कहां खो गई सर्दी
पर्यावरण में हो रहे बदलाव का दुष्प्रभाव अब किसी से छुपा नहीं है…
पर्यावरण में हो रहे बदलाव का दुष्प्रभाव अब किसी से छुपा नहीं है। पर्यावरण का अध्ययन कर रहे वैज्ञानिकों की माने तो इस बार सर्दियों पर जलवायु परिवर्तन का ऐसा प्रभाव पड़ा है जिसके चलते बसंत ऋतु ही गायब हो गई है। राजधानी में सर्दियों के महीनों में असामान्य रूप से उच्च तापमान देखा गया है। अक्तूबर 2024 में सात दशकों में सबसे अधिक तापमान दर्ज किया गया, जबकि नवंबर आठ वर्षों में सबसे गर्म रहा। दिसंबर में भी महीने के पहले हिस्से में औसत से अधिक तापमान देखा गया। यह प्रवृत्ति जनवरी 2025 तक जारी रही जो आठ वर्षों में सबसे गर्म जनवरी रही। फरवरी में भी यही हुआ, 13 फरवरी को अधिकतम तापमान 29.7 डिग्री सेल्सियस दर्ज किया गया दिल्ली की सर्दियों की एक खासियत शीत लहरें इस मौसम में लगभग पूरी तरह से अनुपस्थित रहीं। दिसंबर में सिर्फ़ एक दिन शीत लहर दर्ज की गई। इस सर्दी में ऐसा होने वाला एकमात्र दिन। शहर के मुख्य मौसम केंद्र सफ़दरजंग ने कोई शीत लहर की घटना दर्ज नहीं की। विश्व में जलवायु परिवर्तन एक बड़ी चुनौती है और भारत भी इससे अछूता नहीं है। जलवायु में बदलाव के दुष्प्रभाव दिखने लगे हैं और अब आंकड़े भी इसकी गवाही दे रहे हैं। एक ताजा रिपोर्ट में पर्यावरण का अध्ययन करने वाली संस्था क्लाइमेट सेंट्रल ने विशेषज्ञों और आंकड़ों के हवाले से कहा कि जलवायु परिवर्तन के कारण भारत में ऋतुओं में बदलाव देखा जा रहा है। सर्दी के मौसम पर यह विशेष रूप से दिख रहा है। कहीं सर्दी में तापमान बढ़ रहा है तो कहीं कम हो रहा है। कई लोग तो यह भी कहने लगे हैं कि सर्दी के बाद आने वाली बसंत ऋतु मानो गायब सी हो रही है।
दिसंबर में तापमान न गिरने और फिर फरवरी में ही गर्मी जैसा मौसम हो जाने का सबसे बुरा खेती पर पड़ा है। सरसों जैसी फसलों में वक्त से पहले फूल आ गए। इसकी वजह से फलियां भी कम हुई हैं। विंटर रैन न होने से फसलों में रोग की संभावना भी बढ़ी है और फसली कीड़ों की पैदावार भी। एशिया के सबसे बड़े संस्थान इंडियन वैटरनरी रिसर्च इंस्टीट्यूट स्थित कृषि विज्ञान केंद्र के विषय विशेषज्ञ कहते हैं- इस बार दिसंबर से ही तापमान ज्यादा रहा। इससे खेतों में पौधे ज्यादा बड़े नहीं हो पाए। अधिक तापमान से अभी भी फसलों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है। इस बार रबी की फसलों में कल्ले कम आए हैं। राई और सरसों के पौधों में वक्त से पहले फूल और बालियां आ गई हैं। मौसम के इस बदलाव की वजह से गेहूं की पैदावार भी कम होगी।
इस दफा पैदावार 20 किलो प्रति बीघा कम होने का अनुमान है। मौसम के इस बदलाव से फसलों में रोग आने की संभावना भी बढ़ गई है। पौधों में खर्रा रोग होने की उम्मीद बढ़ जाएगी। माहू, चेपा, भुनगा, थ्रिप्स जैसे कीड़ों की पैदावार बढ़ जाएगी। थ्रिप्स प्याज-लहसुन के लिए नुक्सानदेह है।
हवा में नमी रहने और तापमान अचानक बढ़ जाने से पौधों की डंडी सूखने लगती है। इससे फसलों को नुक्सान होता है। तापमान बढ़ने से आलू के पौधे भी ज्यादा बड़े नहीं हो सके। इससे आलू का साइज भी छोटा रह जाएगा। उन्होंने कहा कि तापमान का उतार-चढ़ाओ पौधों में बीमारियों को जन्म देता है और पौधों का रस चूसने वाले कीड़े बहुत बढ़ जाते हैं।
कमजोर वेस्टर्न डिस्टर्बेस के कारण दिल्लीवासियों को ऐसा तापमान महसूस हो रहा है जो बिल्कुल भी सर्दी जैसा नहीं है। यह सिर्फ दिल्ली में ही नहीं, बल्कि पूरे उत्तर-पश्चिम भारत में मौसम गर्म रहा है। ऐसा वेस्टर्न डिस्टर्बेस की गैर मौजूदगी के कारण हुआ। जब कोई वेस्टर्न डिस्टर्बेस क्षेत्र को प्रभावित करता है तो इससे तापमान में गिरावट आती है। उत्तर-पश्चिम भारत को प्रभावित करने वाला वेस्टर्न डिस्टर्बेस कमजोर था, नतीजतन इस क्षेत्र में कम बारिश दर्ज की गई। हिमालयी क्षेत्र में बर्फबारी की गतिविधि भी इस मौसम में उतनी तेज नहीं थी, शहर में पारा तब गिरता है जब उत्तर-पश्चिमी हवाएं पहाड़ों से ठंडी हवाएं लाती हैं। जैसे ही जनवरी खत्म हुई और फरवरी शुरू हुई, भारत ने खुद को मौसम विज्ञानियों के अनुसार “शुरूआती वसंत जैसा” चरण में पाया। यह शुष्क मौसम और असामान्य रूप से उच्च तापमान के कारण था। भारत मौसम विज्ञान विभाग के अनुसार, जनवरी 2024 रिकॉर्ड पर तीसरा सबसे गर्म महीना था, जिसमें औसत तापमान 18.9 सेल्सियस था। यह 1901 के बाद से चौथा सबसे शुष्क महीना भी था जिसने इसे हाल के इतिहास में सबसे शुष्क सर्दियों के महीनों में से एक बना दिया।
यही नहीं जनवरी के जिस महीने में ठंड का टॉर्चर चरम पर होता है, इस बार वो भी 8 सालों में रिकॉर्ड पर सबसे गर्म रहा। अब जब फरवरी का महीना बीत चुका है। फरवरी में तापमान लगातार ऊपर ही जाता रहा। एक दिन का अधिकतम तापमान 29.7 डिग्री सेल्सियस रहा जो सामान्य से छह डिग्री सेल्सियस अधिक है। इस बार दिल्ली में ठंड कितनी पड़ी है इसका अंदाजा इससे लगा लीजिए कि अब की बार दिसंबर में केवल एक शीत लहर का दिन दर्ज किया गया, जबकि सर्दियों के मौसम में अमूमन ऐसा नहीं होता है। भारत मौसम विज्ञान विभाग के अनुसार, इस मौसम में शीत लहर का दिन दर्ज नहीं किया। चाहे ये तापमान परिवर्तन बहुत बड़े प्रतीत न हों लेकिन देश पर इनका कुछ गहरा प्रभाव पड़ता है। देश में हीट वेव्स सामान्य हो गई है। भारत में रिकॉर्ड किए गए 15 सबसे गर्म वर्षों में से 11 सबसे गर्म वर्ष 2004 के बाद से हुए हैं और नई दिल्ली ने 48 डिग्री सेल्सियस के उच्चतम तापमान के साथ अपना सर्वकालिक तापमान रिकॉर्ड तोड़ दिया। 2010 और 2016 के बीच हीटवेव के संपर्क में आने वाले भारतीयों की संख्या में 200 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। हीटवेव श्रमिकों की उत्पादकता, कृषि उत्पादन, पारिस्थितिक तंत्र को प्रभावित करती है और निश्चित रूप से मानव के स्वास्थ्य पर गंभीर प्रभाव और यहां तक कि मृत्यु का कारण बन सकती है।
तापमान में इस बदलाव का असर मानसून पर भी पड़ा है। मानसून के मौसम के दौरान निरंतर वर्षा भारत के कुछ हिस्सों के लिए विशिष्ट रही है और मानसून की बारिश अधिकांश आबादी के लिए एक जीवन रेखा है, जिनकी आजीविका वर्षा आधारित कृषि पर निर्भर है। हालांकि, हाल के वर्षों में मानसून ने देश के अधिकांश भागों में और विशेष रूप से मध्य और उत्तरी क्षेत्रों में औसत से कम वर्षा की है। इससे पानी की कमी और सूखे की स्थिति पैदा हो गई है। जलवायु परिवर्तन से एक साथ काम करके ही निपटा जा सकता है। इसके लिए सरकारों, व्यवसायियों और नागरिकों को छोटे-छोटे उपाय करने होंगे। हमें वनों की कटाई, कार्बन असर्जन कम करना और मांस, डेयरी उत्पादों का सेवन कम करना, कम वाहन चलाना, नवीकरणीय ऊर्जा का उपयोग और पर्यावरण अनुकूल उत्पादों का चयन करना होगा।