Top NewsIndiaWorldOther StatesBusiness
Sports | CricketOther Games
Bollywood KesariHoroscopeHealth & LifestyleViral NewsTech & AutoGadgetsvastu-tipsExplainer
Advertisement

आखिर क्या है 39 भारतीयों का सच

NULL

12:37 AM Jul 24, 2017 IST | Desk Team

NULL

इराक के शहर मोसुल पर आईएस का कब्जा खत्म होने के बाद वहां फंसे 39 भारतीयों को लेकर अभी तक सस्पेंस बना हुआ है। 3 साल से फंसे 39 भारतीयों में 9 युवक पंजाब के हैं, बाकी अन्य राज्यों से हैं। इन भारतीयों के परिजनों की 3 वर्ष से अपने बच्चों का इंतजार करते-करते आंखें पथरा गई हैं। इनके बच्चे भी इंतजार करते-करते थक चुके हैं। कुछ ने तो उम्मीद ही छोड़ दी है। भारत सरकार अभी तक इस सम्बन्ध में कोई स्पष्ट जानकारी नहीं दे रही। विदेश मंत्री श्रीमती सुषमा स्वराज की विवशता यह है कि संवैधानिक पद पर रहते हुए वह तब तक ऐसा कोई वक्तव्य या शब्द नहीं कह सकतीं जब तक कि उनके पास कोई पुख्ता प्रमाण न हों। विदेश मंत्री श्रीमती सुषमा स्वराज ने पहले यह जानकारी दी थी कि मोसुल में आईएस के कब्जे में फंसे 39 भारतीय सुरक्षित हैं। दूसरी ओर 2014 में आईएस के आतंकवादियों की गोली लगने के बावजूद बच निकलने में कामयाब रहे हरजीत मसीह ने दावा किया था कि आईएस आतंकवादियों ने 39 भारतीयों की हत्या कर दी थी। वह आज भी अपने बयान पर कायम हैं। विदेश मंत्री ने इराक की जिस जेल में 39 भारतीयों के बन्द होने की सम्भावना जताई थी, वह पूरी तरह जमींदोज हो चुकी है।

बादुश नाम के जिस इलाके में जेल होने की बात की जा रही थी, वह इलाका अब पूरी तरह से उजड़ चुका है। खबरिया चैनल की रिपोर्ट के मुताबिक वहां केवल अब उजड़ा हुआ मैदान ही है। विपक्ष अब विदेश मंत्री को निशाने पर ले रहा है और उन पर देश से झूठ बोलने और 39 परिवारों की भावनाओं से खिलवाड़ करने के लिए उनके खिलाफ विशेषाधिकार प्रस्ताव लाने पर विचार कर रहा है। श्रीमती सुषमा स्वराज विदेशों में बसे भारतीयों की मुश्किलों को हल करने में काफी संवेदनशील रही हैं और उनका मंत्रालय रात के 2 बजे भी मदद मांगने वालों को जवाब देता है। उन्होंने जो भी जानकारी दी वह निश्चित रूप से इराक में भारतीय दूतावास या किसी न किसी इनपुट और संभावनाओं पर आधारित होगी। बिना किसी पुख्ता सूचना के किसी को भी मृत घोषित करना सरल नहीं होता। पिछले दिनों लापता 39 भारतीयों के परिजनों ने भी श्रीमती सुषमा स्वराज से मुलाकात की थी। विदेश राज्यमंत्री वी.के. सिंह भी इराक के मोसुल इलाके में पेशमर्गा फ्रंटलाइन का दौरा करके लौटे हैं। उन्होंने इराक के विदेश मंत्री डा. इब्राहिम अल जाफरी से भी मुलाकात की थी और इराक में फंसे भारतीयों को बचाने के लिए बैठक भी की थी। मोसुल पर 2014 में आईएस ने कब्जा कर लिया था।

ढाई साल की लड़ाई के बाद इराक की सेना ने शहर को आईएस से मुक्त कराया। इस दौरान हजारों लोग मारे गए, लाखों बेघर हुए, हजारों लोग पलायन कर गए। जब तोपें बारूद उगलती हैं, हवाई हमले किए जाते हैं, बमबारी की जाती है, गोलियां चलती हैं तो वह किसी की पहचान नहीं करतीं कि उसकी जद में आने वाला आतंकवादी है या आम नागरिक। वह यह भी पहचान नहीं करतीं कि कौन भारतीय है और कौन सीरियाई। अब शहर तबाह हो चुका है, उसकी हवा में भी बारूद की गंध बसी है। जिस बादुश जेल को उम्मीद की किरण बताया जा रहा था अब वह है ही नहीं। अब परिजन निराश हैं। वहां रैडक्रॉस के अधिकारी को भी 39 भारतीयों के बारे में कोई जानकारी नहीं मगर सवाल यह भी है कि बादुश की जेल को बगदादी के आतंकियों ने बारूद से उड़ा दिया था तो फिर भारत सरकार किस दावे से कह रही थी कि भारतीय वहां हो सकते हैं। जानकारी तब गलत होती है जब स्रोत ही गलत हों।

इराक के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार ने भी कहा था कि 39 भारतीय जीवित हैं और सभी वहां की जेलों में बन्द हैं। इस सम्बन्ध में सच सामने आना ही चाहिए। विदेश मंत्रालय ने विदेशों में फंसे हजारों भारतीयों को बचाया है। कतर में फंसे भारतीयों को एयरलिफ्ट करके लाया गया था। सबसे बड़ा एयरलिफ्ट ऑपरेशन 1990 में चलाया गया था तब इराक और कुवैत में जंग के हालात थे तब दोनों देशों से करीब 1 लाख 10 हजार भारतीयों को निकाला गया था। 2015 में यमन से भी 3 हजार भारतीयों को समुद्र के रास्ते निकाला गया। इराक के हालात बड़े ही विषम हैं। विदेश मंत्रालय के प्रयासों के बावजूद 39 भारतीयों का पता नहीं चला। अगर वे जीवित होते तो परिवारों से किसी न किसी तरह सम्पर्क की कोशिश करते लेकिन ऐसा नहीं हुआ। विदेश मंत्रालय को पुख्ता जानकारी देनी ही होगी क्योंकि परिजनों की आंखें भी सूख चुकी हैं।

Advertisement
Advertisement
Next Article