क्या था पाकिस्तान का हुदूद ऑर्डिनेंस? जिसनें बलात्कार पीड़िताओं को पहुंचा दिया जेल
हुदूद ऑर्डिनेंस: बलात्कार के बाद पीड़िताओं की मुश्किलें
हुदूद ऑर्डिनेंस ने पाकिस्तान में बलात्कार पीड़िताओं के लिए न्याय की प्रक्रिया को जटिल बना दिया। 1979 में लागू इस कानून ने पीड़िताओं को चार पुरुष गवाहों की शर्त रखी, जिससे दोषी बच निकलते और पीड़िताओं को जेल में डाल दिया जाता। यह कानून पीड़िताओं के लिए सामाजिक और मानसिक पीड़ा का कारण बना।
What is Hudhud Ordinance: बलात्कार एक ऐसा अपराध है, जिसमें पीड़िता को न केवल शारीरिक कष्ट सहना पड़ता है, बल्कि उसे मानसिक और सामाजिक रूप से भी अपमान और पीड़ा झेलनी पड़ती है. ऐसे में अगर पीड़िता को यह कहा जाए कि वह अपने साथ हुए अत्याचार को साबित करने के लिए 4 पुरषों को गवाह के रूप में पेश करे, तो यह न सिर्फ एक कठिन चुनौती बन जाती है, बल्कि इससे दोषी के छूटने की भी संभावना बढ़ जाती है.
मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, ऐसा ही 1979 में पाकिस्तान में लाए गए एक हुदूद ऑर्डिनेंस में देखने को मिलता है, जिसकी वजह से दुष्कर्म पीड़िताओं के दोषियों को सजा मिलने की बजाय वह खुद जेल की चारदीवारी में कैद हो गईं.
क्या है हुदूद ऑर्डिनेंस?
पाकिस्तान में सेना द्वारा तख्ता पलट करने का एक लंबा इतिहास रहा है. बता दें, कि 1977 में जनरल जिया उल हक ने जुल्फिकार अली भुट्टो की चुनी हुई सरकार का तख्ता पलट करने के बाद उन्हें फांसी दिलवाई थी. इसके बाद जनरल जिया उल हक ने पाकिस्तान का इस्लामीकरण करने की ओर अपने कदम बढ़ाए. इस काम को करने के लिए जनरल जिया उल हक ने हुदूद ऑर्डिनेंस को पास कराया.
इसका उद्देश्य देश का इस्लामीकरण करना था. इस कानून के तहत व्यभिचार अवैध संबंध (जिना), बलात्कार, झूठे आरोप, चोरी और शराब पीने जैसे अपराधों को शरीयत के अनुरूप परिभाषित किया गया. इस व्यवस्था ने शरीयत कानून को देश के आम कानूनों से ऊपर कर दिया.
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इस्लामी दृष्टिकोण से ‘जिना’ का मतलब
इस्लाम में विवाह के बाहर किसी भी प्रकार का शारीरिक संबंध पाप और अपराध माना जाता है. यदि कोई विवाहित व्यक्ति ऐसा करता है, तो उसके लिए मौत की सज़ा का प्रावधान है, जबकि अविवाहित होने पर 100 कोड़ों की सज़ा दी जाती है. इस कानून का उद्देश्य विवाह संस्था की पवित्रता को बनाए रखना बताया गया.
‘महिलाओं के लिए अभिशाप बना हुदूद ऑर्डिनेंस’
हुदूद ऑर्डिनेंस के तहत जब बलात्कार को भी ‘जिना’ के अंतर्गत रखा गया, तो इससे पीड़िताओं की स्थिति और भी दयनीय हो गई. बलात्कार को साबित करने के लिए पीड़िता को चार पुरुष गवाह पेश करने होते थे, जिन्होंने घटना को होते हुए देखा हो. ऐसे गवाह मिलना लगभग असंभव होता था, और जब पीड़िता ऐसा करने में असफल रहती, तो उस पर ही झूठा आरोप लगाने का मामला दर्ज हो जाता. नतीजतन, 1980 से 2000 के बीच हज़ारों महिलाएं, जिनमें कई बलात्कार पीड़िताएं थीं, जेल पहुंच गईं क्योंकि वे अपने साथ हुए अपराध को साबित नहीं कर सकीं.
‘हिंदू लड़कियों पर खूब हुआ अत्याचार’
इस कानून का सबसे अधिक दुरुपयोग अल्पसंख्यक समुदाय, विशेषकर हिंदू लड़कियों के खिलाफ हुआ. कई मामलों में इन लड़कियों का अपहरण कर जबरन धर्म परिवर्तन कराया गया और फिर निकाह कराया गया. जब ये लड़कियां बलात्कार या अपहरण की शिकायत करतीं, तो जिना कानून का सहारा लेकर उन्हें ही अपराधी ठहराने की कोशिश होती थी. अगर लड़की विरोध करती या अपने परिवार के पास लौटना चाहती, तो उसे अवैध यौन संबंध का दोषी ठहराया जाता. लड़के के परिवार वाले दावा करते थे कि लड़की ने स्वेच्छा से निकाह किया है, जिससे असली अपराध दब जाए.
‘2006 का महिला सुरक्षा अधिनियम’
2006 में पाकिस्तान में वुमेन प्रोटेक्शन बिल पारित हुआ, जिससे बलात्कार को ‘जिना’ कानून से अलग कर दिया गया. हालांकि यह एक सकारात्मक बदलाव था, लेकिन अब भी जिना कानून का डर समाज में बना हुआ है. खासकर अल्पसंख्यक हिंदू लड़कियों के लिए यह कानून आज भी किसी खतरे से कम नहीं है.