For the best experience, open
https://m.punjabkesari.com
on your mobile browser.
Advertisement

अमेरिकी दूतावास ने जब किसान नेताओं को चाय पर बुलाया

03:56 AM Aug 25, 2024 IST | Shera Rajput
अमेरिकी दूतावास ने जब किसान नेताओं को चाय पर बुलाया

‘सुना है मिट्टी में तुम बीज
नहीं आग बोते हो
पर तुम जो भी बोते हो
सचमुच कमाल बोते हो
मौसमों में है गंध बारूदों की, आसमां के माथे पर पसीना
आने वाली नस्लों को है यकीं कि तुम उनका ख्याल बोते हो’

पिछले सप्ताह नई दिल्ली को एक अजीबोगरीब वाकया देखने को मिला जब भारत स्थित अमेरिकी दूतावास ने देश के प्रमुख किसान नेताओं को अपने यहां चाय पर आमंत्रित किया, ऐसा बेहद भरोसेमंद सूत्रों का दावा है। सनद रहे कि नए कृषि कानूनों को लेकर किसानों का विरोध-प्रदर्शन निरंतर जारी है, वे अब भी पंजाब-हरियाणा के शम्भू बॉर्डर पर जमे हुए हैं और केंद्र सरकार की प्रस्तावित कृषि नीतियों के खिलाफ विरोध की अलख जगा रहे हैं, भले ही किसानों के विरोध-प्रदर्शनों की इस खबर को मुख्यधारा का मीडिया पूरी तरह इग्नोर कर रहा हो, पर आसन्न हरियाणा विधानसभा चुनाव पर इसका सीधा असर देखने को मिल सकता है।
सूत्रों की मानें तो अमेरिकी दूतावास की चाय पर किसान नेताओं ने भी खुल कर अपनी भड़ास निकाली और एमएसपी से लेकर लोन माफी तक के अपने दर्द को ​शिद्दत से बयां किया। कहते हैं इसके तुरंत बाद भारत का विदेश मंत्रालय हरकत में आया और उन्होंने अमेरिकी दूतावास के अधिकारियों से जानना चाहा कि ‘आखिरकार भारत के किसान नेताओं से मिलने का उनका एजेंडा कैसे दोनों देशों के द्विपक्षीय संबंधों को मजबूती दे सकता है?’ कहते हैं इस पर अमेरिकी दूतावास की ओर से तुरंत सफाई पेश की गई और कहा गया कि यह एक शिष्टाचार मुलाकात थी, चंूकि भारत की इकोनॉमी का एक बड़ा हिस्सा कृषि आधारित उद्योगों से जुड़ा है सो अमेरिका इस सैक्टर में अपनी हिस्सेदारी चाहता है, कारगिल जैसी बड़ी अमेरिकन कंपनी जो कृषि से जुड़े उत्पादों पर काम करती है और जिनका व्यवसाय बिलियन डॉलर से भी ज्यादा है, अमेरिका चाहता है कि ऐसी कंपनियां भारत के कृषि क्षेत्र में अपना निवेश बढ़ाएं, दूतावास इसी रोड मैप की संभावनाओं को खंगाल रहा है। अब भारतीय विदेश मंत्रालय के पास भी इस मामले पर चुप्पी साध लेने के अलावा और कोई रास्ता बचा नहीं था।
आखिर भारत क्यों नहीं आए ब्लिंकन?
भारत को लंबे समय से जिस शख्स के भारत आने का इंतजार था, जब मौका आया तो अमेरिकी विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन ने भारत आने से किनारा कर लिया, उनकी जगह 5 दिवसीय भारत दौरे पर आए अमेरिकी प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व कर रहे अपेक्षाकृत जूनियर डिप्टी विदेश मंत्री (प्रबंधन व संसाधन) रिचर्ड आर. वर्मा। इस अमेरिकी प्रतिनिधिमंडल में वरिष्ठ अमेरिकी अधिकारियों के अलावा जलवायु, ऊर्जा व एयरोस्पेस क्षेत्र से जुड़े नामचीन विषेशज्ञ भी शामिल थे। हालांकि भारत ने पूरी कोशिश की थी कि यह प्रतिनिधिमंडल एंटनी ब्लिंकन के नेतृत्व में भारत आए, ऐसे समय में जब बंगलादेश का मुद्दा गरम था तो भारत ब्लिंकन के समक्ष मजबूती से अपना पक्ष रखना चाहता था। जब ब्लिंकन नहीं आए तो केंद्र सरकार ने चाहा कि रिचर्ड वर्मा के साथ एक ऑल पार्टी मीटिंग ही रख दी जाए, सरकार इस पर तमाम राजनैतिक दलों से सहमति जुटाना चाहती थी, पर ज्यादातर दलों ने इस सर्वदलीय को लेकर कोई खास दिलचस्पी नहीं दिखाई, सो सरकार को भी इस मामले को ठंडे बस्ते में डालना पड़ा।
कैसे हुई राम माधव की वापसी?
आखिर चार वर्षों के लंबे वनवास के बाद एक बार फिर से भगवा आंगन में राम माधव की वापसी हो गई है। सनद रहे कि 2020 में ही राम माधव को भाजपा ने अपने राष्ट्रीय महासचिव के पद से हटा दिया था, उन्हें पीएम मोदी की विदेश यात्राओं के प्रबंधन के कार्य से भी मुक्त कर दिया गया था। कहते हैं राम माधव की वापसी के लिए संघ कृतसंकल्प था, क्योंकि इन्हें जम्मू-कश्मीर मामलों का माहिर खिलाड़ी माना जाता है। वैसे भी घाटी से धारा 370 हटने के बाद वहां पहली बार विधानसभा चुनाव हो रहे हैं, यह चुनाव भाजपा के लिए भी नाक का सवाल बन गया है, हालांकि नए परिसीमन में अब जम्मू की सीटें 37 से बढ़ा कर 43 कर दी गई हैं और घाटी की घटा कर 47, पर संघ अब खुल कर भाजपा के समर्थन में मैदान में उतर आया है, इस कड़ी में राम माधव उनके सबसे बड़े इक्का साबित हो सकते हैं। याद कीजिए ये वही राम माधव हैं जिन्होंने 2015 में महबूबा मुफ्ती की पीडीपी का गठबंधन भाजपा के साथ कराया था।
सूत्र बताते हैं कि राम माधव ने भी भाजपा शीर्ष के समक्ष दावा किया है कि ‘वे घाटी के कम से कम 10 निर्दलीय व छोटी पार्टियों के विधायकों को भाजपा के पक्ष में लेकर आएंगे। वे लद्दाख में भी भाजपा के पक्ष में कदमताल करेंगे।’ जम्मू क्षेत्र की 43 सीटों पर भाजपा पहले से मजबूत स्थिति में है अगर ऐसे में राम माधव ने घाटी में खेल कर दिया तो फिर जम्मू-कश्मीर में भाजपा की अगली सरकार बनने से कौन रोक सकता है?
फिर से गुलाम क्यों होना चाहते हैं आजाद?
अपने पुराने घर और अपने पुराने हुक्मरानों पर सौ-सौ तोहमतें लगा कर घर छोड़ने वाले गुलाम नबी आजाद फिर से कांग्रेस में आने को बेकरार हैं। चूंकि मौजूदा कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे से उनकी पुरानी दोस्ती है, सो वे सब भूल-भाल कर पिछले दिनों खड़गे से उनके दिल्ली आवास पर आकर मिले। दोनों नेताओं के दरम्यान एक लंबी बातचीत हुई और बातों ही बातों में गुलाम ने खड़गे को बताया कि ‘वे सब भूल कर एक बार फिर से अपने पुराने घर यानी कांग्रेस में वापिस आना चाहते हैं, इसके लिए वे अपनी आजाद पार्टी का विलय भी कांग्रेस में करने को तैयार हैं।’ कहते हैं इसके फौरन बाद खड़गे ने गुलाम की घर वापसी को लेकर सोनिया गांधी से बात कर ली और उन्हें इसके लिए मना भी लिया। पर जब बात राहुल तक पहुंची तो राहुल ने इसके लिए दो टूक मना कर दिया, राहुल का कहना था कि ‘गुलाम नबी को छोड़ कर उनकी पार्टी का जो भी नेता कांग्रेस में आना चाहता है उनके लिए हमारे दरवाजे खुले हैं, क्योंकि गुलाम नबी ने जाते-जाते कांग्रेस व गांधी परिवार पर निजी हमले बोले थे उसे भुला पाना बेहद मुश्किल है’, सो गुलाम नबी की पार्टी में भगदड़ है, पर वे खुद न इधर हैं, न उधर हैं।
क्या पाला बदल सकते हैं निषाद?
उत्तर प्रदेश की सियासत तेजी से करवटें ले रही है। आसन्न बदलाव की आहटों को भांपते छोटे-मोटे खिलाड़ी अभी से पाला बदल की कोशिशों में जुट गए हैं। सपा नेता शिवपाल सिंह यादव से जुड़े उनके एक करीबी सूत्र खुलासा करते हैं कि पिछले दिनों शिवपाल के फॉर्म हाउस पर कोई और नहीं बल्कि योगी सरकार में मंत्री स्वयं संजय निषाद उनसे मिलने आ पहुंचे और उनसे अपने पुराने संबंधों की दुहाई देते हुए कहा कि ‘बस एक बार वे उनकी बात अखिलेश से करा दें’।
शिवपाल ने वहीं से अखिलेश को फोन लगा दिया, कहते हैं अखिलेश ने दो टूक संजय से कह दिया-‘हमने आपके बेटे को एमपी का टिकट भी दिया था, आपने जो भी मांगा हमने वह सब किया, फिर भी आप हमें छोड़ कर भाजपा में चले गए, जबकि हम समाजवादी आपके उसूलों की लड़ाई आज भी लड़ रहे हैं।’ संजय निषाद ने चुपचाप अखिलेश की बातों को सुना, फिर पूछा-‘अब आएं तो कैसे एडजस्ट करेंगे?’ अखिलेश ने कहा-पहले खूब सोच विचार लीजिए, पर जल्दी लीजिएगा फैसला, ऐन चुनाव के वक्त आए तो शायद एडजस्ट नहीं कर पाऊंगा।’ यानी धीरे-धीरे अखिलेश को भी अब अपनी साइकिल की रफ्तार पर यकीन होने लगा है।
...और अंत में
टीडीपी प्रमुख और आंध्र के सीएम चंद्रबाबू नायडू की ‘विष लिस्ट’ है जो कभी खत्म होने का नाम ही नहीं लेती। पिछले दिनों एक बार फिर से नायडू अपनी नई-पुरानी लिस्ट लेकर दिल्ली आ धमके। पीएम के साथ हुई अपनी मुलाकात में कहते हैं नायडू ने पोलावरम सिंचाई परियोजना और राज्य की राजधानी अमरावती के शीघ्र विकास के लिए तुरंत फंड जारी करने की मांग की।
सूत्र बताते हैं कि इसके बाद नायडू ने अमित शाह, निर्मला सीतारमण व सीआर पाटिल के साथ भी मुलाकात की और अपने राज्य की अटकी विभिन्न परियोजनाओं को लेकर डिस्कस किया। कहते हैं फिर नायडू को सरकार के शिखर नेतृत्व की ओर से समझाने की भरसक कोशिश हुई कि केंद्र सरकार के पास सीमित संसाधन हैं और उन्हें अन्य राज्यों के बारे में भी सोचना होगा, खास कर उन राज्यों के बारे में जहां अभी चुनाव होने हैं, जैसे झारखंड, महाराष्ट्र या फिर बिहार। आंध्र के चुनाव में तो अभी पूरे पांच साल बाकी हैं।

Advertisement
Advertisement
Author Image

Shera Rajput

View all posts

Advertisement
×