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कब है मकर संक्रान्ति और क्या है इसका महत्व?

04:57 PM Jan 10, 2024 IST | Astrologer Satyanarayan Jangid
कब है मकर संक्रान्ति और क्या है इसका महत्व

यदि आप ज्योतिषीय संदर्भ में बात करें तो मकर सक्रान्ति का महत्व इसलिए है कि सूर्य जो कि ग्रहों का राजा है वह अपने गुरू के घर से बाहर जाते हैं। माना जाता है कि कोई भी ग्रह या व्यक्ति जब अपने गुरू के सामने या घर में होता है तो वह निष्प्रभावी हो जाता है। वह कितना भी शक्तिशाली या सिद्धियों से संपन्न क्यों न हो गुरू के सामने उसकी सारी शक्तियां बेमानी होती हैं। चूंकि बृहस्पति देवताओं और ग्रहों के गुरू हैं इसलिए वे सूर्य भगवान के भी गुरू हो जाते हैं। इसलिए जब-जब सूर्य देव गुरू के घर धनु और मीन राशि में जाते हैं तो वे बलहीन हो जाते हैं। जब सूर्य धनु या मीन राशि में हो तो सूर्य के बलहीन होने से सनातन धर्म में सभी शुभ और मांगलिक कार्यों को आरम्भ करना वर्जित कहा गया है। जब सूर्य धनु राशि में हो तो उसे मल मास कहा जाता है और जब सूर्य मीन में हो तो उसे खल मास कहा जाता है। हालांकि दोनों ही राशियों के स्वामी बृहस्पति हैं लेकिन धनु राशि बृहस्पति की मूलत्रिकोण राशि होने से धनु राशि में सूर्य को अधिक कमजोर समझा गया है। इसलिए इस मास का धर्म और शास्त्रों में विशेष महत्व है।

  • पौष मास में जब सूर्य मकर राशि में प्रवेश करते हैं तो मकर संक्रान्ति का पर्व होता है
  • पूरे भारत में मनाया जाने वाला यह त्यौहार कई नामों से मनाया जाता है
  • इसे पंजाब में लोहड़ी कहते है तो दक्षिण भारत में इसे पोंगल कहा जाता है
  • मकर संक्रान्ति 14 जनवरी को होती है लेकिन इस वर्ष यह संक्रान्ति 15 जनवरी को होगी

एक वर्ष में 12 संक्रान्तियां होती हैं। जिसमें मकर संक्रांति का विशेष महत्व है। पौष मास में जब सूर्य भगवान धनु राशि से मकर राशि में प्रवेश करते हैं तो मकर संक्रान्ति का प्रसिद्ध पर्व मनाया जाता है। खास बात यह भी है कि पूरे भारत में मनाया जाने वाला यह त्यौहार कई नामों से मनाया जाता है। जैसे पंजाब में लोहड़ी कहते है तो दक्षिण भारत में इसे पोंगल कहा जाता है। हालांकि इन सभी त्यौहारों में नामों के अलावा कोई विशेष अंतर नहीं है। सभी का आधार सूर्य की संक्रान्ति ही है। मकर संक्रान्ति पर सूर्य न केवल अपनी राशि बदलते हैं बल्कि वे उत्तरी कर्क रेखा की तरफ जाने को उत्तरायण भी होते हैं। महाभारत के अनुसार भीष्म पितामह ने युद्ध में घायल हो जाने के बाद प्राण त्यागने के लिए सूर्य के उत्तरायण होने की प्रतिक्षा की थी। मकर संक्रान्ति पर सूर्य जब उत्तरायण हुआ तो ही उन्होंने अपने प्राण त्यागे। उस समय तक कुरूक्षेत्र में युद्ध भी समाप्त हो गया था।

कब करेंगे सूर्य मकर राशि में प्रवेश?

आमतौर पर सूर्य की मकर संक्रान्ति 14 जनवरी को होती है लेकिन इस वर्ष यह संक्रान्ति 15 जनवरी को होगी। वैसे लगभग 75 वर्षों में संक्रान्ति के दिन में एक दिन की बढ़ोत्तरी संभव है। किसी समय मकर संक्रान्ति 13 जनवरी को आती थी। यह सब अयंनाश के कारण होता है।

15 जनवरी को मनाया जायेगा मकर संक्रान्ति का पर्व

14 जनवरी 2024 को सूर्य रात्रि 2 बजकर 43 मिनिट पर धनु राशि को छोड़कर मकर में प्रवेश करेंगे। चूंकि संक्रान्ति का पुण्यकाल सूर्योदय से माना जाता है इसलिए मकर संक्रान्ति या लोहड़ी का पर्व 15 जनवरी को होगा। देश के विभिन्न शहरों के अक्षांश और रेखांश के आधार पर सूर्योदय में अंतर आ जाता है।

देश की राजधानी दिल्ली में मकर संक्रान्ति का पुण्यकाल 15 जनवरी को प्रातः 7 बजकर 16 मिनिट से आरम्भ हो जायेगा जो कि सूर्यास्त तक रहेगा। दूसरे शहरों के लोग भी अपने शहर के सूर्योदय के आधार पर पुण्यकाल का आकलन कर सकते हैं।

क्या दान करें?

शास्त्रों के अनुसार मकर संक्रांति के दिन दान करने से कई हजार गुणा फल प्राप्त होता है। खोटे ग्रहों के कुप्रभावों से मुक्ति मिलती है और जीवन में सरलता और सरसता का आगमन होता है। मकर संक्रांति के दिन तिल और गुड़ से बने व्यंजन दान का विशेष महत्व है।

वैसे आप ऊनी कपड़े जैसे स्वेटर और कम्बल आदि का दान भी कर सकते हैं। विशेष फल प्राप्ति और इच्छा पूर्ति के लिए प्रातः गोशाला में गायों की पूजा और उन्हें चारा और गुड़ खिलाना चाहिए। इससे पूर्व जन्म के पापों से मुक्ति मिलती है। जो लोग पवित्ऱ नदियों के पास हैं उन्हें नदी में स्नान करके दान करना चाहिए। इस दिन गंगा स्नान का विशेष महत्व है। कहा जाता है कि इस दिन प्रयाग के संगम तट पर स्नान करने से विशेष लक्ष्यों की प्राप्ति होती है।

Astrologer Satyanarayan Jangid
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