सिखों के दो तख्तों में टकराव के लिए जिम्मेवार कौन?
इतिहास में पहली बार सिखों के दो तख्तों में टकराव देखने को मिल रहा है जिसे समाप्त करना अति आवश्यक है अन्यथा आने वाले दिनों में इसके गंभीर परिणाम देखने को मिल सकते हैं। युवा वर्ग इस सबके चलते ही आज सिखी से दूर होता चला जा रहा है मगर अफसोस कि इस ओर कोई ध्यान देने को तैयार नहीं। सिख समाज में जत्थेदारों का विशेष तौर पर दायित्व बनता है कि वह कौम के भीतर आए विवाद को समाप्त करके सभी सिखों को एकजुट होकर एक निशान साहिब के भीतर लाएं मगर आज तो जत्थेदार स्वयं विवाद के घेरे में आ चुके हैं अब इनमें एकजुटता कैसे और कौन लेकर आएगा यह अपने आप में प्रश्न बन गया है। असल में विवाद तब खड़ा हुआ जब श्री अकाल तख्त साहिब से ज्ञानी कुलदीप सिंह गढ़गज के द्वारा तख्त पटना साहिब से तनखैया और पंथ से निष्कासित पूर्व जत्थेदार रणजीत सिंह गौहर को माफ करते हुए उन्हें पहले की भान्ति सेवाएं निभाने हेतु आदेश जारी कर दिया इतना ही इसके साथ ही तख्त पटना साहिब के मौजूदा जत्थेदार सिंह साहिब ज्ञानी बलदेव सिंह और ज्ञानी गुरदयाल की सेवाओं पर रोक लगा दी गई।
इस पर तख्त पटना साहिब के जत्थेदार सहित पांच प्यारे साहिबान के द्वारा ज्ञानी कुलदीप सिंह गढ़गज और ज्ञानी टेक सिंह को तनखैया करार देते हुए इस पूरे मामले में साजिशकर्ता के रूप में मानते हुए सुखबीर सिंह बादल को पेश होकर अपना पक्ष रखने के लिए 10 दिन का समय दिया गया। हालांकि चाहिए तो यह था कि सुखबीर सिंह बादल पेश होकर अपना पक्ष रखते और वह शायद चाहते भी थे मगर उनके कुछ सलाहकार ऐसे हैं जिन्होंने उन्हें ऐसा करने से रोका जिसके बाद विवाद बढ़ता चला गया। 40 दिनों बाद भी जब सुखबीर बादल पेश नहीं हुए तो तख्त पटना साहिब से उन्हें तनखैया कर दिया गया। जिसके बाद मानो पंजाब की राजनीति में भूचाल सा आ गया। सुखबीर के खिलाफ आदेश आते ही ज्ञानी कुलदीप सिंह गढ़गज तुरन्त हरकत में आए और अपने आका को बचाने के लिए उन्होंने तख्त पटना साहिब के दो सदस्यों हरपाल सिंह जौहल और डा. गुरमीत सिंह सहित ज्ञानी गुरदयाल सिंह को भी तनखैया कर दिया।
इस पर संसार भर से सिख बुद्धिजीवियों द्वारा चिन्तन किया जा रहा है और उनका मानना है कि सभी तख्त अपने आप में सम्मान्नित हैं इसलिए सभी जत्थेदारों को चाहिए कि बड़े छोटे की बात ना करते हुए बिना वजह पंथ में उपजे मसले का समाधान निकालें। जो लोग स्वयं श्री अकाल तख्त साहिब के आदेशों को दरकिनार करते हुए अपनी राजनीतिक रोटियां सेंकने में लगे हैं आज वही अकाल तख्त की महानता की दुहाई दे रहे हैं इसलिए जत्थेदार साहिबान को चाहिए अपना नैतिक फर्ज समझते हुए राजनीतिक लोगों की ग्रिफत से बाहर आकर कौम हित में एकजुटता लाने की ओर अग्रसर हो और जल्द से जल्द इसका स्थाई हल निकाला जाए किसी एक व्यक्ति विशेष के लिए पूरी कौम को दाव पर लगाना किसी भी सूरत में सही नहीं है।
दिल्ली यूनिवर्सिटी के छात्रों को पढ़ाया जाएगा सिख इतिहास : इतिहास गवाह है कि सिख गुरु साहिबान से लेकर बाबा बंदा सिंह बहादुर जैसे अनेक सिख योद्धा हुए जिनका इतिहास अगर बच्चे पढ़ लें तो वह सिखों के प्रति हीन भावना रख ही नहीं सकते। इतना ही नहीं अगर देशवासियों ने इतिहास पढ़ा होता तो 1984 में सिखों का कत्लेआम भी नहीं होना था और सिखों को खालिस्तानी या आतंकी कहकर भी नहीं पुकारा जाता। दिल्ली यूनिवर्सिटी की पहल पर अब छात्र मुगल राज्य और समाज पर विशेष रूप से तथा सामान्य रूप से भारतीय इतिहास पर उभरते इतिहास लेखन में विद्यमान अंतराल को समझ सकेंगे। कोर्स में यूनिट एक के तहत विद्यार्थियों को सिख धर्म का विकास, मुगल राज्य और समाज, पंजाब सिख धर्म में शहादत और शहादत की अवधारणा, सिख गुरुओं के अधीन सिख, गुरु नानक देव जी से गुरु रामदास जी तक सिख धर्म का ऐतिहासिक संदर्भ पढ़ाया जाएगा। यूनिट दो में शहादत की गाथा के तहत आधिपत्य मुगल राज्य और दमन, गुरु अर्जन देव जी, जीवन और शहादत, राज्य की नीतियों पर प्रतिक्रियाएं, गुरु हरगोबिंद जी से गुरु हरकृष्ण जी तक, गुरु तेग बहादुर जी के जीवन और शहादत, भाई मति दास, भाई सती दास, भाई दयाला के संदर्भ पढ़ाए जाएंगे।
दिल्ली यूनिवर्सिटी द्वारा इतिहास में सिख शहादतों और बहादुरी पर अंडरग्रेजुएट कोर्स शुरू करने को सिख समाज के लोग मोदी सरकार का सराहनीय कदम बताते हुए खास तौर पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का आभार प्रकट करते दिख रहे हैं। दिल्ली सरकार में मत्री मनजिन्दर सिंह सिरसा मानते हैं कि इससे ही सरकारों की सोच का पता चलता है एक ओर आजादी के बाद से कांग्रेस की सरकार ने देशवासियों पर जुल्म करने वाले अत्याचारियों का इतिहास स्कूलों कालेजों में बच्चों को पढ़ाया मगर अत्याचार की उस आग को ठण्डा कर देश और धर्म की रक्षा वाले गुरु साहिबान और सिख योद्धाओं के इतिहास से वंचित रखा। तख्त पटना साहिब कमेटी के अध्यक्ष जगजोत सिंह सोही, दिल्ली सिख गुरुद्वारा प्रबन्धक कमेटी अध्यक्ष हरमीत सिंह कालका और महासचिव जगदीप सिंह काहलो सहित अन्य सिख नेता भी सरकार के इस कदम की प्रशंसा करते दिख रहे हैं।
कांवड़ियों के स्वागत में सिख समाज : सावन का महीना शुरु होते ही शिव भक्त कांवड़िए दिल्ली में दस्तक देने लगते हैं जो हरिद्वार से पैदल गंगाजल लेकर आते हैं और शिवरात्रि के दिन भगवान शिव को गंगाजल अर्पित करने के पश्चात् ही अपने घरों में प्रवेश करते हैं। वैसे तो यह यात्रा पिछले कई सालों से चल रही है मगर मदन लाल खुराना की दिल्ली में सरकार आने के बाद से कांवड़ियों की गिनती में काफी इजाफा देखने को मिला। इस बार भी दिल्ली की रेखा गुप्ता सरकार के द्वारा कांवड़ियों के लिए कई तरह की घोषणाएं की गई हैं वहीं दिल्ली का सिख समाज भी इस बार कांवड़ियों के स्वागत के लिए कमर कसता हुआ दिखाई दे रहा है। जंगपुरा से विधायक तरवन्दिर सिंह मारवाह जो कि केन्द्रीय गुरु सिंह सभा के अध्यक्ष भी हैं उन्होंने ऐलान किया है कि सिख समाज कांवड़ियों के लिए लंगर और उनके रहने का प्रबन्ध गुरुद्वारों की सराओं में करेगा और साथ ही उन्होंने कांवड़ियों के रुट पर मीट और शराब की दुकानें बंद रखने की अपील भी की है।