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थोक महंगाई चरम पर पहुंची

सब्जियों के थोक मूल्य एक साल पहले से 2.51 प्रतिशत ऊपर थे। अप्रैल महीने में सब्जियों के थोक भाव साल भर पहले से 0.89 प्रतिशत नीचे थे।

10:44 AM Jun 15, 2018 IST | Desk Team

सब्जियों के थोक मूल्य एक साल पहले से 2.51 प्रतिशत ऊपर थे। अप्रैल महीने में सब्जियों के थोक भाव साल भर पहले से 0.89 प्रतिशत नीचे थे।

नई दिल्ली : मई में पेट्रोल-डीजल के दाम बढ़ने से थोक मूल्य सूचकांक पर आधारित मुद्रास्फीति 14 महीने के उच्चतम स्तर 4.43 प्रतिशत पर पहुंच गयी। इस बीच उद्योग जगत ने सरकार से ईंधन की कीमतें अंकुश में रखने की मांग उठाई है। थोक मुद्रास्फीति अप्रैल महीने में 3.18 प्रतिशत तथा पिछले साल मई महीने में 2.26 प्रतिशत थी। सरकारी आंकड़ों के अनुसार, मई में खाद्य पदार्थों की थोक मुद्रास्फीति अप्रैल के 0.87 प्रतिशत से बढ़कर 1.60 प्रतिशत रही। सब्जियों के थोक मूल्य एक साल पहले से 2.51 प्रतिशत ऊपर थे। अप्रैल महीने में सब्जियों के थोक भाव साल भर पहले से 0.89 प्रतिशत नीचे थे। मई में ईंधन एवं बिजली श्रेणी में भी मुद्रास्फीति 11.22 प्रतिशत पर पहुंच गयी। अप्रैल में यह 7.85 प्रतिशत थी।

आलू के भाव अप्रैल में एक साल पहले से 67.94 प्रतिशत ऊंचा चल रहे थे। मई आलू का भाव एक साल पहले से 81.93 प्रतिशत ऊंचा हो गया। आलोच्य माह के दौरान फलों के वर्ग में महंगाई दर 15.40 प्रतिशत रही। दालों के भाव 21.13 प्रतिशत गिरे। नए आंकड़ों के आधार पर मार्च की थोक मुद्रास्फीति को 2.47 प्रतिशत के प्रारंभिक आकलन से संशोधित कर 2.74 प्रतिशत कर दिया गया। इससे पहले इसी सप्ताह जारी आंकड़े में खुदरा महंगाई भी मई माह में बढ़कर चार महीने के उच्चतम स्तर 4.87 प्रतिशत पर पहुंच गयी थी। इस बीच उद्योग संगठन एसोचैम ने सरकार से ईंधन कीमतें नियंत्रित करने की मांग की है।

उसने कहा कि पेट्रोल-डीजल की बढ़ती कीमतों से आयात खर्च प्रभावित हो सकता है जिसका विनिमय दर भी असर हो सकता है। एसोचैम के महासचिव डी.एस.रावत ने कहा कि इनके अलावा इसका उद्योग जगत की लागत पर भी नकारात्मक असर हो सकता है जिन्हें पहले ही मुनाफे में कमी का सामना करना पड़ रहा है। इक्रा की प्रधान अर्थशास्त्री अदिति नायर ने कहा कि थोक मूल्य आधारित मुद्रास्फीति अप्रैल के 3.6 प्रतिशत से तेजी से बढ़कर मई में 4.4 प्रतिशत पर पहुंच गयी है तथा 15 उप-श्रेणियों मेंतेजी आयी है। इससे संकेत मिलता है कि लागत बढ़ रही औररुपये की विनिमय दर कमजोर होने का भी असर है।

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