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कर्मचारी और मालिकों की ये कैसी मुश्किल!

पिछले दिनों में बहुत बड़ी-बड़ी और छोटी कम्पनियों ने अपने कर्मचारियों की छुट्टी कर दी। जैसा कि मैं समझती हूं किसी भी कम्पनी के मालिक या प्रबंधन के लिए ऐसा करना बहुत मुश्किल है।

01:52 AM Nov 13, 2022 IST | Kiran Chopra

पिछले दिनों में बहुत बड़ी-बड़ी और छोटी कम्पनियों ने अपने कर्मचारियों की छुट्टी कर दी। जैसा कि मैं समझती हूं किसी भी कम्पनी के मालिक या प्रबंधन के लिए ऐसा करना बहुत मुश्किल है।

कर्मचारी और मालिकों की ये कैसी मुश्किल
पिछले दिनों में बहुत बड़ी-बड़ी और छोटी कम्पनियों ने अपने कर्मचारियों की छुट्टी कर दी। जैसा कि मैं समझती हूं किसी भी कम्पनी के मालिक या प्रबंधन के लिए ऐसा करना बहुत मुश्किल है। विशेष रूप से मुझे कर्मचारियों के साथ बहुत ही सहानुभूति  है और उनके लिए मुझे बहुत ही दुःख है। कोरोना के बाद सारे विश्व में कारोबार पर बहुत बुरा प्रभाव पड़ा और अत्याधिक नुक्सान भी पहुंचा है। अब यूक्रेन-रूस की लड़ाई का असर भी महंगाई पर पड़ा है। अगर कुछ नहीं बदला तो एक सबके पेट पालने की जरूरत नहीं बदली, सबके साथ एक पेट है जो समय से रोटी मांगता है।
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पिछले दिनों पहले ट्विटर ने भारत में 90 प्रतिशत कर्मचारियों को छुट्टी दे दी, अब मेटा ने 11 हजार कर्मचारियों को बाहर कर दिया। फेसबुक की मूल कम्पनी मेटा ने अपने 13 प्रतिशत या लगभग 11,000 कर्मचारियों की छंटनी की है। कंपनी के मुख्य कार्यपालक (सीईओ) मार्क जुकरबर्ग ने बुधवार को कर्मचारियों को लिखे पत्र में कहा कि कमाई में गिरावट और प्रौद्योगिकी उद्योग में जारी संकट के चलते यह फैसला करना पड़ा और उन्होंने यह भी कहा ‘‘दुर्भाग्य से यह मेरी अपेक्षा के अनुरूप नहीं है।’’ ऑनलाइन और कामर्स के पिछले रुझान वापस आ गए हैं, लेकिन इसके साथ ही व्यापक आर्थिक मंदी, बढ़ती प्रतिस्पर्धा और विज्ञापन घटने के संकेत के चलते हमारी आय मेरी अपेक्षा से बहुत घट गई है। मैंने इसे गलत ढंग से समझा और मैं उसकी जिम्मेवारी लेता हूं। ऐसा ही अरबपति कारोबारी एलन मस्क ने ट्विटर का अधिग्रहण करने के बाद बड़े पैमाने पर कर्मचारियों को बाहर का रास्ता दिखाया था। यह वाकया ही किसी भी कम्पनी के मालिक के लिए करना मुश्किल है क्योंकि कुछ भी हो अन्दर से तो वो भी इंसानियत का दिल रखते हैं, परन्तु कर्मचारियों के लिए तो यह दुःखों का पहाड़ है। खासकर जिनका यह ‘ब्रैड एंड बटर’ है जिनकी कई ईएमआई यानि घर की किस्त, कार की किस्त या बच्चों की फीस का खर्च इसी पर निर्भर था, सच पूछो तो कईयों की आंखें नम हुई होंगी, कईयों के घर उस दिन खाना नहीं बना होगा।
जितना मैं दर्द समझ सकती हूं, शायद ही कोई समझ सकता है क्योंकि यह दर्द वो ही महसूस कर सकता है जिसके ऊपर बीतती है। 2020 का साल हमारे लिए कहर लेकर आया था। 18 जनवरी को अश्विनी जी (मेरे पति और पंजाब केसरी के मालिक) इस दुनिया से चले गए। पारिवारिक झगड़ों से निपटना,  ​डिविजन का सामना करना, अपनों को पराये होते देखना। कोरोना महामारी का आना, एकाउंट फ्रीज हो जाने के कारण कई महीने कर्मचारियों को वेतन नहीं दे सके। ऊपर से पेपर और स्याही की कीमतों में बढ़ोतरी, लोगों का अखबार लेने से डरना कि कहीं कोरोना न हो जाए परन्तु ऐसे समय में मैं अपने अखबार के सभी कर्मचारियों को तहेदिल से धन्यवाद देेती हूं, जो दिन-रात हमारे साथ खड़े रहे, डट कर काम किया वो हमारी बाजू बन गए, न अखबार को ​गिरने दिया, न हमें। इक्का-दुक्का कर्मचारी होंगे जो अपने आप ही कोरोना के डर से काम पर नहीं आये या अ​िश्वनी जी के जाने के बाद यह सोच लिया कि अखबार अब बंद हो जाएगा। (उनकी कमी तो कभी पूरी नहीं हो सकेगी) तो दूसरी कम्पनियों के साथ जो हमारे कम्पीटीशन में थी, उनके पास चले गए। इस प्रकार से कर्मचारियों के चले जाने का मुझे इतना दुःख था कि अश्विनी जी और मैंने कभी अपने कर्मचारियों को कर्मचारी नहीं समझा, एक परिवार की तरह काम किया जैसे अपने बच्चे चले जाते हैं वैसा ही दुःख हुआ। परन्तु मुझे अपने कर्मचारियों और अपने बेटों आदित्य, अर्जुन, आकाश पर गर्व है जिन्होंने इस मुश्किल समय का डट कर मुकाबला किया।
मुझे मालूम है इस समय सभी कर्मचारियों पर बहुत मुश्किल की घड़ी है। मुझे आए दिन बहुत से लोगों के फोन आते हैं, नौकरी के लिए अपना प्रोफाइल भी भेजते हैं। बहुत तकलीफ होती है जब मैं इस समय किसी की मदद नहीं कर पाती परन्तु कोशिश करती रहती हूं। एक समय ऐसा भी था कि कोई भी फोन करता था तो अश्विनी जी और मैं उसे कहीं न कहीं एडजस्ट कर देते थे या अपने यहां रख लेते थे जिससे हमारे कर्मचारी भी ओवर हो गए थे परन्तु यह समय मुश्किल का है… मैं यही कहूंगी हमें हिम्मत नहीं हारनी होगी, कोशिश करते रहना है, मेहनत करनी है। एक रास्ता बंद होता है, तो कई रास्ते खुलते हैं। कोशिश करने वालों की हार नहीं होती। हमारे सामने बहुत ही लोगों के उदाहरण हैं जो जीरो हो गए परन्तु अपनी मेहनत से फिर हीरो बने, अब तो जॉब सीकर नहीं, जॉब प्रोवाइडर हैं। बहुत से व्यवसाय छोटे से शुरू करके साम्राज्य खड़े किए बिजनैस टॉयकून बन गए। यही नहीं अमिताभ बच्चन की मिसाल है जो इस उम्र में काम करके कहां पहुंच गए हैं तो आज से हम अपने अखबार में कुछ प्रेरणादायक सच्ची सफलता की जीवन गाथा कुछ लोगों की पेश करेंगे जो जीरो से हीरो बने, जो अपनी मेहनत से कहां से कहां तक पहुंच गए । आप सब भी किसी ऐसे व्यक्ति, युवा, बुजुर्ग को जानते हैं जो आज कहां से कहां पहुंच गए हैं, तो फोटो सहित लिख कर भेजें। 300 शब्द से ज्यादा न हों। भेजने का पता है ः
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(मेहनत करने वालों की हार नहीं होती)
 Zero से Hero सफलता की कहानी
deskfeature@gmail.com  पर ई-मेल कर सकते हैं।
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