पंजाब की अमन शान्ति को किसकी नजर?
पंजाब किसी समय में देश का सबसे अमन शान्ति, खुशहाली वाला राज्य हुआ करता…
पंजाब किसी समय में देश का सबसे अमन शान्ति, खुशहाली वाला राज्य हुआ करता था मगर अब मानो इसे किसी की नजर लग गई हो। पंजाब के लोगों ने कई बार संताप झेला, बावजूद इसके सभी लोग आपसी भाईचारे और प्यार भावना के साथ जीवन बसर करते, एक-दूसरे के दुख-दर्द को समझा करते मगर इस समय भाई ही भाई का बैरी होता जा रहा है। ज्यादातर युवा वर्ग नशे का आदी हो चुका है जो शायद इस माहौल के लिए सबसे अधिक जिम्मेवार है। नशा ना मिलने की स्थिति में लोग अक्सर चोरी, डकैती, हत्या तक की वारदात को अन्जाम दे देते हैं। दूसरा जिस प्रकार राजनीतिक लोगों ने अपने वोट बैंक की खातिर दूसरे राज्यों से लोगों को लाकर पंजाब में बसाया जा रहा है इसमें बहुत से लोग अापराधिक प्रवृत्ति के भी रहते हैं जो यहां आकर वारदातों को अन्जाम दे रहे हैं। यहां तक कि गुरु की नगरी अमृतसर जहां शायद ही कभी इस तरह की वारदात होती देखी थी, आज सबसे अधिक क्राईम देखा जा रहा है। देश-विदेश से लाखों श्रद्धालु रोजाना पहुंचते हैं उन्हें भी नहीं बख्शा जाता। अब इसके पीछे कौन सी ताकत काम कर रही है जो शायद पंजाब को प्रफुलित होता नहीं देख पा रही और उनकी पूरी कोशिश रहती है कि कैसे भी करके पंजाब में इस तरह का माहौल पैदा किया जाये। भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव तरुण चुघ की मानें तो पहले अकालियों और अब भगवंत मान सरकार की नाकामी के चलते पंजाब में कई तरह के माफिया कार्यरत हैं और उन्हंे इनके ही कुछ लोगों का समर्थन प्राप्त है। सबसे पहले उन पर काबू पाना होगा और उसके बाद नशे के कारोबार करने वालों पर लगाम कसनी होगी तभी पंजाब का माहौल ठीक किया जा सकता है। पंजाब में हिन्दू-सिख एकता में दरार डालने की भी पुनः कोशिशें की जा रही हैं उसे रोकना भी सरकार की प्राथमिकता होनी चाहिए। कहीं ऐसा ना हो कि पंजाब फिर से काले दौर में वापिस लौट जाए। उस दौर में पंजाब को जो नुक्सान हुआ उसकी भरपाई पंजाब आज तक नहीं कर पाया है।
अकाली दल की भर्ती पर विवाद
बीते 2 दिसम्बर को श्री अकाल तख्त साहिब से पांच जत्थेदारों द्वारा फैसला सुनाते हुए अकाली दल की भर्ती को लेकर भी एक आदेश जारी किया गया था जिसमें भर्ती के लिए 7 सदस्यीय टीम का गठन भी हुआ था मगर बाद में 2 सदस्यों के द्वारा इस्तीफा दिये जाने के बाद केवल 5 सदस्य ही शेष रह गये। जब उन्होंने भर्ती अभियान की शुरुआत की तो सिख समुदाय के लोगों ने पूरी दिलचस्पी के साथ स्वैच्छा से सदस्यता ली है। इसके लिए 6 महीनों का समय रखा गया है जिसके बाद अध्यक्ष और अन्य पदाधिकारियों का चयन किया जाएगा। मगर दूसरी ओर श्री अकाल तख्त साहिब के आदेशों को दरकिनार कर बादल परिवार की छत्रछाया में भी भर्ती अभियान चलाया जा रहा है जो शायद पहले की तरह केवल कागजों तक सिमट कर रह जाता है, क्योंकि वह चाहते ही नहीं कि कोई आम सिख अकाली दल का सदस्य बने। अगर ऐसा होता है तो शायद सुखबीर सिंह बादल को प्रधान बनाने की दिशा में बाधा आ सकती है जो वह कभी नहीं चाहते।
भर्ती अभियान से पैदा हुए विवाद से आम सिख काफी आहत दिखाई दे रहा है क्योंकि आए दिन दोनों गुटों के द्वारा एक-दूसरे पर आरोप लगाते हुए अपने भर्ती अभियान को जायज ठहराया जा रहा है। अब तो यह भी नहीं कहा जा सकता कि श्री अकाल तख्त साहिब के जत्थेदार इसमें हस्ताक्षेप करें क्योंकि जत्थेदार की पदवी भी इनकी गुटबाजी की भेंट चढ़ चुकी है। बादल समर्थक गुट के द्वारा नए जत्थेदार की ताजपोशी की जा चुकी है मगर दूसरा गुट अभी भी ज्ञानी रघुबीर सिंह को श्री अकाल तख्त साहिब और ज्ञानी हरप्रीत सिंह को तख्त दमदमा साहिब का जत्थेदार मानकर सम्मान देते हैं। सिख बुद्धिजीवी कुलमोहन सिंह का मानना है कि आने वाले दिनों में यह विवाद और गहरा सकता है क्योंकि बादल समर्थक जल्द ही भर्ती कार्य को पूरा कर सुखबीर सिंह बादल को पुनः प्रधान घोषित कर सकते हैं जिसे दूसरा गुट कभी बदार्शत नहीं करेगा। दल पंथ, निहंग जत्थेबंिदयों, संत समाज का समर्थन भी उस गुट को प्राप्त है और वहीं आम सिख भी चाहता है कि परिवारवाद का खात्मा कर पंथक सोच वाली किसी धार्मिक शख्सीयत को अब आगे आकर अकाली दल की कमान संभालनी चाहिए जिससे अकाली दल की छवि फिर से बेहतर बनाई जा सके।
सिख पंथ की एकजुटता के लिए विचार
बीते दिनों न्यूजीलैंड के प्रधानमंत्री के द्वारा भारतीय प्रधानमंत्री और अन्य नेताओं के साथ मुलाकात कर कई अहम मसलों पर विचार हुआ जिसमें प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के द्वारा न्यूजीलैंड में खालिस्तानी गतिविधयों पर चिन्ता जताते हुए उन पर सख्त कार्रवार्ई की मांग की थी। अब न्यूजीलैंड के पूर्व मंत्री कंवलजीत सिंह बख्शी ने राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग के चेयरमैन इकबाल सिंह लालपुरा से भंेट की। दोनों नेताओं ने भारत और न्यूजीलैंड में सिख मसलों के समाधान, एकजुटता बहाल करने और खालिस्तानी गतिविधियों को कैसे रोका जाए पर विचार हुए। बख्शी कंवलजीत सिंह ने चिन्ता व्यक्त की कि भारत में एक बार फिर से ऐसा माहौल तैयार किया जा रहा है जिसमें सिख ही सिख का बैरी बनता जा रहा है। सिख पंथ में बढ़ते टकराव से आम सिख खासकर युवा वर्ग काफी आहत होता है मगर शायद कुछ ताकतें हैं जो इसे तूल देकर विवाद को और बढ़ाने में कामयाब होती दिख रही हैं। बख्शी कंवलजीत सिंह का समूचा परिवार हमेशा से ही कौम की सेवा करता आ रहा है। उनके पिता बख्शी जगदेव सिंह के समय भी ऐसा माहौल बना हुआ था जिसके बाद उन्होंने एक नारा दिया था ‘‘जे सिख सिख नू ना मारे तो कौम कदे ना हारे’’ जिसे दिल्ली की हर दीवार पर लिखा गया था। शायद आज भी आवश्यकता है सिख पंथ की एकजुटता के लिए कोई आगे आए।
अच्छी पहल: डा. गुरमीत सिंह सूरा जो कि भाजपा के कदावर सिख नेता हैं जो मानते हैं कि प्रमात्मा ने अगर उन्हें सर्मथ्य बनाया है तो उन्हें दूसरों की मदद करते रहना चाहिए। इसी के चलते वह हर साल अपने जन्मदिन पर 5 बच्चों की पूरी पढ़ाई की जिम्मेवारी उठाते हैं। इस बार भी उनके द्वारा इसे जारी रखते हुए 5 ऐसे बच्चों का चयन कर उनकी पढ़ाई की जिम्मेवारी उठाई, जिनके माता- पिता बच्चों को बेहतर एजुकेशन दिलाने में असमर्थ थे। डा. गुरमीत सिंह मानते हैं कि ऐसा करके उन्हें खुशी मिलती है। अक्सर देखा जाता है कि लोग धार्मिक स्थलों पर सोना, चांदी, हीरे जवाराहत चढ़ाते हैं, पर शायद उन्हंे इस बात की जानकारी नहीं कि भगवान की खुशी इसी में रहती है कि आप जरूरतमंदों के मददगार बनें। सोना-चांदी दान करके आपको कुछ समय की खुशी मिलती हैं मगर आपके द्वारा दिलाई गई एजुकेशन से ना जाने कितने परिवारों के घरों में खुशियां आ सकती हैं।