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DY Chandrachud: क्या था डीवाई चंद्रचूड़ का आखिरी फैसला? रिटायरमेंट से पहले इस मां-बाप को दे दी बड़ी राहत

DY Chandrachud Order: देश को नए मुख्य न्यायाधीश मिल चुके हैं। इस बीच आम लोगों के जहन पर एक सवाल उपज रहा है कि डीवाई चंद्रचूड़ ने सीजेआई पद से रिटायरमेंट से पहले अपना आखिरी फैसला क्या दिया था। हम इस लेख में उसकी जानकारी दे रहे हैं।

07:28 AM Nov 12, 2024 IST | Ranjan Kumar

DY Chandrachud Order: देश को नए मुख्य न्यायाधीश मिल चुके हैं। इस बीच आम लोगों के जहन पर एक सवाल उपज रहा है कि डीवाई चंद्रचूड़ ने सीजेआई पद से रिटायरमेंट से पहले अपना आखिरी फैसला क्या दिया था। हम इस लेख में उसकी जानकारी दे रहे हैं।

dy chandrachud  क्या था डीवाई चंद्रचूड़ का आखिरी फैसला  रिटायरमेंट से पहले इस मां बाप को दे दी बड़ी राहत
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Last Order Of Ex CJI DY Chandrachud : बतौर सीजेआई कार्यकाल के आखिरी दिन जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ कई अहम फैसले सुनाए। उन्होंने अपने आदेश से 30 वर्षीय युवक के मां-बाप को भी बड़ी राहत दिला दी। दरअसल, 13 साल से हरीश राणा वेजिटेटिव स्टेट में थे। मां-बाप अब बेटे के इलाज का खर्च उठाने में सक्षम नहीं थे। इस कारण दंपति अपने बेटे की इच्छा मृत्यु की मांग कर रहा था। उनका कहना था कि आर्टिफिशियल लाइफ सपोर्ट हटा लिया जाए। फिर आखिरी सुनवाई में सीजेआई चंद्रचूड़ ने केंद्र की रिपोर्ट देखी और उत्तर प्रदेश सरकार को आदेश दिया कि सरकार युवक के इलाज की पूरी व्यवस्था करे। उसके घर पर लाइफ सपोर्ट लगवाए और फिजियोथेरेपिस्ट और डायटिशियन रेगुलर विजिट करें। यह भी कहा कि जरूरत पड़ने पर डॉक्टर और नर्सिंग सपोर्ट भी दिया जाए।

पैसिव इच्छा मृत्यु की मांग कर रहे थे मां-बाप

बता दें, वेजिटेटिव स्टेट में होने का मतलब कोई इंसान होश में रहता है, लेकिन कुछ अनुभव नहीं कर सकता है। उसकी आंखें खुली होती हैं, लेकिन वह कुछ अनुभव नहीं कर सकता। ऐसे में बेटे के इलाज का खर्च उठाकर थम चुके दंपति पैसिव इच्छा मृत्यु की मांग कर रहे थे। 62 वर्षीय अशोक राणा और उनकी पत्नी निर्मला देवी ने अदालत को बताया था कि 13 साल पहले उनका बेटा चौथी मंजिल से गिर गया था। उसके सिर में गंभीर चोटें आई थीं। तब से वह वेजिटेटिव स्टेट में था।

सरकारी इलाज के लिए दंपति तैयार

सीजेआई रहते चंद्रचूड़ ने आदेश में कहा है कि राज्य सरकार मुख्त में इलाज की सारी सुविधाएं उपलब्ध करवाए। होम केयर ठीक नहीं लगे तो नोएडा के जिला अस्पताल में भर्ती कराकर सुविधाएं मुहैया कराई जाए। अशोक राणा की ओर से वकील मनीष ने बताया कि परिवार ने सरकारी इलाज की बात स्वीकार कर ली है। वह इच्छा मृत्यु वाली याचिका वापस लेने के लिए तैयार हैं।

हाईकोर्ट ने खारिज कर दी थी याचिका

इससे पहले दिल्ली हाईकोर्ट ने अपने ऑर्डर में कहा था कि राणा बिना लाइफ सपोर्ट के जीवित रह सकते हैं। इस वजह से उन्हें एक्टिव इच्छा मृत्यु नहीं दी जा सकती। जस्टिस सुब्रमण्यम प्रसाद ने सुप्रीम कोर्ट के 2018 के फैसले का हवाला देते हुए कहा था कि कुछ मामलों में पैसिव इयुथेनेसिया की अनुमति दी जाती है, लेकिन एक्टिव इच्छा मृत्यु की इजाजत भारत में नहीं दी जा सकती। 2018 के फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि कुछ मामलों में किसी मरीज को पैसिव इच्छा मृत्यु की इजाजत दी जा सकती है। उसके लिए लाइफ सपोर्ट सिस्टम हटाया जा सकता है। बाकी सीधे तौर पर इच्छा मृत्यु की मंजूरी नहीं होगी।

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