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Explainer: क्या है महाराष्ट्र में मराठी भाषा विवाद? दशकों से रहा है शिवसेना का रामबाण!

03:55 PM Jul 08, 2025 IST | Amit Kumar
Explainer

Explainer: महाराष्ट्र में हिंदी का विरोध कोई आज की बात नहीं है, यह काफी पुराने समय से चला आ रहा है. इसकी शुरुआत 1950 के दशक में हुई जब तत्कालीन बॉम्बे राज्य में मराठी भाषी लोगों ने एक अलग राज्य की मांग की. इस आंदोलन को "संयुक्त महाराष्ट्र आंदोलन" कहा गया.

1950 के दशक में बॉम्बे राज्य में आज के महाराष्ट्र, गुजरात और कर्नाटक के कुछ हिस्से शामिल थे. मराठी लोगों ने अलग मराठी भाषी राज्य की मांग की. इस आंदोलन के दबाव में 1960 में 'बॉम्बे पुनर्गठन अधिनियम' (Bombay Reorganisation Act) पास हुआ और महाराष्ट्र तथा गुजरात दो अलग राज्य बने.

शिवसेना का उदय और मराठी पहचान

1966 में बाल ठाकरे ने शिवसेना पार्टी बनाई. उनका उद्देश्य था मराठी लोगों को नौकरियों और व्यापार में अन्य समुदायों जैसे दक्षिण भारतीयों और गुजरातियों से बचाकर उनका हक दिलाना. शिवसेना ने मराठी भाषा और संस्कृति को अपना मुख्य मुद्दा बनाया और इसी के ज़रिए उन्होंने राजनीति में गहरी पकड़ बनाई. 1980 के दशक में शिवसेना ने उत्तर प्रदेश और बिहार से आए प्रवासियों के खिलाफ भी आंदोलन शुरू किया. मराठी में नेमप्लेट्स लगवाना, बैंकों और दफ्तरों में मराठी भाषा को अनिवार्य करना जैसे कदम इसी अभियान का हिस्सा थे.

राज ठाकरे और MNS की भूमिका

बाल ठाकरे के भतीजे राज ठाकरे ने शिवसेना से अलग होकर महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (MNS) बनाई और उन्होंने भी मराठी पहचान के मुद्दे को अपने एजेंडे में रखा. शिवसेना और एमएनएस दोनों ही हर चुनाव में मराठी भाषा और संस्कृति को बचाने का मुद्दा उठाते रहे.

हाल का विवाद: हिंदी तीसरी भाषा

मार्च 2025 में आरएसएस नेता सुरेश भैयाजी जोशी ने कहा कि मुंबई की कोई एक भाषा नहीं हो सकती और हर किसी को मराठी सीखना जरूरी नहीं है. इस बयान के बाद विरोध शुरू हो गया. मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने इसका जवाब देते हुए कहा कि मराठी राज्य की आत्मा है और इसे सीखना हर किसी की जिम्मेदारी है.

सरकार का फैसला और विरोध

अप्रैल 2025 में महाराष्ट्र सरकार ने एक आदेश दिया जिसमें पहली से पांचवीं कक्षा के छात्रों के लिए हिंदी को तीसरी अनिवार्य भाषा बना दिया गया. विपक्षी दलों – शिवसेना (यूबीटी), एनसीपी (शरद पवार गुट), और एमएनएस ने इसका तीखा विरोध किया. उन्होंने कहा कि यह मराठी पहचान को कमजोर करने की साजिश है. विरोध इतना बढ़ा कि सरकार को यह आदेश वापस लेना पड़ा.

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