ख़ाक हो जाएंगे हम तुमको खबर होने तक
घुटनेभर पानी में तस्वीर खिंचवाने के बाद केन्द्रीय कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने पंजाब की स्थिति को जलप्रलय कहा है और साथ ही भरोसा भी दिलवाया कि केन्द्र की सरकार ‘पंजाब के साथ मज़बूती से खड़ी है’। शिवराज सिंह चौहान की बात सही है। पंजाब की तबाही किसी प्रलय से कम नहीं है। ऐसी भयंकर बाढ़ इससे पहले 1988 में आई थी जब 500 लोग मारे गए थे पर विशेषज्ञ बता रहे हैं कि आज स्थिति 1988 से भी अधिक नाज़ुक और संकटपूर्ण है। उस वक्त 12 ज़िले प्रभावित हुए थे जबकि इस बार सभी 23 ज़िले बाढ़ की गिरफ्त में हैं। अनुमान है कि 4 लाख एकड़ खेत पानी से भर गए हैं। 2000 गांव पानी में डूब चुके हैं। 4 लाख लोग प्रभावित हुए हैं जो 1988 से लगभग 3 लाख ज़्यादा है। सीमा पर तैनात एक बीएसएफ़ अधिकारी ने बताया है कि “पानी की भारी मात्रा ने देहात की तस्वीर ही बदल दी है”।
सवाल है कि क्या कुछ बचाव हो सकता था? पहली बात तो है कि जितनी बारिश और जिस वेग के साथ हुई है वह पहले नहीं देखी गई। बीबीएमबी के चेयरमैन के अनुसार पौंग डैम में इतना पानी कभी नहीं आया। पंजाब के तीनों बड़े डैम, भाखड़ा,पौंग और रणजीत सागर लबालब भरे हुए हैं। इस बार डैमों में 20-25% पानी अधिक आया है। जब इतनी बारिश हो तो सरकार भी बेबस हो जाती है पर हिमाचल प्रदेश से लेकर पंजाब तक इस बार जो तबाही हुई है वह केवल कुदरत की मार ही नहीं है। जैसे मैंने तीन सप्ताह पहले भी लिखा था, जो हुआ है वह इंसानी बेवक़ूफ़ी का भी परिणाम है पर अब पता चलता है कि यह मामला केवल बेवक़ूफ़ी का ही नहीं, यह सरकारी उदासीनता और लापरवाही का भी है। बार-बार होती तबाही के बावजूद सरकारें सोई रहती हैं और तब जागती हैं जब पानी सर तक पहुंच चुका होता है।
असंख्य सर्वेक्षण और अध्ययन बता चुके हैं कि तबाही के पीछे न केवल ‘ह्यूमन फ़ैक्टर’ है बल्कि ‘गवर्नन्स फ़ैक्टर’ भी है।
बारिश की पहली मार हिमाचल प्रदेश को झेलनी पड़ती है। इस बार जितनी तबाही हुई कि पहले नहीं हुई। 900 सड़कें ब्लॉक हैं। कुछ बह गईं तो कुछ को भूस्खलन ने रोक दिया है। बहुत पुल टूट चुके हैं। 1500 पॉवर ट्रांस्फार्मर बंद पड़े हैं। 400 पीने के पानी की स्कीमें काम नहीं कर रहीं। सरकार के अनुसार 4000 करोड़ रुपए का नुक्सान हुआ है जो यह प्रदेश झेल ही नहीं सकता। 366 लोग मारे गए हैं। सड़कें तो लाइफ़ लाइन है। न टूरिस्ट आ रहा है और न ही सेब बाहर जा रहा है। पर क्या यह केवल कुदरत की मार ही थी या प्रदेश ने ही अपनी तबाही का इंतज़ाम कर लिया था? बाढ़ में पौंग डैम और चम्बा के पास बहकर आई लकड़ियों के वीडियो देखकर चिन्तित सुप्रीम कोर्ट ने भी सरकार और सम्बंधित संस्थाओं को नोटिस जारी किया है कि ‘पेड़ों के अवैध कटान ने इस आपदा को आमंत्रित किया है'। हिमाचल प्रदेश का वन विभाग अवैध कटान से इंकार करता है पर यह तो खुला रहस्य है कि हमारे पहाड़ी प्रदेशों में ज़ोर-शोर से अवैध कटान होता है। वन कटाई बाढ़ और भूस्खलन को आमंत्रित करती है।
आशा है कि सुप्रीम कोर्ट मामलों को अंत तक लेकर जाएगा, क्योंकि हिमाचल सरकार में रोकने का दम नहीं है। मुख्यमंत्री ने कोई सीआईडी की जांच बैठा कर मामला दाखिल दफ्तर कर दिया है। तेज शहरीकरण हिमाचल के लिए ख़तरा बन रहा है। सरकार अवैध निर्माण के आगे हथियार फेंक कर बैठ गई, जिसका एक परिणाम हम मनाली में देख रहे हैं जहां ब्यास नदी बहुत बड़ा हिस्सा बहा कर ले गई है।
एक संसदीय कमेटी ने हाईवे निर्माण पर सवाल उठाए हैं कि ऊंची सड़कें पानी के प्राकृतिक बहाव में रुकावट डाल रहें हैं। बेधड़क हाईवे निर्माण से पहाड़ खिसकने लगे हैं, जैसा मैंने पहले लेख में भी लिखा था, पर क्या हिमाचल की सरकार ने यह मामला एनएचएआई से उठाया है? जहां तक पंजाब का सवाल है, जो केन्द्रीय मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने भी कही है उससे तो लगता है कि इतनी बड़ी तबाही का बड़ा कारण प्रशासनिक उदासीनता और निठुराई है। मंत्री का आरोप है कि दरिया के किनारे बने बांध अवैध खनन से कमजोर हो गए और पानी गांवों में घुस गया। उन्होंने बताया कि वाजपेयी और प्रकाश सिंह बादल की सरकारों के समय सतलुज, ब्यास, रावी और घग्गर के किनारों पर बने धुस्सी बांधों को मज़बूत और ऊंचा किया गया था, पर अब यह कमजोर पड़ गए हैं और पानी की मार नहीं सह सकें। पर अवैध खनन केवल बांधों पर ही नहीं हो रहा। नदी तट पर भी लगातार अवैध खनन चलता है जो नदी के तट को छिछला कर देता है और ऐसा सबकी आंखों के सामने हो रहा है पर कोई रोक नहीं है। बाढ़ का पानी तो पहाड़ों से आता है, जो सही बात पंजाब के मंत्री दोहरा रहे हैं, पर क्या हम इसे सम्भालने के लिए तैयार भी थे? हर दो तीन वर्ष के बाद पंजाब में बाढ़ आ रही है पर हम बेतैयार क्यों पाए जाते हैं? अवैध खनन और अव्यवस्थित निर्माण के कारण ड्रेनेज सिस्टम कमजोर पड़ गया जो जल प्रवाह को रोक नहीं सका। गुड़गांव और बैंगलुरू जैसे शहरों में भी निकासी के ऊपर निर्माण ने हमारे हाई-टैक शहरों को पानी में डूबो दिया था।
बहुत विशेषज्ञ कई सालों से चेतावनी दे रहे हैं कि ड्रेन और नहरों की सफ़ाई न होने के कारण पानी की प्राकृतिक निकासी रुक जाती है। इसके अलावा धुस्सी बांधों की कमजोर हालत, हरी छत की कमी और नदी किनारे बिना सोचे-समझे निर्माण के कारण स्थिति और विकराल हो गई है। समय के साथ नदियों की पानी ले जाने की क्षमता कम हुई है। नदियों में गाद जम गई है। नदी और नालों की सफ़ाई और उन पर से अतिक्रमण को हटाने की तत्काल ज़रूरत है पर इसके लिए राजनीतिक इच्छा शक्ति चाहिए। बारिश कुछ रुकी है पर अभी त्रासदी का अंत नहीं हुआ। पंजाब में लाखों बेघर हैं। धान की फसल बर्बाद हो चुकी है। पशु बह गए हैं। मकान गिर गए है।
बाढ़ अपने पीछे भारी विनाश छोड़ गई है। लोग अंधकारमय भविष्य की तरफ़ देख रहे हैं। पंजाब की अर्थव्यवस्था तबाह हो गई है। बाज़ारों में रौनक़ नहीं है। एक बार पानी उतर गया तो मलेरिया और डेंगू जैसी बीमारियां फैलना शुरू हो जाएंगी। बहुत लोग अभी से डायरिया, त्वचा की बीमारियों और उच्च टेंशन के कारण अस्पतालों में पहुंच रहे हैं। पंजाब में ऐसी बाढ़ से देश की खाद्यान्न सुरक्षा खतरें में पड़ सकती है, क्योंकि अन्न भंडार में पंजाब सबसे अधिक योगदान डालता है। अभी से अनुमान है कि केन्द्रीय पूल में पंजाब का धान का टार्गेट 10 लाख टन कम होगा। खेत गाद से भरे हुए हैं अगली फसल उगाना भी मुश्किल होगा। पंजाब सरकार ने हिम्मत दिखाते हुए प्रभावित किसानों को राहत 6500 रुपए से बढ़ाकर 20000 रुपए प्रति एकड़ कर दी है पर पंजाब तो पहले ही क़र्ज़ मे डूबा हुआ है। केन्द्र सरकार की भूमिका भी बराबर महत्वपूर्ण रहेगी।
पंजाब की बहुत प्रशंसा की जाती है कि आज़ादी की लड़ाई में सबसे अधिक क़ुर्बानी दी, देश का पेट भरा और सीमा की हिफ़ाज़त की। पर केवल प्रशंसा ही काफ़ी नहीं है। पंजाब को सम्भालना अब देश की भी ज़िम्मेवारी है। पंजाब को आपदा ग्रस्त प्रदेश घोषित किया जाना चाहिए था पर नहीं किया गया। खुद केन्द्र सरकार भी दोष रहित नहीं है। मौसम विभाग ने पहले ही चेतावनी दी थी कि जुलाई, अगस्त और यहां तक कि सितंबर में स्थिति ख़राब हो सकती है, अगर कोई प्रदेश सरकार लापरवाह है तो केन्द्र की ज़िम्मेवारी है कि चाबुक का इस्तेमाल करे। पंजाब, हिमाचल प्रदेश, हरियाणा के बीच ताल-मेल बैठाने की ज़िम्मेवारी भी केन्द्र सरकार की है। डैमों से अगर साथ-साथ पानी निकाला जाता तो एकदम पानी को निकालने और पंजाब को इस कदर डूबने से बचाया जा सकता था। डैमों का प्रबन्धन सख्ती से सही करने की ज़रूरत है। सिंचाई विभाग के पूर्व चीफ़ इंजीनियर अमरजीत सिंह दुल्लत ने कहा है कि मानसून सीजन में डैम में कम से कम 20-25 फुट जगह ख़ाली रखी जानी चाहिए, पर ऐसा नहीं किया गया। कौन ज़िम्मेवार है?
प्रधानमंत्री मोदी ने हिमाचल प्रदेश और पंजाब का हवाई दौरा करने के बाद उन्हें 1500 करोड़ रुपए और 1600 करोड़ रुपए का राहत पैकेज देने की घोषणा की है, पर जितनी बड़ी तबाही हुई है यह पर्याप्त नहीं है। पंजाब सरकार ने तो 20000 करोड़ रुपए मांगे थे। गुरुदासपुर के गांव ठेतारके के बख्शीश सिंह ने प्रधानमंत्री को बताया है कि उनके खेत में इतनी गाद जमा हो गई है कि अगले दो तीन साल वह कोई भी फसल उगाने की स्थिति में नही हैं।
उनका कहना था कि, “मेरे जैसे कई सौ किसान हैं जिनके खेतों में गाद जमा है। इनमें अधिकतर पहले ही क़र्ज़ के बोझ तले दबे हुए हैं। हम समझते हैं कि हमारा और हमारे परिवारों का भविष्य बर्बाद हो गया है”। जहां ऐसी निराशा हो वहां मज़बूती से हाथ थामने की ज़रूरत है। इस देश ने हर संकट के समय असाधारण संकल्प दिखाया है। पंजाब बाढ़ की इस महात्रासदी से निबटने के लिए वैसा संकल्प अभी नज़र नहीं आ रहा। आज तो पंजाब मिर्ज़ा ग़ालिब को दोहरा सकता है, हमने माना कि तग़ाफ़ुल (लापरवाही) न करोगे, लेकिन ख़ाक हो जाएंगे हम, तुम को खबर होने तक !