बिहार में कौन अर्श या फर्श पर होगा?
जिस प्रकार से प्रशांत किशोर ने एक वार्तालाप में कहा था कि इस चुनाव में उनकी पार्टी या तो अर्श पर होगी, या फर्श पर। पिछले वर्ष जब जन सुराज पार्टी को उन्होंने लॉन्च किया था तो तब से ही इसे उसके विपक्षी इसे स्टार्टअप मान कर चल रहे हैं। पूर्व भी तेलुगु देशम पार्टी (1983) के टी.एन. रामाराव, असम गण परिषद (1985) के प्रफुल्ल महंत और आम आदमी पार्टी (2012) के अरविंद केजरीवाल ने भी स्वयं को इसी प्रकार से लॉन्च किया था। केजरीवाल और महंत, जो कि नया राजनीतिक परिधान, परिवेश और मन मोहक नक्शा ले कर आए थे, कुछ दिन राजनीति कर साइड लाइन हो गए। प्रशांत की तुलना भी केजरीवाल से की का रही है िक कहीं वह भी आगे जा कर फटा बांस न साबित हों। वैसे इस बात में कोई दो राय नहीं कि उनकी शिक्षा और काबलियत से किसी को कोई इंकार नहीं, मगर बिहार में वह कितनी सीटें लाएंगे, इस बारे में बहुत कुछ नहीं कहा जा सकता।
किशोर ने "सिटिज़न्स फॉर अकाउंटेबल गवर्नेंस" (सीएजी) नाम से एक ग्रुप बनाया, जिसने 2014 लोकसभा चुनाव में बीजेपी को ऐतिहासिक जीत दिलाने में मदद की। उन्होंने स्कूली पढ़ाई बक्सर में रहकर की, जहां उनके पिताजी की पोस्टिंग थी। जहां भाजपा ने अपने 71 उम्मीदवारों की प्रथम सूची जारी कर दी है, प्रशांत किशोर की पार्टी जन सुराज ने उम्मीदवारों की दूसरी लिस्ट जारी कर दी है। इस सूची में कुल 65 उम्मीदवारों के नाम का ऐलान किया गया है, जिसमें मुख्य रूप से 19 सुरक्षित सीटों पर उम्मीदवारों के नाम घोषित किए गए। जन सुराज ने सामाजिक समीकरण साधते हुए अति पिछड़ा वर्ग पर विशेष ध्यान दिया है। प्रशांत किशोर ने हाल ही में कई सुलझे हुए साक्षात्कार दिए हैं जिनमें उन्होंने अपनी राजनीतिक रणनीति और जन सुराज पार्टी के बारे में बात की है। उन्होंने दावा किया है कि जन सुराज ने बिहार की राजनीति में एक नए विकल्प के रूप में उभर कर पारंपरिक दलों की "राजनीतिक बंधुआ मजदूरी" को समाप्त कर दिया है। उन्होंने तेजस्वी यादव के "हर घर एक सरकारी नौकरी" के वादे को खोखला चुनावी नारा बताया और कहा कि यह असंभव है, क्योंकि बिहार में कुल 26.5 लाख सरकारी नौकरियां ही हैं। उन्होंने जन सुराज पार्टी की रणनीति के बारे में बताते हुए कहा कि वे चरित्र, योग्यता और समाज में योगदान के आधार पर उम्मीदवारों का चयन कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि उनकी पार्टी जाति, धन या राजनीतिक प्रभाव के बजाय चरित्र, योग्यता और समाज में योगदान के आधार पर उम्मीदवारों का चयन कर रही है। प्रशांत किशोर ने दावा किया कि जन सुराज ने बिहार की राजनीति में एक नए विकल्प के रूप में उभर कर पारंपरिक दलों की "राजनीतिक बंधुआ मजदूरी" को समाप्त कर दिया है। ठीक इसी प्रकार से छात्र संघर्ष से निकली असम गण परिषद और आम आदमी पार्टी के नेताओं ने भी दावा किया था, मगर रास्ते से भटकने पर भारत के परिपक्व वोटर ने इन्हें बाहर का रास्ता दिखा दिया था। वैसे यह तो कोई भी नहीं मान रहा कि प्रशांत सत्ता पर उस प्रकार से आधिपत्य जमा लेंगे जैसे केजरीवाल ने किया था, मगर हां उलट-फेर करने और किंग मेकर के किरदार निभाने की आशंका से इंकार नहीं किया जा सकता। वह स्वयं ही कहीं कह चुके हैं कि या तो 6 से कम या 160 से ऊपर! जन सुराज पार्टी सभी राजनीतिक दलों के वोट बैंक में सेंध लगाएगी, यदि प्रशांत का दौर आम आदमी पार्टी से पहले का होता तो उन्हें वैसा ही बंपर वोट मिलता, जैसा केजरीवाल को, जिनको बड़ी उम्मीदों से दिल्ली की जनता ने 70 में से 67 सीटें प्रदान कर दी थीं। मगर बाद में जो कुछ हुआ तो वह सब जानते हैं। हालांकि प्रशांत और अरविंद में कई विभिन्नताएं हैं, जिनके कारण जन सुराज को बिहार में एक अच्छा स्थान प्राप्त हो सकता है। प्रशांत के सामने एक बड़ी समस्या यह होगी कि वह उस प्रकार से एक ईमानदार नेता की तरह जनता का विश्वास नहीं जीत सकते जिस प्रकार से केजरीवाल ने जीता था। प्रशांत किशोर ने संकेत दिया कि वे तेजस्वी यादव के निर्वाचन क्षेत्र राघोपुर से चुनाव लड़ सकते हैं।