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क्या है छोटी सी Tablet का रहस्य? इस देश में अब तक 144 लोगों को दी गई फांसी

05:15 PM Jul 31, 2025 IST | Amit Kumar
क्या है छोटी सी tablet का रहस्य  इस देश में अब तक 144 लोगों को दी गई फांसी
Captagon Tablets

सऊदी अरब में एक  Tablet की वजह से कई लोगों को मौत की सजा दी जा चुकी है।  ये Tablet है Captagon। यह एक नशे की Tablet है, जिसे अक्सर "गरीबों का कोकीन" कहा जाता है। यह एम्फेटामीन जैसा एक केमिकल ड्रग है, जो दिमाग को उत्तेजित करता है और लंबे समय तक थकान महसूस नहीं होने देता। मिडिल ईस्ट के कई देशों, खासकर सऊदी अरब में, यह नशा अमीर युवाओं के बीच बेहद लोकप्रिय हो चुका है।

मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, सऊदी अरब में Captagon Tablet की तस्करी और सेवन का स्तर इतना बढ़ गया है कि 2025 में अब तक 144 लोगों को इससे जुड़े मामलों में मौत की सजा दी जा चुकी है। कुल 217 फांसी में से करीब दो-तिहाई फांसी सिर्फ ड्रग्स मामलों में हुई हैं। इन मामलों में पकड़े गए ज्यादातर लोग विदेशी मजदूर हैं, जैसे कि मिस्त्र, पाकिस्तान, इथोपिया और सीरिया से आए प्रवासी।

सऊदी सरकार का रुख

सऊदी क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान इस नशे को देश के लिए गंभीर खतरा मानते हैं। उनका कहना है कि अगर इस पर कठोर कार्रवाई नहीं की गई, तो समाज की बुनियाद टूट सकती है। इसलिए अंतरराष्ट्रीय आलोचना के बावजूद, सऊदी सरकार कैप्टागॉन से जुड़े मामलों में मौत की सजा देने से पीछे नहीं हट रही।

सीरिया से जुड़ाव

Captagon Tablet का सबसे बड़ा उत्पादन केंद्र पहले सीरिया था। 2023 तक दुनिया का लगभग 80% Captagon Tablet यहीं तैयार होता था। न्यूयॉर्क टाइम्स की एक रिपोर्ट के मुताबिक, सीरिया की डूबती अर्थव्यवस्था के लिए यह नशा सबसे बड़ा वित्तीय स्रोत बन चुका था। सीरिया के पूर्व राष्ट्रपति बशर अल असद के भाई, महेर अल असद, इस व्यापार के मुख्य खिलाड़ी माने जाते थे।

सीरिया में बदलाव की कोशिश

दिसंबर 2024 में बशर अल असद की सरकार गिरने के बाद, नई अंतरिम सरकार ने ड्रग माफिया के खिलाफ सख्त कार्रवाई का वादा किया। जून 2025 में दावा किया गया कि देश की सभी Captagon Tablet  की फैक्ट्रियों को बंद कर दिया गया है। इसके बावजूद इस नशे की तस्करी पूरी तरह नहीं रुकी और सऊदी जैसे देशों में इसका असर अब भी जारी है।

मानवाधिकारों पर उठते सवाल

2025 में जून महीने में ही 37 लोगों को ड्रग्स से जुड़े मामलों में फांसी दी गई, जिनमें से 34 विदेशी थे। इस तरह की कड़ी सज़ाओं पर अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार संगठन सवाल उठा रहे हैं। उनका मानना है कि सऊदी अरब को सुधार की ओर बढ़ना चाहिए, न कि इतनी कठोर सज़ाएं देना।

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