों के कई इलाकों में भारी बारिश के बाद लैंडस्लाइड और बादल फटने की वजह से जन-धन की हानि हुई है। बीती 5 अगस्त को उत्तरकाशी जिले के धराली में दोपहर 1.45 बजे बादल फट गया था। खीर गंगा नदी में बाढ़ आने से 34 सैकेंड में धराली गांव जमींदोज हो गया था। अब तक 5 मौतों की पुष्टि हो चुकी है। 100 से 150 लोग लापता हैं, वे मलबे में दबे हो सकते हैं। 1000 से ज्यादा लोगों को एयरलिफ्ट किया गया है। ये घटनाएं कई सवाल खड़े करती हैं। हमारे पहाड़ आखिर ऐसे क्यों दरक रहे हैं? क्या वजह है कि हमारी नदियां इतनी विकराल हो रही हैं? इस तबाही को इसे कुदरत का कहर कहा जाना चाहिए या इंसानी लापरवाही का नतीजा? धराली, उत्तरकाशी के हर्षिल घाटी का एक हिस्सा है। ये घाटी गंगोत्री की यात्रा पर जाने वाले लोगों के लिए एक अहम पड़ाव है। यह समुद्र तल से 9,005 फीट की ऊंचाई पर स्थित है और अपनी प्राकृतिक सुंदरता के लिए मशहूर है। धराली हर्षिल और गंगोत्री के बीच में स्थित है। ये हर्षिल से 7 किमी दूर है।

वहीं, धराली जिला मुख्यालय उत्तरकाशी से 79 किमी की दूरी पर स्थित है। मीडिया रिपोर्ट के अनुसार धराली में आई बाढ़ की चपेट में 20 से 25 होटल और होमस्टे तबाह हो गए हैं। 5 होटल पूरी तरह से तबाह हो गए हैं। बाढ़ के चलते धराली बाजार को भारी नुक्सान पहुंचा है। चारों ओर केवल बाढ़ के साथ आया मलबा नजर आ रहा है। लोग अपने घरों को छोड़कर सुरक्षित स्थानों पर जा रहे हैं। ये जगह हर्षिल और गंगोत्री के बीच में है। श्रीखंड से खीर गंगा नाला है। जलवायु वैज्ञानिकों के अनुसार अरब सागर और बंगाल की खाड़ी से उठने वाली गर्म हवाएं अब हिमालय से टकरा रही हैं और क्यूम्यलोनिम्बस जैसे खतरनाक बादल बना रही हैं, जो 50,000 फीट तक ऊंचे हो सकते हैं। आईएमडी और स्कायमेट जैसे संस्थानों ने पहले भी चेतावनी दी थी कि उत्तराखंड जैसे राज्यों में बारिश का पैटर्न अब अस्थिर हो चुका है। देशवासियों ने इससे पहले उत्तराखंड में 13-14 मई 2013 की केदारनाथ त्रासदी और 7 फरवरी 2021 का चमोली जिले में ऋषि गंगा और धौली गंगा के अप्रत्याशित सैलाब की ऊपरी हिमालय में अतिवृष्टि अथवा बादल फटने से ताल टूट गए और हजारों टन मलबे के साथ आए सैलाब ने नीचे बस्तियों को तहस-नहस कर डाला। केदारनाथ की विनाशलीला में मौतों का सरकारी आंकड़ा ही पांच हजार से ऊपर था। गैर सरकारी स्रोत आज भी दस हजार से अधिक लोगों के मरने की बात कहते हैं।

इसी तरह चमोली जिले में ऋषि गंगा और धौली गंगा पर बरपे कहर में करीब 200 लोग मारे गए जिनमें अधिकांश वहां बन रहे बांध की सुरंग में दफन हो गए। वक्त इस बहाने बहुत बेरहम होता है कि घावों को भले भर दे, मगर मौतों को भी भुला देता है। और यह ‘भूल जाना’ ही धराली जैसे कस्बों के लिए बहुत महंगा पड़ गया। उत्तराखंड की धराली में हालिया बादल फटने की घटना ने एक बार फिर साबित कर दिया है कि हिमालय अब चेतावनी नहीं दे रहा, बल्कि सीधा जवाब दे रहा है। जलवायु परिवर्तन, अनियंत्रित विकास और नीति स्तर पर लापरवाही ने इस पहाड़ी राज्य को बार-बार त्रासदी के मुहाने पर ला खड़ा किया है।

अभी हाल में सुप्रीम कोर्ट ने हिमाचल प्रदेश में अनियंत्रित और अराजक पर्यटन को लेकर यहां तक कह डाला कि सूरत-ए-हाल यही रहा तो हिमाचल देश के नक्शे से मिट जाएगा। अदालत ने वहां आई आपदाओं को कुदरती कोप नहीं, मानवीय कारस्तानी बताया है। सर्वोच्च अदालत 2013 में लगभग यही बातें उत्तराखंड के बारे में भी कह चुकी है। हिमालय में उच्चम पथों पर धार्मिक और सांस्कृतिक यात्राओं का उद्देश्य ही यह था कि वहां होने वाली हर हलचल से वाफिक रहें। अब खासकर पहाड़ों में पर्यटन के बढ़ते रुझान ने नए तरह के दबाव पैदा किए हैं। पुरानी परंपराएं और परिपाटियां पर्यटन का आधुनिक चोला ओढ़कर उद्देश्यों से भटक चुकी हैं। बेशक पर्यटन से लोगों की आजीविका के रिश्ते को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता, पर क्या इसे इतनी हद तक छूट दे दी जाए कि आपदा और मनुष्य के बीच बचाव की गुंजाइशें न रहे। उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश में चप्पे-चप्पे पर सड़कों, नदियों और गदेरों के किनारे बसावट के नियम-कायदों का कोई मतलब नहीं रह गया है। सुप्रीम कोर्ट ने विभिन्न जनहित याचिकाओं में समय-समय पर गाइड लाइन जरूर दी है, मगर इन्हें ताक पर रखकर अनाप-शनाप निर्माण तो जैसे पहाड़ों में रिवाज हो चला है।

यदि जलवायु परिवर्तन और मौसमी बदलावों के बीच हम पर्यावरण और पारिस्थितिकी से तालमेल बनाने की बजाय हालात को मनमाने ढंग से रौंदते चले जाएंगे तो निश्चित ही ऊपरी हिमालय में होने वाली हलचलें धराली जैसे दृश्य और घटनाएं दोहराती रहेंगी। ये जान लीजिए जब धराली में घर बहते हैं, परिवार उजड़ते हैं और बच्चे स्कूल छोड़ते हैं तो यह सिर्फ एक जलवायु आपदा नहीं होती,यह नीति की विफलता, चेतावनी को अनसुना करना और योजना की कमजोरी का प्रमाण होता है। हिमालय अब गूंगा नहीं रहा। वो हर साल, हर मानसून, हर तूफान में हमें यह कह रहा है: अब मैं बर्दाश्त नहीं करूंगा। अब तुम्हारी बारी है सीखने की।

Advertisement
Advertisement
Next Article