धनखड़ के बाद कौन बनेगा उपराष्ट्रपति ?
उपराष्ट्रपति श्री जगदीप धनखड़ के अचानक इस्तीफा देने की वजह से देश की राजनीति में भूचाल आना स्वाभाविक था। लोकतन्त्र में एेसी घटनाओं को न राजनीति अनदेखा कर सकती है और न ही देश की जनता। इसमें भी कोई सन्देह नहीं कि श्री धनखड़ बहुत विवादित उपराष्ट्रपति रहे। वह बेशक एक संवैधानिक पद पर थे मगर आचरण में वह राजनीतिज्ञ की भूमिका ज्यादातर निभाते दिखाई दिये। वैसे भारत के लोकतन्त्र में उपऱाष्ट्रपति का पद सजावटी ज्यादा है क्योंकि शासन की कार्यप्रणाली में उनकी कोई विशेष भूमिका नहीं होती सिवाय इसके कि वह राज्यसभा का पदेन सभापति होता है। उसे मुख्य रूप से राज्यसभा के संचालन की भूमिका ही संविधान में प्रदान की गई है। इस पद पर रहते हुए भी वह काफी विवादित रहे और हद यह हो गई कि विगत वर्ष के अन्त में राज्यसभा में विपक्ष की तरफ से उनके खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाया गया जिसे उपसभापति ने मंजूरी नहीं दी।
स्वतन्त्र भारत के संसदीय इतिहास में यह पहली घटना थी जब राज्यसभा के सभापति के खिलाफ कभी अविश्वास प्रस्ताव लाया गया हो जबकि लोकसभा के मामले में एेसा नहीं कहा जा सकता। लोकसभा के पहले अध्यक्ष स्व. जी.वी. मावलंकर के विरुद्ध 1953 में ही अविश्वास प्रस्ताव तत्कालीन विपक्ष के द्वारा लाया गया था जो कि भारी बहुमत से गिर गया था। श्री धनखड़ पर सभापति के रूप में विपक्षी दलों के नेताओं द्वारा आरोप लगाया गया था कि वह सभा के संचालन में सत्तारूढ़ दल के हक में पक्षपात करते हैं और कभी-कभी तो उस दल के प्रवक्ता जैसी भूमिका निभाने लगते हैं। इसके बाद श्री धनखड़ के नजरिये में राज्यसभा में कुछ परिवर्तन देखने को मिलने लगा। मैं इस विवाद में नहीं जा रहा हूं कि उन्होंने किन कारणों से अफरा- तफरी में स्वास्थ्य कारणों से इस्तीफा दिया बल्कि इसके बाद पैदा हुई परिस्थितियों का वर्णन कर रहा हूं। जाहिर है कि राष्ट्रपति ने उनका इस्तीफा स्वीकार कर लिया और गृह मन्त्रालय ने भी इसकी अधिसूचना जारी कर दी।
सोमवार रात्रि को उन्होंने इस्तीफा दिया और मंगलवार तक सभी औपचारिकता भी पूरी कर ली गई। अतः अब इस पद पर नये उपराष्ट्रपति बैठेंगे। भारत में राष्ट्रपति व उपराष्ट्रपति का भी चुनाव होता है। राष्ट्रपति के चुनाव में जहां संसद सदस्यों से लेकर देश की सभी विधानसभाओं के सदस्य मतदान करते हैं वहीं उपराष्ट्रपति के चुनाव में केवल संसद के दोनों सदनों के सभी सदस्य गुप्त मतदान करते हैं। इन चुनावों के लिए राजनैतिक दल अपने सदस्यों को सचेतना या व्हिप जारी नहीं कर सकते। ये चुनाव आनुपातिक चुनाव प्रणाली के होते हैं अर्थात सभी मतदाताओं के लिए वरीयता क्रम रहता है।
अपनी वरीयता के अनुसार संसद सदस्य वोट डालते हैं। अर्थात प्रथम वरीयता, दूसरी और तीसरी वरीयता। वरीयता क्रम इस बात पर निर्भर करता है कि मैदान में कुल कितने प्रत्याशी उतरे हुए हैं। प्रत्याशी के चुनाव में खड़े होने की शर्त होती है कि उसके नामांकन के पक्ष में चुनाव आयोग द्वारा निर्धारित सांसद हों। चुनाव आयोग ने विगत बुधवार को ही घोषणा कर दी थी कि वह उपराष्ट्रपति पद के लिए चुनाव को तैयार है और इस सन्दर्भ में प्रक्रिया को जल्दी ही शुरू करने जा रहा है। अब चुनाव आयोग ने शुक्रवार को उपराष्ट्रपति पद के चुनाव के लिए अधिसूचना भी जारी कर दी। इसका मतलब यह हुआ कि अगले एक महीने के भीतर देश को नया उपराष्ट्रपति मिल जायेगा। कुल समय 32 दिन का होता है जिसके भीतर चुनाव को सम्पन्न कराना होता है।
चुनाव आयोग को संविधान के अनुच्छेद 324 के तहत यह अधिकार प्राप्त है कि वह उपराष्ट्रपति का चुनाव सम्पन्न कराये। एक बार इसकी तैयारी हो जाने पर चुनाव आयोग चुनाव तालिका जारी कर देगा और उसके अनुसार चुनाव होंगे। यह कार्य एक महीने के भीतर पूरा हो जाना चाहिए। इसके साथ ही चुनाव आयोग चुनाव अधिकारी व दो सहायक चुनाव अधिकारियों के नाम घोषित करता है जिनकी देखरेख में चुनाव सम्पन्न होते हैं। चुनाव में मतदाता लोकसभा व राज्यसभा के सभी संसद सदस्य होंगे। इनमें राज्यसभा में राष्ट्रपति द्वारा मनोनीत संसद सदस्य भी वोट डालते हैं। अधिसूचना जारी होने के 14 दिनों के भीतर प्रत्याशियों का नामांकन होगा। इसके बाद एक दिन में इन नामांकनों की जांच होगी। इसके बाद दो दिनों के भीतर कोई भी प्रत्याशी अपना नामांकन वापस ले सकता है। इस तारीख या दिन के 15 दिनों के बाद मतदान होगा। मतदान तभी जरूरी होगा जब मैदान में कम से कम दो प्रत्याशी रह जायें। यह मतदान संसद भवन के भीतर ही होगा। मतदान बैलेट पेपर से होगा और यह गुप्त होगा।
फिलहाल राज्यसभा व लोकसभा के मिला कर कुल 788 सांसद हैं। इन सभी सासंदों के वोट का मूल्य एक समान होगा। जाहिर है कि संसद में सत्तारूढ़ दल भाजपा व उसके समर्थक दलों का बहुमत है। अतः उसी का प्रत्याशी विजयश्री का वरण करेगा। मगर इस चुनाव में राजनैतिक दल व्हिप जारी नहीं कर सकते अतः वोट गिने जाने तक तलवार लटकी रह सकती है। लोकसभा में भाजपा के 240 सांसद हैं जबकि उसके समर्थक दलों को मिला कर एनडीए की संख्या 543 के सदन में तीन सौ से ऊपर पहुंच जाती है। एेसी ही स्थिति राज्यसभा में भी है। इस सदन में कुल 245 सदस्य हैं। सवाल यह है कि विपक्ष की तरफ से इस चुनाव में किसे उतारा जा सकता है? विपक्ष की कोशिश होगी कि उसकी तरफ से कोई एेसा उम्मीदवार मैदान में आये जिसे भाजपा के सहयोगी दलों की सहानुभूति भी मिल सके। मगर विपक्षी इंडिया गठबन्धन फिलहाल बिखरा हुआ लगता है। उसे सर्वमान्य प्रत्याशी ढूंढने में ही भारी मशक्कत करनी पड़ सकती है।
जब 2022 में श्री धनखड़ चुने गये थे तो इंडिया गठबन्धन की प्रमुख सदस्य पार्टी तृणमूल कांग्रेस ने मतदान में हिस्सा ही नहीं लिया था। दूसरी तरफ भाजपा को भी यह ध्यान रखना होगा कि उसके प्रत्याशी को एनडीए के सभी घटक दलों का समर्थन प्राप्त हो। अतः दोनों ही पक्षों के लिए सर्वमान्य नाम ढूंढना मुश्किल काम होगा। फिलहाल सत्ता पक्ष की तरफ के विभिन्न नामों पर मीडिया में अटकल बाजियां लगाई जा रही हैं जबकि विपक्ष अभी तक शान्त है। जाहिर है कि सत्ता पक्ष चाहेगा कि अब उसकी तरफ से एेसा नाम आये जो किसी भी रूप में विवादित न हो। बेशक वह भाजपा पार्टी का सदस्य भी हो सकता है। उपराष्ट्रपति व राष्ट्रपति का पद एेसा है जो कि आसन पर बैठने वाले व्यक्ति को ‘अराजनैतिक’ बना देता है और उसका काम केवल संविधान का संरक्षण रह जाता है। इन पदों पर बैठने वाले व्यक्ति संविधान के संरक्षण की कसम ही उठाते हैं। हमारे संविधान निर्माताओं ने उपराष्ट्रपति को राज्यसभा का पदेन सभापति बहुत सोच-समझ कर ही बनाया था।