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जहां शस्त्र बल नहीं...

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10:13 PM Mar 09, 2019 IST | Desk Team

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राजस्थान के बीकानेर में शुक्रवार को एक और भारतीय वायुसेना का लड़ाकू विमान मिग-21 क्रैश हो गया। भगवान का शुक्र है कि विमान के पायलट ने विमान क्रैश होने से पहले ही पैराशूट से छलांग लगा दी लेकिन इस हादसे ने एक बार फिर लड़ाकू विमान की हालत को लेकर चिन्ताएं पैदा कर दी हैं। मिग-21 पहले ही ‘उड़ता ताबूत’, ‘फ्लाइंग कॅफिन’ और​ ‘विडो मेकर’ के नामों से कुख्यात है। पिछले वर्ष 28 नवम्बर को दो मिग लड़ाकू विमान दुर्घटनाग्रस्त हो गए थे। पिछले हफ्ते मिग-21 दुर्घटनाग्रस्त हो गया था। अब बीकानेर के निकट हुए हादसे को मिलाकर यह संख्या 4 हो गई है।

पाकिस्तानी वायुसेना के विमान एफ-16 का पीछा कर रहा मिग-21 बाइसन जेट क्रैश हो गया था जिसके विंग कमांडर अभिनन्दन पायलट थे। विंग कमांडर अभिनन्दन द्वारा उड़ाया गया जेट उस बेड़े का हिस्सा था जो अपनी एक्सपायरी डेट के बाद भी उड़ाया जा रहा है। इसे बार-बार अपग्रेड लाइफ एक्सटेंशन के साथ चलाया जा रहा है। पुराने सिस्टम कम्पोनेंट्स के कारण विमान की उम्र बढ़ने के साथ-साथ विफलताएं भी बढ़ जाती हैं। हालांकि विमान की सर्विस लाइफ एक्सटेंशन के लिए कम्पोनेंट्स ज्यादा मायने रखते हैं। रूस और चीन के बाद मिग-21 विमान का तीसरा सबसे बड़ा आपरेटर भारत ही है। इसे भारत ने 1964 में सुपरसोनिक फाइटर जेट के रूप में भारतीय वायुसेना में शामिल किया था। 1965 के भारत और पाकिस्तान के युद्ध के समय भारत के पास अधिक मिग-21 नहीं थे।

सीमित मात्रा में मिग-21 के शानदार प्रदर्शन के कारण ही भारत ने मिग-21 लड़ाकू विमानों की खरीद की थी। मिग-21 को खरीदने का भारत को सबसे अधिक फायदा 1971 में हुए भारत-पाक युद्ध में हुआ। इस युद्ध में मिग-21 के अभूतपूर्व प्रदर्शन और क्षमता के कारण ही ईरान ने भारत से उनके पायलटों को प्रशिक्षण देने का अनुरोध किया था। वर्ष 1999 में कारगिल में पाकिस्तानी सैनिकों आैर आतंकवादियों के द्वारा घुसपैठ को खत्म करने में मिग-21 का बहुत बड़ा योगदान रहा था। मिग-21 के शौर्य की अनेक गाथाएं भारत ही नहीं, पूरी दुनिया में आसानी से सुनने को मिल जाएंगी लेकिन कुछ दुर्भाग्यशाली घटनाओं के चलते इन विमानों से छुटकारा पाना ही बेहतर होगा।

पुलवामा हमले के बाद पाकिस्तान पर एयर स्ट्राइक के बाद पाकिस्तानी विमानों द्वारा किए गए हमले के दौरान उसके एफ-16 ​​विमानों के मुकाबले भारतीय वायुसेना द्वारा मिग-21 के इस्तेमाल पर भी सवाल उठे थे हालांकि भारतीय वायुसेना ने मिग-21 के इस्तेमाल के निर्णय का बचाव किया। वायुसेना का कहना है कि यह फाइटर जेट वायुसेना की सूची में था और कार्रवाई, समय और धमकी के स्तर के मुताबिक विमानों को बदला जाना है। स्वदेशी विमान तेजस को मिग-21 की जगह लाने की तैयारी की जा रही थी लेकिन तेजस के निर्माण में देरी के चलते मिग-21 का प्रयोग मजबूरी है। फरवरी 2010 से लेकर 2019 के बीच भारत की सेनाओं के अनेक विमान और हेलिकॉप्टर क्रैश हुए। हादसे का शिकार होने वाले विमानों में अमेरिका से खरीदा गया अत्याधुनिक विमान सी-130 जे हरक्यूलिस भी शामिल है।

1965 के बाद मिग-21 के बेड़े के आधे विमान क्रैश हो चुके हैं। इनमें से ज्यादातर हादसे शांतिकाल के दौरान ही हुए। भारतीय सेना भी यह मानती है कि उसे आधुनिक हथियारों की जरूरत है। उसके पास 45 फीसदी हथियार पुराने हैं और 30 फीसदी हथियार तो रिटायर होने लायक हैं। हथियारों के अलावा भारतीय सेना को नए लड़ाकू विमानों की जरूरत है। यह आरोप भी लगते रहे हैं कि मिग-21 में ऐसे कई खराब पुर्जे हैं जो रूस से आए विमानों में पहले से ही थे। अब तो रूस भी 1985 से मिग-21 का उत्पादन बन्द कर चुका है। मिग-21 40 वर्ष पहले ही अपनी रिटायरमेंट की उम्र पार कर चुका है।

विडम्बना यह है कि भारत में जब भी बड़े रक्षा सौदे होते हैं, उन पर सवाल उठने शुरू हो जाते हैं। कांग्रेसनीत यूपीए के 10 वर्ष के शासन के दौरान दलाली कांडों को लेकर विमान सौदे रद्द किए गए। तत्कालीन रक्षा मंत्री ए.के. एंटनी ने कोई बड़ा रक्षा सौदा करने का साहस दिखाया ही नहीं। बोफोर्स सौदे के बाद अत्याधुनिक हथियारों की खरीद की ही नहीं गई। अब नरेन्द्र मोदी सरकार ने भारतीय सेना की जरूरतों को देखते हुए राफेल सौदा किया तो उस पर भी सवाल उठाए जा रहे हैं। मामला शीर्ष अदालत में विचाराधीन है। उधर एक एक्टिविस्ट ग्रुप ने मुम्बई की अदालत में जनहित याचिका दायर कर सवाल उठाया है कि बहुत पुराने मिग-21 का इस्तेमाल क्यों किया जा रहा है। क्यों पायलटों का जीवन खतरे में डाला जा रहा है। इतने बड़े लोकतंत्र में सवाल तो उठते रहेंगे। नरेन्द्र मोदी सरकार रक्षा क्षेत्र में भारत को आत्मनिर्भर बनाने के लिए देश में डिफेंस कॉरिडोर बना रही है।

उत्तर प्रदेश के अमेठी में ए.के.-203 बनाने का कारखाना लगाया गया है। कलाश्निकोव कम्पनी की यह असॉल्ट राइफल पुरानी इंसास की जगह लेगी। 1998 में सेना में शामिल इंसास राइफल का प्रदर्शन बेहद खराब रहा है। कारगिल युद्ध के दौरान ऐसे कई मौके आए जब कई सैनिकों की इंसास राइफल जाम हो गई थी। इसके बाद कई यूनिटों ने ए.के.-47 का इस्तेमाल शुरू किया। भारतीय सेना अपने शौर्य के लिए जानी जाती है। अत्याधुनिक संघर्ष में सैनिक अपनी हिम्मत और मनोबल और जज्बे से लड़ते हैं। फिजूल की बहस और आरोपों-प्रत्यारोपों से अलग हटकर हमें अपनी सेनाओं को मजबूत बनाने का काम करना चाहिए। युद्ध का स्वरूप बदल चुका है। भारतीय रक्षा बल हर प्रौद्योगिकी से लैस हों। मैं भारतीय सेना को नमन करते हुए राजनीतिज्ञों को कहना चाहता हूं-
जहां शस्त्र बल नहीं,
वहां शास्त्र पछताते और रोते हैं,
ऋषियों को भी तप में सिद्धि तभी मिलती,
जब पहरे में स्वयं धनुर्धर राम खड़े होते हैं।

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