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क्या दिशा देगा ‘दिशा कानून’

नेशनल लॉ कमीशन के अनुसार प्रति दस लाख की आबादी पर कम से कम 24 जज होने चाहिएं, लेकिन इस समय केवल 13 जज हैं।

04:24 AM Dec 15, 2019 IST | Ashwini Chopra

नेशनल लॉ कमीशन के अनुसार प्रति दस लाख की आबादी पर कम से कम 24 जज होने चाहिएं, लेकिन इस समय केवल 13 जज हैं।

क्या दिशा देगा ‘दिशा कानून’
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आंध्र प्रदेश विधानसभा में दिशा विधेयक को पारित किया गया है, जिसमें महिलाओं के खिलाफ आपराधिक मामलों का निपटारा 21 दिनों में किया जाएगा। इस नए कानून में रेप के पुख्ता सबूत मिलने पर अदालतें 21 दिन में दोषी को मौत की सजा सुना सकेंगी। पुलिस को सात दिन में जांच पूरी करनी पड़ेगी। यद्यपि दिशा बलात्कार और हत्याकांड पड़ोसी राज्य तेलंगाना में हुआ है लेकिन आंध्र सरकार ने महिलाओं और बच्चों की सुरक्षा को देखते हुए ‘दिशा कानून’ पारित किया है। बाल यौन शोषण के दोषियों को दस वर्ष की सजा का प्रावधान किया गया है, अगर मामला बेहद गम्भीर और अमानवीय है तो उम्रकैद की सजा भी दी जा सकती है।
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हैदराबाद में डा. दिशा के साथ हुई घटना ने जिस तरह से पूरे देश की भावनाओं को उद्वेलित किया और जनता की मांग थी कि त्वरित न्याय हो। उसके बाद तेलंगाना पुलिस ने मुठभेड़ में चारों आरोपियों को मार गिराया तो पूरे देश को लगा कि पुलिस ने त्वरित न्याय दिलाया है तो वह जश्न मनाने लगा। जनभावनाओं की दृष्टि से देखा जाए तो आंध्र प्रदेश की जगनमोहन रैड्डी सरकार द्वारा नया कानून बनाने का स्वागत ही किया जाएगा। दक्षिण भारत के फिल्मी सितारों ने भी त्वरित न्याय दिलाने के लिए सरकार की पहल का स्वागत किया है। जनता ऐसा ही न्याय चाहती है। जनता की मांग यही है कि बलात्कारियों को जिंदा जला दिया जाए।
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ऐसा नहीं है कि देश में महिलाओं के प्रति अत्याचारों के लिए दोषियों को दंडित करने के ​लिए कानून नहीं है। निर्भया कांड के बाद भी जनाक्रोश को देखते हुए बलात्कार और हत्या जैसे क्रूरतम अपराधों के लिए कानून को सख्त बनाया गया था। सवाल यह है कि क्या दोषियों को 21 दिन में फांसी की सजा का ऐलान कर देने से अपराध रुक जाएंगे? क्या ऐसा करने से अपराधियों में खौफ पैदा होगा? कुछ विधि विशेषज्ञों का कहना है कि सिर्फ जनभावनाओं या जनाक्रोश को देखते हुए कानून बना देने से कुछ नहीं होने वाला। त्वरित न्याय को लेकर कई आयोगों और संसदीय समिति की ओर से सिफारिशें मिली हैं। नेशनल लॉ कमीशन के अनुसार प्रति दस लाख की आबादी पर कम से कम 24 जज होने चाहिएं, लेकिन इस समय केवल 13 जज हैं।
फोरेंसिंक लैब की रिपोर्ट आने में काफी समय लग जाता है। चार्जशीट फाइल करने में ही एक हफ्ते का वक्त तो होना ही चाहिए। अपराधी को अपराध की गम्भीरता के अनुसार ही दंडित ​किया जाना चाहिए। इसके लिए जो भी जरूरी तत्व हैं वह आंध्र सरकार द्वारा पारित किए गए कानून में नहीं हैं। विधि विशेषज्ञों का कहना है कि ऐसी घटनाओं पर पुलिस की प्रतिक्रिया काफी ढीली-ढाली होती है, जो लोग डायल सौ पर जवाब देने में सक्षम नहीं हैं, वह 21 दिन में क्या किसी को न्याय दिलाएंगे। न्यायपालिका और पुलिस में खाली पड़े पदों पर नियुक्तियों को भी प्राथमिकता देनी चाहिए। कानून बनते रहते हैं लेकिन व्यवस्था में बदलाव भी बहुत जरूरी है।
अगर व्यवस्था ही नहीं होगी तो फिर कानून लागू कैसे होंगे। देश में कैपिटल पनिशमेंट को लेकर पहले भी कई बार बहस हो चुकी है। एक दृष्टिकोण तो यह है कि दुर्लभ से दुर्लभ मामलों में फांसी दी जाए और दूसरा दृष्टिकोण यह है कि ऐसे अपराधियों को जीवन भर जेल की सलाखों के पीछे बंद रखा जाए। अनेक बुद्धिजीवियों का मानना है कि मृत्युदंड की सजा से तो अपराधी को जीवन से मुक्ति मिल जाती है, बलात्कारी हत्यारे को तो एक ऐसा जीवन देना चाहिए, जिसमें उसके लिए करने को कुछ न हो, वह अपराध को याद करता हुआ पल-पल मौत का इंतजार करता रहे। कई मामलों में देखा गया है कि फांसी की सजा के मामले में सियासत भी हुई।
1999 में सुप्रीम कोर्ट ने राजीव गांधी की हत्या की साजिश में शामिल मुरुगन, संथम व पेरारीवल्लन को मृत्युदंड देने की पुष्टि की थी लेकिन उन्हें बचाने के लिए कुछ मानवाधिकार संगठनों ने विरोध शुरू कर दिया। इन तीनों अपराधियों ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर दी कि सजा लागू करने में असामान्य देरी हुई है, उसे ध्यान में रखते हुए मृत्युदंड को उम्रकैद में बदल दिया जाए। अब तक इन्हें फांसी की सजा नहीं दी गई। राजीव गांधी की हत्या में नलिनी को भी मृत्युदंड दिया गया था लेकिन अप्रैल 2000 में तमिलनाडु के राज्यपाल ने उसकी सजा को उम्रकैद में बदल दिया।
पंजाब के मुख्यमंत्री रहे बेअंत सिंह के हत्यारे राजोआना को भी फांसी की सजा नहीं दी गई। निश्चित रूप से इसके पीछे सियासत हुई। यह भी तर्क दिया गया कि अपराध चाहे कितना ही घिनौना क्यों न हो लेकिन आधुनिक सभ्य समाज में अपराधी को प्रायश्चित, विलाप, सुधार आदि का एक अवसर तो​ दिया जाना चाहिए। यह भी सही है कि मृत्युदंड का इस्तेमाल अपराधों को रोकने और न्याय की दृष्टि से किया जाता है अगर उस पर भी सियासत का रंग चढ़ा दिया जाए तो फिर अपराध रुकेंगे कैसे। आंध्र प्रदेश सरकार द्वारा 21 दिन में दोषी को सजा सुनाने का कानून सही है लेकिन देखना होगा कि यह कितना कारगर रहता है और यह भी देखना होगा कि यह कानून अन्य राज्यों के लिए नजीर कैसे बनेगा।
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Ashwini Chopra

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