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इवांका का भारत में स्वागत

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10:41 PM Nov 29, 2017 IST | Desk Team

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अमेरिका के ताजा इतिहास में यह पहला अवसर होगा कि जब वहां का चुना हुआ राष्ट्रपति अपने पारिवारिक सदस्यों का उपयोग अपने आधिकारिक कार्यालय के लिए बाकायदा उन्हें सरकारी जिम्मेदारियां सौंप कर रहा है। बिना शक अमेरिका के राष्ट्रपति को यह अधिकार है कि वह अपने सलाहकार के रूप में किसी भी व्यक्ति को नियुक्त कर सकते हैं क्योंकि वहां का संविधान इसकी इजाजत देता है मगर वर्तमान राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने अपनी पुत्री इवांका को इस योग्य समझा है कि वह उनके सरकारी कार्यों में मदद कर सकें जबकि उनके पुत्र उनके पहले से स्थापित वाणिज्यिक साम्राज्य को संभालते हैं। अत: कथित परिवारवाद की बीमारी केवल भारत के लोकतन्त्र में ही व्याप्त नहीं है बल्कि यह उस अमेरिका में भी है जिसे दुनिया का सबसे प्राचीन लोकतन्त्र कहा जाता है।

भारत में वैश्विक उद्यमी शिखर सम्मेलन में शिरकत करने के लिए इवांका अपने देश की तरफ से आधिकारिक रूप से भारत में हैं अत: भारत में उनका खुलकर स्वागत किया गया है और उन्हें एक आधिकारिक प्रतिनिधि के रूप में जितनी भी सुविधाएं दी जा सकती थीं वे सभी दी गई हैं किन्तु उनकी विशेष हैसियत राष्ट्रपति की पुत्री होने की वजह आंकी जा रही है इसमें भी किसी प्रकार का शक नहीं होना चाहिए। अक्सर ऐसे सम्मेलन बिना अखबारों व मीडिया की ज्यादा सुर्खी बटोरे ही आर्थिक अखबारों की खबरें बनकर रह जाते हैं मगर यह इवांका की शख्सियत है कि उनका इस सम्मेलन में भाग लेना सामान्य अखबारों के लिए रुचिकर खबरें पैदा कर रहा है। उन्होंने सम्मेलन में महिलाओं की बढ़ती भागीदारी पर जोर दिया है और इस सन्दर्भ में भारत के प्रयासों की सराहना भी की है मगर उन्हें यह समझना होगा कि भारत की नारी ने कुछ विशेष क्षेत्रों में जरूर विशेषज्ञता प्राप्त करके ऊंचा मुकाम हासिल किया है परन्तु इस देश की सामान्य नारी की व्यथा को बड़े-बड़े शहरों के बड़े-बड़े होटलों में आयोजित सम्मेलन आयोजित करके नहीं जांचा जा सकता। यह हकीकत है कि भारत में पुरुष और महिला दोनों के श्रम की कीमत अलग-अलग रखकर देखी जाती है।

महिला को इस क्षेत्र में भी कमजोर करके देखा जाता है और उसका पारिश्रमिक भी इसी के अनुरूप तय होता है। यह वास्तविकता असंगठित क्षेत्र में है जबकि संगठित क्षेत्रों में इस असमानता को दूर किया जा चुका है परन्तु इससे नारी के प्रति समग्र दृष्टिकोण का जरूर पता चलता है। दरअसल विकसित और विकासशील देशों की स्त्रियों की समस्याओं को एक ही तराजू में रखकर नहीं देखा जा सकता है। क्योंकि दोनों वर्गों के देशों की सामाजिक स्थितियों में जमीन-आसमान का अन्तर है और नारी के समाज में स्थान से जुड़े मानकों में भारी अन्तर है परन्तु इवांका ट्रम्प के भारत दौरे का सम्बन्ध इस मुद्दे से नहीं है बल्कि उद्यमशीलता के क्षेत्र में नारी के साथ किसी भी प्रकार के अन्याय और असमानता को दूर करने के उपायों पर विचार करना है और उनकी उपलब्धियों को यथा योग्य सराहना है। लोकतन्त्र में इस पर भी कोई प्रतिबन्ध नहीं है कि अमेरिका का राष्ट्रपति अपने परिवार के किसी सदस्य की योग्यता का केवल इसलिए लाभ नहीं उठा सकता कि वह उसका बेटा या बेटी है। अक्सर कूटनीति में पारिवारिक सदस्यता का भी एक महत्व होता है। ऐसे कई उदाहरण और भी हैं।

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