बिहार चुनाव में ऊंट किस करवट बैठेगा ?
बिहार में चुनावी बिगुल बज चुका है और वहां इस बार रण भीषण है, क्योंकि भाजपा को चैलेंज करने के लिए तेजस्वी यादव और कांग्रेस ही नहीं बल्कि प्रशांत किशोर, ओवैसी और तेज प्रताप भी हैं। मजे की बात यह है कि मुस्लिम वोट के लिए इन सब में प्रशांत किशोर ने काफी सेंध लगाने का प्रयास किया है। भाजपा उसी सूरत में हार सकती है जब मुस्लिम वोट एकतरफा पड़े। यदि मुस्लिम वोट बट गया तो भाजपा की जीत के आसार अच्छे बन सकते हैं और उस में गृहमंत्री अमित शाह अपनी बिसात बख़ूबी बिछा रहे हैं। अपनी चुनावों बिसात बिछाने में दक्ष अमित शाह ने बिहार विधानसभा चुनाव में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) के लिए नई दो-तिहाई सीटों का लक्ष्य निर्धारित कर दिया है और उसके लिए भाजपा कार्यकर्ताओं को टास्क भी दे दिया है।
गृहमंत्री शाह यह दावा भी कर रहे हैं कि एक तरफ बिहार में पूर्ण बहुमत के साथ राजग की सरकार बनेगी और दूसरी तरफ से घुसपैठियों को बिहार की पवित्र धरती से एक-एक करके बाहर निकाल दिया जाएगा। अमित शाह इन दिनों सीमांचल (पूर्वोत्तर बिहार) के नौ जिलों पर विशेष ध्यान दे रहे हैं और इसी इलाके में भाजपा कार्यकर्ताओं की एक बड़ी फौज लगा भी रहे हैं। भाजपा की यह नई रणनीति है, वह इस बार सबसे अधिक कमल राजद और एमआईएम के गढ़ में खिलाना चाहते हैं। 243 सीटों वाली बिहार विधानसभा में भाजपा एनडीए के लिए 160 से ज़्यादा सीटें जीतने पर काम कर रही है। कहते हैं कि भाजपा के लिए हर चुनाव एक नई चुनौती होती है और वे उसकी तैयारी भी नए तरीके से ही करते हैं। पार्टी सीमांचल से इस बार सघन अभियान चलाने के पक्ष में हैं और वहां विदेशी घुसपैठियों को मुख्य मुद्दा बनाना चाहते हैं। इस इलाके में मुस्लिमों की संख्या अच्छी खासी है और वहां वाकई घुसपैठ हिंदुओं के लिए समस्या बनी हुई है।
पिछले कुछ सालों में इस क्षेत्र में हर हिंदू पर्व और त्यौहार पर पथराव और बलवा किए गए और हिंदुओं को प्रताड़ित भी किया गया। अमित शाह के घुसपैठ वाले मुद्दे पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी साथ हैं और उन्होंने भी बाहरी लोगों के वोट बनाने को लेकर सख्त रुख अख्तियार किया है। पीएम मोदी ने तो दिल्ली के लालकिले से अपने भाषण में भी इस विषय का उल्लेख किया था। वैसे बीजेपी के तरकश में केवल घुसपैठ के मुद्दे वाले तीर नहीं हैं, बल्कि अयोध्या में भगवान राम के मंदिर के बाद बिहार में मां जानकी मंदिर, मुख्यमंत्री महिला रोजगार के तहत राज्य की 75 लाख महिलाओं को 10-10 हज़ार रुपए का वितरण और अगली पीढ़ी के जीएसटी (वस्तु एवं सेवा कर) सुधार से जुड़े मुद्दे भी शामिल हैं। पीएम मोदी के लिए यह बिहार में एक सामान्य चुनाव भर नहीं है, इसका महत्व बीजेपी और खास कर पीएम मोदी के लिए बहुत ज्यादा है। इस चुनाव के परिणाम की व्याख्या भी इस बार अलग से होगी।
घरेलू और बाहरी मोर्चे पर जिस तरह की चुनौतियां सामने हैं और जिस तरह से विपक्ष एनडीए को घेरने की कोशिश कर रहा है, उसमें से यह चुनाव निकालना बहुत बड़ी चुनौती होगी। ऑपरेशन सिंदूर की सफलता और अमेरिका के दबाव से लड़ने की सरकार की जिजीविषा पर दुनिया भारत की ओर गर्व से देख रही है। पर क्या प्रधानमंत्री बिहार के मतदाताओं पर भी जादू चलाने में कामयाब होंगे? यह सबसे बड़ा सवाल है।
बिहार में चुनाव भले ही एनडीए के बैनर पर बीजेपी लड़ रही है, लेकिन सब जानते हैं कि यह चुनाव भी पिछले 10 साल की तरह मोदी और शाह का ही चुनाव माना जा रहा है। इसमें कोई दो राय नहीं कि 2014 से लेकर अभी तक का बीजेपी का सफर मोदी युग के नाम से ही जाना जा रहा है। केवल इसलिए नहीं कि बीजेपी इस दौर में केन्द्र की सरकार का नेतृत्व करने वाली पार्टी है, बल्कि इसलिए भी इस दौर में पूरी दुनिया भी भारत को मोदी के भारत के रूप देखने की आदी हो चुकी है। पीएम मोदी के रूप में ऐसे विशाल व्यक्तित्व का निर्माण किसी जादूगरी का परिणाम नहीं है, बल्कि मेहनत, योग्य लोगों से बनी टीम का गठन और श्रेष्ठ परिणाम हासिल करने के लिए ठोस नियोजन के भी इसमें बराबर के योगदान हैं। पीएम मोदी इसी के लिए जाने भी जाते हैं। पीएम मोदी ने राजनीतिक जीवन में विश्वास बहाली का एक दुर्लभ प्रयोग किया। वह अपने विश्वासपात्र बनाने और अपने प्रति लोगों में विश्वास जगाने का अद्भुत कौशल रखते हैं।
1985 से 1990 के बीच जब गुजरात में संघ और भाजपा नरेंद्र मोदी का पहला कौशल परीक्षण किया तब गुजरात में तीसरे नंबर की पार्टी थी बीजेपी। आपदा में अवसर खोज निकालने की कला का पहली बार उपयोग उन्होंने यहीं किया। इसके पहले हरियाणा और महाराष्ट्र विधानसभा के चुनाव परिणाम को भी पीएम मोदी और गृहमंत्री अमित शाह के कौशल की देन माना गया था। तो क्या फिर से बिहार में हरियाणा दोहराया जा सकेगा? कोई इस बात से अब इन्कार नहीं करता कि संगठन की कमजोरियों को पहचानने और उन्हें दूर करने का काम गृहमंत्री अमित शाह से बेहतर कोई नहीं कर सकता। अमित शाह यह काम कई वर्षों से अनवरत कर रहे हैं।
गुजरात में उन्होंने बीजेपी की जो मजबूत आधारशिला रखी, उसके बदौलत पार्टी आज दो दशक से अधिक समय से सरकार में बनी हुईं है। यही काम उन्होंने 2014 लोकसभा चुनाव के दौरान उत्तर प्रदेश में भी पार्टी के लिए किया। तब उन्होंने गुजरात में नरेंद्र मोदी की 12 साल की सरकार के कामकाज को गुजरात मॉडल के रूप में स्थापित किया और पूरे देश में उसके शेयर चुनाव परिणाम पार्टी के पक्ष में किया। अमित शाह का इस समय सारा जोर सोशल इंजीनियरिंग, यानि जातिगत समीकरण पर है। रोजाना ही अब नए-नए लोग, जिनका जातिगत वजूद है, बीजेपी से जुड़ रहे हैं। बिहार चुनाव के लिए मुद्दे और नारे भाजपा ने पक्के कर लिए हैं। ऑपरेशन सिंदूर चलाने और पाकिस्तान को आत्मसमर्पण के लिए मजबूर करने के मुद्दे के साथ बीजेपी देशव्यापी जाति सर्वेक्षण को भी चुनाव में जोर- शोर से उठाएगी। हर चुनाव की तरह बिहार में भी बीजेपी ने 40 पर्यवेक्षकों की नियुक्ति कर दी है। प्रभारी के रूप में धर्मेंद्र प्रधान हैं, जिन्हें हरियाणा चुनाव में भी विशेष जिम्मेदारी दी गई थी। जबकि उत्तर प्रदेश के उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य भी साथ हैं।